(यह लेख दरअसल एक समीक्षा-दस्तावेज है जिसे अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच ने बारीकी से पड़ताल और विचार-विमर्श के बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : प्रमुख आपत्तियां नाम से जारी किया है। कल इसका पहला हिस्सा प्रकाशित हुआ था। आज पढ़िए बाकी हिस्सा।)
26. नियमित शिक्षा के विकल्प के रूप में शिक्षा के सभी स्तरों पर ऑनलाइन पाठ्यक्रम शुरू किए जा रहे हैं, जबकि ये बहुसंख्यक बच्चों के अधिकांश के लिए उपलब्ध ही नहीं हैं।
27. छात्रवृत्तियों को कथित तौर पर मेरिट के आधार पर देने की केंद्रीकृत व्यवस्था बनाई जाएगी। इसका अर्थ है कि सामाजिक वंचना पर आधारित छात्रवृत्तियां खत्म कर दी जाएंगी और इनकी कुल संख्या भी घट जाएगी।
28. विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने व्यापार का संचालन करने और अपने मुनाफों को कहीं भी निवेश करने की छूट दी जा रही है। यह छूट उच्च शिक्षा की पहले से ही स्तरीकृत प्रणाली में एक और परत जोड़ देगी। सार्वजनिक विश्वविद्यालयों से विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रतिभा के पलायन को बढ़ावा मिलेगा और छात्रों व अभिभावकों पर शैक्षिक कर्ज का भयावह बोझ पड़ेगा।
29. यह नीति 200-बिंदु रोस्टर के अनुसार सभी रिक्त पदों पर शिक्षकों की समयबद्ध स्थायी नियुक्तियों से इनकार करती है।
30. यह नीति उचित और समयबद्ध तरीके से संविदा व पैरा-शिक्षकों के नियमितीकरण के मुद्दे को संबोधित नहीं करती है।
31. यह नीति आंगनवाड़ी/ईसीसीई कार्यकर्ताओं को न तो पूर्णकालिक पूर्व-प्राथमिक शिक्षक का पद देती है और न ही उनके उपयुक्त प्रशिक्षण की व्यवस्था करती है।
32. यह नीति स्थायी शिक्षकों की पदोन्नति, 2003 के बाद नियुक्त शिक्षकों के लिए पेंशन और कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्त शिक्षकों के लिए मातृत्व अवकाश व स्वास्थ्य सुविधाओं के मुद्दों को नजरअंदाज करती है।
33. इसमें सभी सरकारी स्कूल शिक्षकों को पूरे ‘स्कूल कॉम्लेक्स’ में काम करने की व्यवस्था की गई है जो 5 किमी से 10 किमी के दायरे में फैले होंगे और दुर्गम इलाकों में भी हो सकते हैं। इससे शिक्षक को होनेवाली परेशानी पर ध्यान नहीं दिया गया है।
34. स्कूल कॉम्लेक्स के प्रस्ताव और निजी स्कूल के साथ सरकारी स्कूल को जोड़ने के विचार के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 विद्यार्थी-शिक्षक अनुपात को कम करने और पड़ोस के सरकारी स्कूलों की अवधारणा को कमजोर करने का रास्ता खोलती है जिससे उनके बंद होने या निजी स्कूल में विलय होने का मार्ग प्रशस्त होता है।
35. यह नीति नियोक्ताओं को कर्मचारियों की प्रोबेशन अवधि बढ़ाने की अनुमति देती है, जिससे शिक्षकों के शोषण की गुंजाइश बनती है।
36. यह संविदाकरण को बढ़ावा देने के लिए टैन्योर ट्रैक प्रणाली की सिफारिश करती है।
37. वरिष्ठता या अनुभव अब पदोन्नति में मानदंड नहीं होगा।
38. यह नीति पदोन्नति में आरक्षण/ सामाजिक न्याय के मानदंडों को समाप्त करती है।
39. यह नीति निजी स्कूल के शिक्षकों की वेतन संरचना को नियंत्रण-मुक्त करती है। सरकारी और निजी स्कूलों की जोड़ी बनाने के प्रस्ताव को देखते हुए यह व्यवस्था सरकारी स्कूल शिक्षकों के वेतन-ढांचे को भी प्रभावित करेगी।
40. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में ‘स्वयंसेवकों’, ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं’, ‘परामर्शदाताओं’,‘स्थानीय प्रतिष्ठित व्यक्तियों’, ‘स्कूल के पूर्व छात्रों’, ‘सक्रिय और स्वस्थ वरिष्ठ नागरिकों’ और ‘सार्वजनिक-उत्साह’ समुदाय के सदस्यों की बड़े पैमाने पर भर्ती का प्रावधान है जो पूर्व प्राथमिक से लेकर स्कूली शिक्षा के हर चरण पर होगी। जाहिर है सत्ता में बैठी पार्टी व संगठन अपने कार्यकर्ताओं को स्कूली शिक्षा में जगह देकर अपने वैचारिक एजेंडे को बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल करेंगे।
41. इससे आगे, सामूहिक सौदेबाजी के लिए शिक्षक संगठनों के लिए कोई जगह नहीं होगी और न ही छात्र संगठनों को आवाज बुलंद करने की आजादी।
42. सत्ता के केंद्रीयकरण के लिए विश्व व्यापार संगठन-गैट (टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौता) के हुक्म के मुताबिक एकल खिड़की प्रणाली की मंजूरी के लिए कार्य किया जा रहा है ताकि निजीकरण और वैश्वीकरण को बढ़ावा देने के साथ-साथ धार्मिक कट्टरतावाद को आगे बढ़ाने के लिए संविधान-विरोधी ब्राह्मणवादी, जातिवादी और पितृसत्तात्मक हिंदू राष्ट्र के एजेंडों को आगे बढ़ाया जा सके।
43. घर की भाषा, मातृ-भाषा, स्थानीय भाषा, क्षेत्रीय भाषा को एक-जैसा मानना खतरनाक है। मातृभाषा की जगह पर क्षेत्रीय या किसी सूबे की भाषा थोपी नहीं जा सकती, चाहे मातृभाषा बोलनेवालों की संख्या कितनी भी कम हो।
44. त्रि-भाषा सूत्र 1960 के दशक से ही काफी विवाद, प्रतिरोध और विभिन्न व्याख्याओं के दौर से गुजरता रहा है। बावजूद इसके, मौजूदा शिक्षा नीति के दस्तावेज में इसकी व्याख्या मौजूद नहीं है।
45. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बड़े दावों के साथ बाल्यावस्था-पूर्व देखभाल और शिक्षा की एक गुप्त कार्ययोजना है जो पूर्व माध्यमिक शिक्षा को बाजार के हवाले करने के लिए है।
46. इससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि बाल्यावस्था-पूर्व देखभाल और शिक्षा को कक्षा 1 और 2 के साथ समायोजित किया जाएगा बिना किसी सार्वजनिक बजट की सुनिश्चितता के।
47. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पहला ऐसा दस्तावेज है जो निजी संस्थानों को मुनाफा कमाने और शिक्षा के क्षेत्र में देश के अंदर और बाहर निवेश करने की छूट देता है।
48. लंबे अरसे से स्थापित निवेश आधारित अवधारणा की जगह परिणाम आधारित अवधारणा के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 आरएसएस द्वारा अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में संचालित एकल विद्यालय (एकल शिक्षक स्कूल) को वैधानिकता देती है और वैसे बजट स्कूलों को बढ़ावा देती है जहां पर्याप्त अधिसंरचना और प्रशिक्षित शिक्षक नहीं होते हैं।
49. निजी क्षेत्र, समुदाय, शिक्षार्थी या अभिभावक की वित्तीय सहायता के बगैर सिर्फ सरकारी व्यय से सार्वजनिक शिक्षा की सुनिश्चितता के संबंध में तपस मजूमदार कमेटी (2005) की सलाह को दरकिनार कर मौजूदा शिक्षा नीति न सिर्फ निजी निवेश, बल्कि शिक्षा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की वकालत करती है।
50. बड़े पैमाने पर निजीकरण को बढ़ावा देते हुए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 चतुराई से संसाधनों की कमी को सिद्ध करना चाहती है। संसाधनों की कमी के झूठ को 1835 के मैकाले के दस्तावेज से ही प्रचारित किया जाता रहा है। यह इसलिए किया जाता रहा है कि उच्च वर्ग का आधिपत्य ज्ञान, रोजगार और समाज पर बरकरार रहे। शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य विकास के सामाजिक क्षेत्र में पर्याप्त संसाधन की गैर-मौजूदगी संसाधनों की कमी की वजह से नहीं है। यह तो राजनीतिक प्रतिबद्धता की कमी की वजह से है।