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सुमित्रानंदन पंत की कविता

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यह धरती कितना देती है   मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे, सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे, रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी और फूल-फूलकर मैं मोटा...

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