यह जमीन बचाने की लड़ाई है

0

– सुनीलम –

 

मिट्टी सत्याग्रह यात्रा 30 मार्च को दांडी से शुरू हुई थी। नमक सत्याग्रह स्थल, सरदार पटेल के निवास बारदोली, किसान आंदोलन स्थल,साबरमती आश्रम, गांधीजी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ, मंडी, गुजरात में जहां भी गए, पुलिस की भारी उपस्थिति पाई। सभी कार्यक्रमों के आयोजकों को, यात्रा की व्यवस्था करनेवाले संगठनों और व्यक्तियों को पुलिस अधिकारियों द्वारा दबाव डाले जाते देखा और सुना।

गुजरात के जिस विकास मॉडल को लेकर मोदीजी को देश में सत्ता सौंपी गई थी तथा जो विकास का सबसे आकर्षक मॉडल बताया गया था उसकी चमक गांव-देहात में तो देखने को नहीं मिली लेकिन विकास के नाम पर गांव गांव में किसानों की जमीनें कंपनियां कैसे बड़े पैमाने पर खरीद रही हैं, यहां तक कि किसान की गोचर (निस्तार की जमीन) को भी सरकार के द्वारा कंपनियों को सौंपे जाने के बहुत सारे किस्से सुनने को मिले।

एपीएमसी की मंडियों में खरीद के बारे में किसान नेता विपिन पटेल ने बताया कि भरुच में पिछली बार 50 हजार कपास की गांठें खरीदी गई थीं, इस बार 15 हजार गांठें ही खरीदी गईं।

  हमें गुजरात का जो मॉडल देखने को मिला वह पूरी तरह तानाशाही-भरा लोकतंत्र विरोधी है। इस मॉडल में साबरमती से दांडी यात्रा करनेवालों को रोक दिया जाता है। किसान नेता युद्धवीर सिंह को प्रेस कांफ्रेंस करने से रोका गया। विधायक जिग्नेश मेवानी बताते हैं कि गुजरात में जब भी कहीं कोई संगठन आंदोलन की घोषणा करता है तो उसके नेताओं को आंदोलन आरंभ होने के दिन पुलिस नजरबंद कर देती हैं। कुल मिलाकर भय का वातावरण बना दिया गया है।

जिस गुजरात के गांधीजी ने आज़ादी के आंदोलन के दौरान देश को निडरता (अभय) की सीख दी थी,  उसी गुजरात के नरेंद्र मोदी-अमित शाह मिलकर

डर पैदा कर राज कर रहे हैं।

गुजरात जिस तरह पुलिस स्टेट में तब्दील हुआ है, उसी तरह देश को पुलिस स्टेट में तब्दील करने का कुचक्र चल रहा है। यह स्पष्ट चेतावनी देशवासियों के लिए गुजरात दे रहा है। मोदानी मॉडल (मोदी सरकार द्वारा अडानी जैसे पूंजीपतियों को कम समय में अधिक से अधिक धन बटोरने के लिए नीतियां बनाने वाला मॉडल) को लागू करने के लिए मोदी सरकार देश को पुलिस स्टेट में तब्दील करने का मन बना चुकी है। पहले यह मॉडल भाजपा शासित राज्यों में, बाद में यह पूरे देश में लागू होगा। वैसे यह मॉडल कश्मीर व पूर्वोत्तर में कई दशकों से लागू है। सत्ताधीश सत्ता पर कायम रहने के लिए इसी मॉडल को श्रेष्ठ मानते आए हैं।

गुजरात से राजस्थान जाने पर बागड़ किसान संगठन के साथी बताते हैं कि अभी कुछ समय पहले जब छात्रों ने आदिवासियों के लिए आरक्षित पदों को भरे जाने की मांग को लेकर आंदोलन चलाया था, तब गोली चलाई गई थी जिसमें दो आंदोलनकारी शहीद हो गए तथा पुलिस ने साढ़े चार हजार आंदोलनकारियों पर मुकदमे लगा दिए। तमाम आंदोलनकारी आज भी जेल में है, यानी कांग्रेस सरकार के राज में भी पुलिस दमन जारी है। वहीं दूसरा उदाहरण भी हमें उसी राजस्थान के मुंडोती, जिला अजमेर में देखने को मिला जहां ग्रामवासियों ने खनन माफियाओं से जमीन बचाने के लिए आंदोलन किया तथा सरकार से आवंटन रद्द करा दिया यानी मिट्टी की लड़ाई मुंडोती के किसानों ने लड़ी और जीत हासिल की।

राष्ट्रीय स्तर पर भी यह संघर्ष 127 दिन से 550 किसान संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में जारी है। आंदोलन के दौरान अब तक 315  किसानों की शहादत हो चुकी है, जिनकी स्मृति में शहीद स्मारक 5-6 अप्रैल को बनाए जाएंगे। यात्रा के दौरान बानसूर (राजस्थान) में किसान महापंचायत में किसान नेता राकेश टिकैत को गाजीपुर बॉर्डर के शहीद स्मारक और शाहजहांपुर बॉर्डर के शहीद स्मारक के लिए योगेंद्र यादव को गुजरात के लगभग 800 तथा राजस्थान के लगभग 200 गांवों से लाई गई मिट्टी के कलश सौंपे गए।

आज (4 अप्रैल) सिरसा में जहां किसानों ने पक्का मोर्चा लगाया हुआ है, वहां सभा के बाद हमने किसान चौक पर स्तंभ बनाया।

पिछली बार उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के इस्तीफे की मांग को लेकर मैंने पुलिस को वाटर केनन चलाते और बल प्रयोग करते देखा था। वही पुलिस आज सब कुछ चुपचाप खड़े खड़े देखती रही। इसका मतलब है कि पुलिस पर हरियाणा में किसानों  का दबाव बढ़ा है।

मिट्टी सत्याग्रह यात्रा 6 अप्रैल को पूरी हो जाएगी। किसान आंदोलन अब एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। संयुक्त किसान मोर्चा ने बॉर्डर से दिल्ली के भीतर जाने, मई के पहले पखवाड़े में संसद कूच की घोषणा कर दी है।

सरकार ने तीनों कानूनों को अठारह महीने के लिए स्थगित करने की घोषणा बहुत पहले ही कर दी है। अब उसे तीनों कानूनों को रद्द करने के बारे में गंभीरता से सोचना होगा। हो सकता है सरकार 2 मई के चुनाव नतीजों का इंतज़ार कर रही हो। बंगाल चुनाव पर यदि संयुक्त किसान मोर्चा की भाजपा हराओ अपील का असर पड़ता है तो सरकार जल्दी निर्णय लेने को मजबूर होगी, अन्यथा किसानों और सरकार के बीच टकराव बढ़ेगा। सरकार दमन का रास्ता अपनाएगी और किसान अहिंसक प्रतिरोध का।

मिट्टी सत्याग्रह यात्रा शहीद स्मारक के माध्यम से अमिट छाप छोड़ जाएगी। यह छाप देशभर के विभिन्न गांवों से लाई गई मिट्टी की होगी, जिससे किसानों की भावी पीढ़ियों को अपनी मिट्टी (जमीन) बचाने की प्रेरणा मिलती रहेगी।

Leave a Comment