दिल्ली की सरहदों पर किसान आंदोलन ने 200 दिन‌ पूरे किए

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13 जून। लगातार चल रहा किसान आंदोलन भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की ओर जानेवाले मुख्य राजमार्गों पर कल 200 दिनों के विरोध प्रदर्शन को पूरा कर लेगा। 26 नवंबर 2020 को दिल्ली की सीमाओं पर लाखों आंदोलकारियों के पहुंचने से पहले कई राज्यों में महीनों तक कई विरोध प्रदर्शन हुए। इस लिहाज से यह आंदोलन 200 दिनों से भी ज्यादा लंबा है। हालांकि, नरेंद्र मोदी सरकार अपने जोखिम पर आंदोलनकारियों द्वारा उठाए जा रहे बुनियादी मुद्दों और उनकी प्रमुख मांगों की अनदेखी करना जारी रखे हुए है। विभिन्न राज्यों में ग्रामीण भारत का मिजाज चुनाव परिणाम सामने आने से स्पष्ट है और इधर किसान आंदोलन भी अपनी गति से आगे बढ़ रहा है।

आंदोलन स्थलों पर अब भी ऊर्जा का प्रभाव बढ़ता जा रहा और अभी ‘चढ़ती कलां’ का समय है। आन्दोलनकारी अपने शांतिपूर्ण संघर्ष में और अधिक से अधिक दृढ़ होते जा रहे हैं। उन्होंने कड़ाके की ठंड और सर्दी, तेज आंधी-तूफान, चिलचिलाती गर्मी और अब बारिश की शुरुआत का डटकर सामना किया है। धान की बुवाई का मौसम शुरू होने के बावजूद अधिक से अधिक किसान सीमा पर आ रहे हैं।बारिश के पानी से उनके टेंटों में बाढ़ आ गई है, वे अपने मंच के कार्यक्रमों को जारी रखते हैं और यदि आवश्यक हो, तो बारिश के दौरान भी ये लगातार चल रहा जैसे कि आज हुआ। उन्हें बारिश में भीगने से भी कोई परहेज नहीं।

26 जून को ‘कृषि बचाओ लोकतंत्र बचाओ’ दिवस घोषित किया गया है, इस संघर्ष को और तेज करने की तैयारी चल रही है। यह तारीख संघर्ष के सात महीने पूरे होने और इस तरह आंदोलन लंबे समय से एकजुट और टिके रहने का प्रतीक है। 26 जून को भारत के आपातकाल की 46वीं वर्षगांठ भी है, एक ऐसे समय का दौर जिसे हमारे इतिहास में कभी भुलाया नहीं जा सकता। भाजपा सरकार के शासनकाल में देश आज अघोषित आपातकाल और सत्तावादी शासन जैसा महसूस कर रहा है, उसके खिलाफ किसानों के इस आंदोलन सहित कई और आंदोलन व संघर्ष इसमें शामिल हैं।

गौरतलब है कि 26 जून को महान किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती की पुण्यतिथि भी है। 26 जून को होनेवाले विरोध प्रदर्शन में पूरे भारत में जिला/तहसील स्तर पर विरोध प्रदर्शनों के अलावा विभिन्न राज्यों के राजभवनों पर धरना-प्रदर्शन होंगे। संयुक्त किसान मोर्चा ने सभी प्रगतिशील संस्थानों और नागरिकों से अपील की है, जिनमें ट्रेड यूनियन, व्यापारी संघ, महिला संगठन, छात्र और युवा संगठन, कर्मचारी संघ और अन्य शामिल हैं, कि किसान आंदोलन से हाथ मिलाकर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन में शामिल हों।

संयुक्त किसान मोर्चा ने बीकेयू एकता उग्राहन के ट्विटर अकाउंट पर ‘अस्थायी प्रतिबंध’ की कड़ी निंदा करते हुए नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दमन के खिलाफ सरकार को चेतावनी दी है। एसकेएम ने चेतावनी देते हुए कहा कि भारत सरकार द्वारा नागरिकों की आवाज को लगातार दबाना अस्वीकार्य है और सरकार को इससे बचना चाहिए।

जब से मोदी सरकार के किसान विरोधी, कारपोरेट समर्थक कानूनों के खिलाफ विरोध शुरू हुआ, तब से किसान उनके मॉल, पेट्रोल स्टेशनों और अन्य स्थानों पर लगातार धरना देकर विभिन्न कॉर्पोरेट घरानों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और अलग-अलग राज्यों के टोल प्लाज़ाओं को फ्री करने का काम चल रहा सो अलग। पंजाब के साथ-साथ राजस्थान जैसे अन्य राज्यों में कॉरपोरेट आउटलेट्स और सुविधाओं पर इस तरह का महीनों से विरोध जारी है। इस अभियान के तहत, अडानी ड्राई पोर्ट एंट्री पॉइंट्स को भी महीनों से अवरुद्ध कर दिया गया है। यह निर्णय लिया गया है कि कॉरपोरेट घरानों के खिलाफ ये विरोध प्रदर्शन, जिन घरानों के इशारे पर मोदी सरकार नागरिकों के खिलाफ जाने को तैयार है, शांतिपूर्ण तरीके से जारी रहेंगे और किसानों की मांगों को पूरा करने के बाद ही आंदोलन वापस लिया जाएगा।

संयुक्त किसान मोर्चा ने मांग की है कि हरियाणा प्रशासन जींद के कंडेला गांव के एक लापता किसान बिजेंद्र सिंह का पता लगाए, जो इस साल 26 जनवरी को लापता हो गया था। बिजेंदर की विधवा मां अपने बेटे की तलाश में दर-दर भटक रही है और लापता किसान का पता लगाने के लिए प्रशासन अपनी मशीनरी को सक्रिय नहीं कर रहा है।

इस बीच गाजीपुर मोर्चा को मजबूत करने के लिए पिछले दो दिन में पश्चिम बंगाल और बिहार से अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति से जुड़े कई किसान पहुंचे।


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