आज तमाम किसान संगठन और श्रमिक संगठन मनाएंगे काला दिवस

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26 मई। संयुक्त किसान मोर्चा ने आज देश भर में काला दिवस मनाने का एलान किया है। इंटक, सीटू, हिंद मजदूर सभा जैसे ‌दस केंद्रीय श्रमिक संगठन भी आज काला दिवस मना रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा यानी देश के तमाम किसान संगठन क्यों आंदोलित हैं यह अब सारी दुनिया जानती है।

लगभग साल भर पहले मोदी सरकार ने तीन ऐसे कृषि कानून बनाए जिनके चलते किसानों को अंदेशा है कि खेती पर बड़ी-बड़ी कंपनियों का कब्जा हो जाएगा। सरकारी मंडी नहीं बचेगी। खाद्य निगम और पीडीएस की भी बलि चढ़ जाएगी। इसलिए ये तीनों कृषि कानून किसानों के खिलाफ तो हैं ही, देश की खाद्य सुरक्षा के भी खिलाफ हैं।

तमाम किसान संगठन प्रस्तावित बिजली बिल का भी विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रस्तावित बिजली बिल कानून बन गया तो खेती के लिए बिजली महंगी हो जाएगी।

श्रमिक संगठनों की नाराजगी यह है कि लंबे अरसे के संघर्ष से श्रमिक आंदोलन को जो कानून बनवाने में सफलता मिली थी उन कानूनों को मोदी सरकार ने एक झटके में खत्म कर दिया। उनकी जगह चार लेबर कोड पूंजीपतियों की मुराद पूरी करने के लिए बनाए गए हैं। आक्रोश का एक और बड़ा कारण यह है कि मोदी सरकार सरकारी उपक्रमों को ताबड़तोड़ बेच रही है।

यह गौरतलब है कि संयुक्त किसान मोर्चा के रूप में जहां देश के तमाम किसान संगठनों ने अपनी एकता बनाए रखी है, वहीं केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की भी आपसी एकजुटता बढ़ी है। यही नहीं, हाल में संयुक्त किसान मोर्चा और ट्रेड यूनियनों के बीच भी समन्वय और संघर्ष में साझेदारी की प्रक्रिया शुरू हुई है। अलग-अलग तारीख पर नहीं, एक ही तारीख पर, 26 मई को, दोनों काला दिवस मना रहे हैं।

26 मई की तारीख चुनने के पीछे कई संयोग हैं। किसान आंदोलन यों तो और पहले से चल रहा था, लेकिन दिल्ली की सीमा पर किसानों का धरना शुरू हुए 26 मई को छह माह हो गए। श्रमिक संगठनों ने भी ठीक छह माह पहले असंगठित क्षेत्र के लिए कैश ट्रांसफर, मुफ्त राशन की सुविधा दिलाने के अलावा नए श्रम कानूनों तथा निजीकरण के विरोध में अपना आंदोलन शुरू किया था। 26 मई को मोदी सरकार के सात साल हो गए और यह अब तक की सबसे ज्यादा मजदूर विरोधी और किसान विरोधी सरकार साबित हुई है।

काला दिवस मनाने के लिए 26 मई की तारीख चुनने पर आरएसएस-भाजपा से जुड़े भारतीय किसान संघ ने एतराज किया है। इसपर दो टूक जवाब देते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि इसमें कोई संदेह नहीं कि मोदी सरकार घोर किसान विरोधी और घोर मजदूर विरोधी सरकार है। ऐसी सरकार के सत्तासीन होने की तारीख को काला दिवस मनाने के लिए चुना गया तो इसमें गलत क्या है। हां, 26 मई को एक और संयोग है, बुद्ध पूर्णिमा का। किसान मोर्चा ने अपने धरना स्थलों पर बुद्ध स्मरण का भी कार्यक्रम बनाया है। बुद्ध शांति और अहिंसा के प्रतीक हैं तो समता दर्शन के प्रेरणा स्रोत भी।

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