2 जून। हरियाणा के सार्वजनिक विमर्श में समता, न्याय, सच्चाई व लोकतांत्रिक मूल्यों की बुलंद आवाज डीआर चौधरी जी हमेशा समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों का निर्भीकता से मुकाबला करते रहे। उन्हें कोरोना संक्रमण से हुए दुष्प्रभाव ने हम सब से छीन लिया। 1 और 2 जून की दरमियानी रात को उनका निधन हो गया।
हरियाणा के सिरसा जिला में राजस्थान से सटे गांव चौटाला वासी दौलत राम चौधरी को पहली बार देखने व सुनने का अवसर 1074 में रोड़ी विधानसभा के उपचुनाव के दौरान मिला। इस चुनाव में चौधरी देवीलाल व तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल के खासमखास इंद्राज बैनीवाल के बीच मुकाबला हो रहा था। चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री बंसीलाल हमारे गांव में आये थे। उनका जलसा चल ही रहा था कि मोटर साइकिल पर दो लोग चौधरी देवीलाल का चुनाव प्रचार करते हुए पहुंचे ! उनमें से युवा मोटरसाइकल चला रहा था व वरिष्ठ साथी ने भाषण देना शुरू कर दिया। बंसीलाल जी ने तुरन्त अपना भाषण समेटा और चले गए। फिर मोटरसाइकल पर आए मनीराम बागड़ी जी ने भाषण दिया। उस समय बागड़ी जी के साथ थे दौलत राम चौधरी जी। उन्हीं डीआर चौधरी जी से बाद में 1991 के चुनाव प्रचार के दौरान हरियाणा विकास पार्टी प्रमुख बंसीलाल जी के भिवानी आवास पर मुलाकात का अवसर मिला!
इंदिरा गांधी व बंसीलाल की निरंकुश सत्ता के खिलाफ लोकतंत्र बहाली के लिए लड़ते जिन दौलत राम को 1974 में देखा-सुना, उन्हीं को साप्ताहिक ‘पींग’ का प्रकाशन शुरू कर उसके पन्नों पर भजनलाल (कांग्रेस) की भ्रष्ट व जनविरोधी सत्ता के खिलाफ निडरता व बेबाकी से लिखते हुए पढ़ा। ‘पींग’ में भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करने वाली स्टोरी छपने से भयभीत सत्ता ने उनको गिरफ्तार किया लेकिन समाज के प्रबुद्ध वर्ग के गुस्से को देखते हुए उन्हें बिना शर्त रिहा करना पड़ा।
‘न्याय युद्ध’ के बाद 1987 में चौधरी देवीलाल मुख्यमंत्री बने और 1989 में लोकसभा चुनाव जीत कर केंद्र में चले गए और 2 दिसम्बर 1989 को ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बने जो छह महीने भी पूरे नहीं कर पाए। फिर 12 जुलाई 1990 को छह दिन के लिए और तीसरी बार 22 मार्च 1991 को 22 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने। इसी बीच महम विधानसभा सीट का उपचुनाव हुआ जिसमें ओमप्रकाश चौटाला उम्मीदवार बने। जिसमें हिंसा हुई और चुनाव रद्द हो गया। और अंततः 6 अप्रैल 1991 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। महम कांड का भंडाफोड़ करने और चुनाव रद्द करवाने में डीआर चौधरी की अहम भूमिका रही।
हरियाणा के राजनीतिक विमर्श की दिशा बदलने के प्रयास के साथ-साथ सामाजिक विमर्श को सही दिशा देने के लिए डीआर चौधरी ने लगातार अखबारों में कॉलम लिखने के साथ ही हरियाणा के ताने-बाने को लेकर किताबें भी प्रकाशित कीं। 2007 में उनकी किताब ‘हरियाणा एट क्रोसरॉड्स, प्रॉब्लम्स एंड प्रॉस्पेक्ट्स’ प्रकाशित हुई जिसमें उन्होंने ‘आधुनिक समय में खाप पंचायतों की प्रासंगिकता’, ‘हरियाणा की जातीय राजनीति’, ‘हरियाणा में खेती का संकट’ शिक्षा, औद्योगीकरण, लोकलुभावन राजनीति, महिलाओं के सवाल, किसान ताकत के उभार सहित सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उठाया।
डीआर चौधरी जी ने शिक्षा संबंधी एक और किताब के अलावा 2014 में ‘खाप पंचायतों की प्रासंगिकता’ नामक किताब भी प्रकाशित की जो काफी चर्चित रही। जिस दौर में युवतियों व युवकों में ‘अपनी पसंद’ से शादी करने के मामले सामने आने लगे तो यहां की खाप पंचायतों द्वारा विभिन्न तर्क (जिनमें एक ही गांव में शादी व अंतरजातीय विवाह का विरोध भी शामिल था) देकर इसका विरोध किया जाने लगा! जिसमें बलपूर्वक फैसलों को बदलवाने की घटनाएं भी सामने आईं। उस समय चौधरी साहब ने खाप पंचायतों द्वारा बलपूर्वक फैसले बदलवाने के सामूहिक ‘निर्णयों’ का डटकर विरोध किया। चौधरी साहब की कथनी और करनी में एकरूपता थी। उनकी एक ही गांव में शादी व दो बच्चों की अंतरजातीय शादी इसका उदाहरण है।
डीआर चौधरी जी ने प्रशासनिक स्तर पर भी अहम भूमिका निभाई। हरियाणा पब्लिक सर्विस कमीशन के अध्यक्ष, हरियाणा प्लानिंग बोर्ड के सदस्य जैसे अहम पदों पर रहकर अपना योगदान दिया।
जब बतौर हरियाणा रिफॉर्म्स कमीशन के सदस्य से रिटायर हुए तो तय कर लिया कि अब हरियाणा के सार्वजनिक जीवन में व्यवस्थित संस्थागत भूमिका अदा करने के लिए रोहतक लौट जाएंगे। रोहतक लौटकर डीआर चौधरी जी ने एक कर्मठ साथी एसपी सिंह, जिन्होंने बतौर बैंक अधिकारी त्यागपत्र दे दिया, के साथ मिलकर हरियाणा इंसाफ सोसाइटी स्थापित करने में अपनी ऊर्जा लगाई। यह प्रयोग हरियाणा में सामाजिक विमर्श को आगे बढ़ाते हुए समाज को न्याय व समतामूलक दिशा देने के लिए कृतसंकल्प साथियों का समूह तैयार करने की खातिर किया गया। इसी दौरान जब हरियाणा में लगातार जातिगत द्वेष व अत्याचार के मामले सामने आए तो प्रदेश भर के हमखयाल साथियों व समूहों के साथ चंडीगढ़ में बड़ा सेमिनार आयोजित किया। उस समय भी उनके साथ सम्पूर्ण क्रांति मंच की ओर से सहयोगी होने का अवसर मिला।
जनवरी 2014 में आम आदमी पार्टी में शामिल होकर सक्रिय भूमिका निभाई। मगर आम आदमी पार्टी ने जो उम्मीदें जगाई थीं जब उनसे अलग राह पर चल पड़ी तो उसके खिलाफ आवाज उठानेवाले प्रमुख लोगों में डीआर चौधरी भी थे। फिर 14 अप्रैल 2015 को स्वराज संवाद में शामिल हुए और उसे मजबूत करने के लिए जो भी बन पड़ेगा करने का आश्वासन भी दिया।
2018 में मंदसौर (मप्र) में किसानों पर गोलीबारी के बाद देशभर में किसान आंदोलन नई अंगड़ाई लेने लगा ततो उसी आंदोलन की तैयारी-यात्राओं के बीच योगेन्द्र यादव के साथ डीआर चौधरी जी से मुलाकात हुई। तब अस्वस्थ होने के बावजूद मनासिक रूप से वह दृढ़ लग रहे थे। तब भी हरियाणा के समाज, यहां के सावर्जनिक विमर्श में उभरते रुझान और किसानी-खेती के साथ शिक्षा को लेकर चिंतित थे। यहां यह रेखांकित करना वांछित है कि चौधरी साहब से आखिरी बार मिलने जाने के समय आंटी जी (चौधरी साहब की जीवन संगिनी परमेश्वरी देवी जी) से जाना कि चौधरी साहब गांव की किन परिस्थितियों से उठे और सत्ता के अन्याय के खिलाफ खड़े होने के चलते बार-बार मुश्किल दौर आये, मगर चौधरी साहब ने तब भी व्यक्तिगत हित के लिए अपने व्यक्तिगत संपर्कों का इस्तेमाल नहीं किया। आंटी जी कठिन से कठिन दौर में भी मजबूती से उनके साथ खड़ी रहीं। चौधरी साहब ने अपनी किताब ‘हरियाणा एट क्रोसरॉड्स, प्रॉब्लम्स एंड प्रॉस्पेक्ट्स’ आंटी जी को समर्पित करते हुए यह लिखा भी।
27 मई को भूपिंदर भाई साहब (चौधरी साहब के दो बेटों में से एक) से फोन पर बात हुई तो चौधरी साहब व आंटी जी के कोरोना से संक्रमित होने की जानकारी मिली उसके बाद सूचना थी कि कोरोना के संक्रमण से उबर रहे हैं मगर अचानक रोहतक से गुरुग्राम के अस्पताल में शिफ्ट करने की सूचना मिली तो चिंता बढ़ गई। बीते कल चौधरी साहब को वापिस घर ले आया गया था। मगर रात में चौधरी साहब शारीरिक रूप से साथ छोड़ गए! मगर उनके सामाजिक सरोकार, समझ, विचार, न्याय-समता-लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता, बेहतर समाज के लिए संघर्ष की बहुत बड़ी विरासत हमारे पास है। इस विरासत को संभालना और आगे बढ़ाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
– राजीव गोदारा