21 मई। भारत में पर्यावरण रक्षा आंदोलन का एक बड़ा प्रतीक रहे सुंदरलाल बहुगुणा का शुक्रवार की दोपहर उत्तराखंड के ऋषिकेश में एम्स में देहांत हो गया, जहां वह कोविड के इलाज के लिए भर्ती थे। वह 94 साल के थे।
सुंदरलाल बहुगुणा देश में पर्यावरण को बचाने की चेतना के प्रतीक बन गए थे। देश में पर्यावरण को बचाने का पहला बड़ा आंदोलन उत्तराखंड में 1970 के दशक में चला चिपको आंदोलन था। यों तो यह आंदोलन काफी हद तक स्वत:स्फूर्त ढंग से शुरू हुआ था मगर फिर बहुगुणा ने इसका मार्गदर्शन और नेतृत्व किया। इस आंदोलन ने पर्यावरण संरक्षण को पहाड़ी गांवों की जीविका से जोड़ा और इसमें औरतों की काफी अहम भूमिका रही। आंदोलन के चलते तत्कालीन इंदिरा सरकार को पंद्रह साल के लिए हरे पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने का फैसला करना पड़ा। यही नहीं, आंदोलन के फलस्वरूप बने माहौल में पर्यावरण संरक्षण के लिए कई कानून भी बनाए गए।
लेकिन सुंदरलाल बहुगुणा बार बार अनशन करने के बावजूद टिहरी बांध का बनना नहीं रोक सके। अपनी टिहरी को डूबने से नहीं बचा सके। पर्यावरण की कीमत पर विकास का बुलडोजर अब और तेजी से चल रहा है। एक ओर पर्यावरण संरक्षण के लिए बने कायदे-कानून पूंजीपतियों और बड़ी-बड़ी कंपनियों के हक में बदले जा रहे हैं और दूसरी ओर पर्यावरण संरक्षण के लिए चिंतित और सक्रिय कार्यकर्ताओं को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है, यहां तक कि उनपर झूठे केस दर्ज किए जा रहे हैं। इस जुल्मी रवैए और पर्यावरण का विनाश करनेवाली नीतियों के खिलाफ लड़ना ही सुंदरलाल बहुगुणा को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।