— उपेन्द्र शंकर —
पालनपुर (गुजरात) से राजस्थान, हरियाणा से होते हुए दिल्ली तक फैली 698 किलोमीटर लंबी, दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में से एक, अरावली पर्वतमाला का सबसे लम्बा और महत्त्वपूर्ण हिस्सा राजस्थान में पड़ता है। राजस्थान के 18 जिलों के 130 ब्लॉक्स तक इस पर्वतमाला की पूरी या अधिकांश पहुँच है। अरावली का अर्थ ही है पत्थरों या चट्टानों की दीवार।
यह पर्वतमाला राजस्थान के लिए जीवनरेखा का काम करती है। एक तो इसने अपने नाम के अर्थ को सार्थक करते हुए, शेष राजस्थान में मरुस्थलीकरण को रोक रखा है, और दूसरा, मानसून के दौरान बादलों के लिए यह अवरोध प्रदान करती है। अरावली के वन सामान्य वर्षा को आकर्षित भी करते हैं और प्रभावित भी, और यही एकमात्र रास्ता है जिससे राजस्थान में बारिश होती है।
राजस्थान की तीन प्रमुख नदियाँ अरावली पर्वतमाला से ही निकलती हैं- बनास,लूनी और साहिबी। साथ ही इसी पर्वतमाला से इनकी दर्जनों सहायक नदियाँ भी निकलती हैं, जैसे मोरल, जवाई, बांदी। यह पर्वतमाला नदियों में वर्षा के प्रवाह को सुगम बनाकर लाखों लोगों के लिए ताजा पानी उपलब्ध कराती है। इसके आलावा प्रदेश की जानी-मानी झीलें – नक्की, फतेहसागर, पुष्कर, सिलिसेड, आनासागर, राजसमन्द, जलमहल भी अरावली की पहाड़ियों के पानी से ही पल्लवित रहती हैं।
अरावली पर्वतमाला अपने क्षेत्र में भूजल को रिचार्ज करके, स्थानीय जल सुरक्षा को भी प्रभावित करती है। अरावली में बहुत सारी दरारें और तरेड़ हैं और ये दरारें और तरेड़ क्षेत्र में भूजल पुनर्भरण का काम करती हैं।
अरावली पर्वतमाला वहां चल रही गतिविधियों जैसे पत्थर- तुड़ाई और कटाई, पेड़ों की कटाई, बड़े पैमाने पर निर्माण, खनन और कचरे के डंपिंग से न सिर्फ प्रभावित है बल्कि उसका ह्रास हो रहा है- वो अपने खात्मे की तरफ अग्रसर है।
2017 के एक अध्ययन के अनुसार इस पर्वतमाला का करीब चालीस फीसद हिस्सा पिछले चालीस सालो में समाप्त हो गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित सेंट्रल एमपॉवर्ड कमेटी की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार इसकी 128 पहाड़ियों में से 31 पिछले पचास सालों में समाप्त हो चुकी हैं, साथ ही इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 1967-68 से राजस्थान में अवैध खनन के कारण अरावली रेंज का 25 प्रतिशत समाप्त हो गया है। यह लगभग 10,300 हेक्टेयर लीज सीमा के बाहर उन 15 जिलों में प्रभावित हुआ जहां 80 प्रतिशत अरावली स्थित है।
राजस्थान अरावली में वन आवरण का क्षरण भी स्पष्ट है। 1972-75 के दौरान राजस्थान के अरावली जिलों में विभिन्न श्रेणियों के वनों के तहत 10,462 वर्ग किमी क्षेत्र दर्ज किया गया। दिल्ली स्थित राजीव गांधी इंस्टीट्यूट फॉर कंटेम्पररी स्टडीज की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार 1981-84 तक वनक्षेत्र घटकर 6,116 वर्ग किमी रह गया।
अरावली की इस पारिस्थितिकी के ह्रास का प्रभाव राजस्थान की जल सुरक्षा पर अवश्य पड़ेगा जिसे अभी भी देखा जा सकता है।
एनएस राठोर और देवयानी राठोर (उदयपुर यूनिवर्सिटी ) के एक अध्ययन के अनुसार, अरावली पर वनों की कटाई और अधिकांश पहाड़ी ढलानों पर से मिट्टी का हटना जैसा सूक्ष्म जलवायु परिवर्तन विशेष रूप से वर्षा की प्रकृति में बदलाव का कारण बना। यदि हम राजस्थान सरकार के सिंचाई विभाग का डाटा देखें तो पता लगता है कि बारिश के दिनों में लगातार कमी आ रही है- 1973 में बरसात की अवधि 101 दिन थी,1985 में 64 दिन, 2011 में 48 दिन और 2015 में घट के 45 दिन रह गयी।
अरावली में खनन का एक और बुरा प्रभाव यह है कि अधिक गहराई तक खनन किये जाने से, वो अकुइफेर यानी जलभर संरचनाओं में छेद कर जल प्रवाह को अव्यवस्थित कर देता है- कई बार बहाव क्षेत्र में निर्माण कार्य या भूमि उपयोग में बदलाव भी इनके भराव की प्रकिया बदल सकते हैं। जून 2017 में सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड ने गुरुग्राम में भूजल को रिचार्ज में मदद करनेवाले इलाकों में 5 हिस्सों की मैपिंग की (बादशाहपुर, सेक्टर 56 और 47 हरियाहेडा भोंडसी। उन्होंने पाया कि शहर में बड़े पैमाने पर खनन और निर्माण कार्य होने के कारणए अकुइफेर्स को पानी न मिलने का खतरा बढ़ता जा रहा है।
अरावली क्षेत्र में भूजल स्तर के तेजी से गिरने में भी खनन को एक बड़ा कारण माना जा रहा है। साथ ही वनों का विनाश, मिट्टी का कटाव और बहाव क्षेत्र में निर्माण के कारण झीलों और बांधों में गाद और तलछट की तेजी से बढ़ोतरी के कारण इनकी पानी सँभालने की क्षमता और कार्य निपुणता में कमी आती है। जयपुर के पास का रामगढ़ बाँध इसका एक उदहारण है। इन सब के कारण ही अरावली की पहाड़ियों में कई महीनों चलनेवाले बरसाती झरने अधिकांशतया खत्म हो गए।
सरकारें और प्रशासन खनन जारी रखने के लिए कुछ ऐसा भी कर जाती हैं जो पूरी तरह गैर- वैज्ञानिक होता है और अवैध भी कहा जा सकता है। इसका एक अच्छा उदाहरण कंट्रोलर ऑडिटर जनरल ऑफ़ इंडिया ने अपनी एक रिपोर्ट में दिया है। उन्होंने लिखा है कि 2005 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, अरावली और उसके जंगलों में दिसम्बर 2002 के बाद की दी गयी खनन की सभी अनुमतियाँ अमान्य हो गयी थीं लेकिन सरकार और प्रशासन ने इसकी पूरी तरह अवहेलना की। इसके बाद न सर्फ लीज का नवीनीकरण किया गया बल्कि नई लीज भी दी गयीं। (टाइम्स ऑफ इंडिया, मार्च 2018)
लेकिन अरावली पर्वत क्षेत्र को बचाना ही होगा, क्योंकि इसकी राजस्थान में पानी के संवर्धन के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका है।