धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव की दो कविताएं 

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फूलों का श्रृंगार गया

जब से उजले भौरों के कर बागों का व्यापार गया।
कृपा बरसती कांटों के घर फूलों का श्रृंगार गया।

इसको कहते राजकृपा जो खुद दीवाला मार गया।
उसी के हाथों में हथियारों का रखाव उपचार गया।

सरेआम मण्डी में जो हम सबकी हड्डी गार गया।
वह शब्दों से आने वाली नस्लों को भी तार गया।

जिसे देखिए बोल उठा वह जय उसकी फनकारी की,
जब दुश्मन को अपनी टोपी पहना बाजी मार गया।

कुछ कानूनों की बारीकी कुछ पन्चों की अनदेखी,
अपनी भूख प्रमाणित करने में खुद भूखा हार गया।

इतनी कृपा सभी पर करता है अच्छों का अच्छा दिन,
जिसे मारता है कहता है जन्नत में बीमार गया।

जो भी तैर रहा दरिया में लहरों में है फँसा हुआ,
जो भी केवल जय जय बोला सुख से दरिया पार गया।

जिस चोले को लखकर हमसब अपना शीश झुका देते थे,
उसे जेल में देख हमारी आँखों का एतबार गया।

माफ कीजिए हमसब भी हैं उसी राज का इक हिस्सा,
आरोपी है सुखी जहाँ पे वादी स्वर्ग सिधार गया।

उठो साथियों ! आओ मिलकर,
एक साथ श्रम की जय बोलें

उठो साथियों ! आओ मिलकर,
एक बार उनकी जय बोलें,
जो फुटपाथों पर सोते हैं,
ठेला पर बोझा ढोते हैं,
रिक्शा बन रिक्शा जीते हैं,
जूते पर पालिस करते हैं,
होटल में बरतन धोते हैं,
फिर भी भात देख रोते हैं,
इनके आँसू पोछ न पाएं,
तो इनके इस हाल पे रोलें।
उठो साथियों ! आओ मिलकर,
एक साथ श्रम की जय बोलें।

उठो साथियों ! आओ मिलकर,
एक बार उनकी जय बोलें,
जो सबको उत्थान दे रहे,
हर मशीन में प्राण दे रहे,
हर करघे को मान दे रहे,
सूत को भी सम्मान दे रहे,
सबको ईंट मकान दे रहे,
नंगे भूखे जान दे रहे,
इनको रोटी कपड़ा चहिए,
कम से कम इतना तो बोलें।
उठो साथियों ! आओ मिलकर,
एक साथ श्रम की जय बोलें।

उठो साथियों ! आओ मिलकर,
एक बार उनकी जय बोलें,
जो खेतों में अन्न उगाने,
सब्जी और साग उपजाने,
फूल फलों से बाग सजाने,
दूध गार बलटा तक लाने,
में अपना जीवन देते हैं,
फिर भी ये भूखे सोते हैं,
इनकी भूख मिटाने खातिर,
राज पाठ पर हल्ला बोलें।
उठो साथियों ! आओ मिलकर,
एक साथ श्रम की जय बोलें।

उठो साथियों ! आओ मिलकर,
एक बार उनकी जय बोलें,
जिनके लिए गीत रोटी है,
जिनके लिए प्रीत रोटी है,
जिनके लिए मीत रोटी है,
जिनके लिए जीत रोटी है,
इनकी रोटी, छीन रहे जो,
हाथ उठा उनकी छय बोलें।
उठो साथियों ! आओ मिलकर,
एक साथ श्रम की जय बोलें।

उठो साथियों ! आओ मिलकर,
एक बार उनकी जय बोले,
जिनके लिए मरम रोटी है,
जिनके लिए करम रोटी है,
जिनके लिए कलम रोटी है
जिनके लिए धरम रोटी है,
बिकती जहां शरम रोटी पर,
उनके लिए भी रोटी बोलें।
उठो साथियों ! आओ मिलकर,
एक साथ श्रम की जय बोलें।

उठो साथियों ! एक बार बस,
केवल भूखों की जय बोलें,
जो बापू के अनुयाई हों,
जो जेपी के अनुयाई हों,
जो लोहिया के अनुयाई हों,
श्री चन्द्रशेखर, राजनारायण,
कर्पूरी जी के भाई हों,
वह इस भूख का दर्द समझकर,
रोज भूख की क्षय क्षय बोलें।
समाजवाद की जय जय बोलें।
उठो साथियों ! आओ मिलकर,
एक साथ श्रम की जय बोलें।

स्केच : प्रयाग शुक्ल 

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