सोशल मीडिया ने दिखाई ताकत

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— सुनीलम —

देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या में रोज 3 लाख से अधिक पीड़ित जुड़ रहे हैं। औसतन 3000 से अधिक पीड़ितों की रोजाना मौत हो रही है।

देर से सही, सुप्रीम कोर्ट की भी नींद खुली है। हाईकोर्ट तो पहले से ही सक्रिय भूमिका में नजर आ रहे हैं।

ऐसे समय में खबर आई थी कि दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के लिए अनुविभागीय अधिकारी, चाणक्यपुरी ने 25 अप्रैल को अति आवश्यक परिपत्र निकालकर देश के प्रसिद्ध पांच सितारा अशोका होटल में 100 कमरे बुक करने का आदेश दिया है। चाणक्यपुरी की इंसीडेंट कमांडर (अनुविभागीय अधिकारी, गीता ग्रोवर) द्वारा अशोका होटल के मैनेजमेंट और प्राइमस अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट को लिखे गए पत्र में कहा गया था कि दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, न्यायिक अधिकारियों और उनके परिवारजनों के इलाज के लिए तत्काल 100 कमरे उपलब्ध कराए जाने चाहिए। उन 100 कमरों में प्राइमस अस्पताल द्वारा स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। नई दिल्ली के न्यायिक मजिस्ट्रेट दिनेश कुमार मीणा को प्राइमस अस्पताल और होटल के अधिकारियों के साथ बातचीत कर तत्काल यह इंतजाम करने को कहा गया था। इस अति आवश्यक पत्र में कहा गया था कि तत्काल आदेश का पालन नहीं करने पर डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट, 2005 तथा एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897 और आईपीसी की धारा 188 के तहत कार्रवाई की जाएगी।

आदेश पत्र सोशल मीडिया में वायरल हो गया, सभी ने एक स्वर से आदेश की निंदा की, कुछ ने तो यहां तक कह डाला कि दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने अपने लिए इंतजाम करवा लिया, बाकी दिल्ली वालों को अनाथ छोड़ दिया।

अगले दिन उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को लताड़ लगाई तथा यह भी स्पष्ट कर दिया कि 100 कमरों का इंतजाम करने के लिए दिल्ली सरकार से नहीं कहा गया था। तो क्या माना जाए कि दिल्ली सरकार ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को खुश करने के लिए अति उत्साह में यह इंतजाम किया था। हालांकि सूत्र बतलाते हैं ऐसा नहीं था, इशारा मिलने पर ही प्रशासनिक कार्रवाई की गई थी।
जो भी हो अशोका होटल में 100 कमरों की बुकिंग अब रद्द कर दी गई है। दिल्ली उच्च न्यायालय को यह स्वीकार करना पड़ा कि इस तरह की खबरों से न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। पहले कमरे आवंटित होना, फिर रद्द होने से यह तो स्पष्ट हो ही गया है कि आम लोगों के हाथों में सोशल मीडिया एक ताकतवर हथियार बन चुका है जिसे न्यायालय तक नजरअंदाज करने की स्थिति में नहीं है।

सोशल मीडिया का असर उच्च न्यायालय तक सीमित नहीं है। महाबली चुनाव आयोग को भी मद्रास हाईकोर्ट के निर्देश के बाद देशभर में सोशल मीडिया पर सकारात्मक प्रतिक्रिया का संज्ञान लेकर विजय जुलूस पर रोक लगाने का निर्देश जारी करना पड़ा। इसी तरह कोलकाता हाईकोर्ट, मुंबई हाईकोर्ट, जबलपुर हाईकोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणियों का सोशल मीडिया पर भारी स्वागत होने पर सुप्रीम कोर्ट को भी स्वप्रेरणा से संज्ञान लेकर कोरोना की स्थिति को राष्ट्रीय आपदा बताने के लिए मजबूर होना पड़ा तथा केंद्र सरकार को राष्ट्रीय योजना प्रस्तुत करने का आदेश देना पड़ा।

हम उम्मीद कर सकते हैं कि आनेवाले दिनों में देश के अधिक से अधिक नागरिक अपने नागरिक अधिकारों को बचाने और हासिल करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने के लिए आगे आएंगे तथा स्थिति सामान्य होने पर सड़क पर उतर कर संघर्ष करेंगे।

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