अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का विरोध

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15 जून। जब से किसान आंदोलन शुरू हुआ है, सरकार प्रदर्शनकारियों के साथ-साथ उनके समर्थकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रही है।

न केवल भारत के किसान संगठनों और उनके समर्थक समूहों ने अपने सोशल मीडिया स्पेस को बार-बार प्रतिबंधित पाया है, बल्कि दूसरी जगहों के उनके समर्थकों के साथ भी ऐसा हुआ है। शांतिपूर्ण किसान आंदोलन पर लागू किए गए इंटरनेट शटडाउन का कोई औचित्य नहीं था। एक बड़े किसान संगठन का ट्वीटर अकाउंट अभी तक निलंबित है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी नागरिकों का एक बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकार है, और सरकार अपनी राजनीतिक इच्छा के आधार पर इसपर अंकुश नहीं लगा सकती जैसा कि अभी हो रहा है। निश्चित रूप से लोकतांत्रिक अधिकारों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अपेक्षा अधिक अधिकार शामिल हैं, पर असहमति और विरोध का अधिकार लोकतंत्र का अभिन्न अंग है।

मोदी सरकार ने मौजूदा किसान आंदोलन को कभी देशद्रोही, कभी अलगाववादी और कभी आतंकवादी कहकर बदनाम करने की कोशिश की है। मंगलवार को एक महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि विरोध करने का अधिकार गैरकानूनी नहीं है और कई छात्र कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों से जुड़े मामले में यूएपीए के अर्थ के भीतर इसे ‘आतंकवादी अधिनियम’ नहीं कहा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि ‘राज्य के दिमाग में, संवैधानिक रूप से सुनिश्चित विरोध के अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा कुछ धुंधली होती जा रही है’। 300 दिनों से अधिक समय से जेल में बंद देवांगना कलीता, आसिफ इकबाल तन्हा और नताशा नरवाल को मंगलवार को जमानत पर रिहा कर दिया गया। लाइनों का यह धुंधलापन कुछ ऐसा है जिसे सरकार और सत्ताधारी दल ने जानबूझकर किसान आंदोलन के खिलाफ भी इस्तेमाल किया है।

खबर है कि सोमवार को झज्जर में भाजपा कार्यालय के लिए रखी गई आधारशिला को उखाड़ने के संबंध में प्राथमिकी दर्ज की गई है, जिसमें हरियाणा के गृहमंत्री ने कड़ी कार्रवाई की धमकी दी है। संयुक्त किसान मोर्चा ने इस कार्रवाई की निंदा करते हुए एफआईआर को तुरंत वापस लेने की मांग की है। हरियाणा में कुछ अन्य घटनाओं में, किसानों ने स्वयं एक नए भवन और पार्क का उदघाटन किया (हिसार जिले के बरवाला में जहां विधायक जोगीराम सिहाग को एक कार्यक्रम में जाना था तथा हांसी में जहाँ विधायक विनोद भयाना को एक पार्क का उदघाटन करना था, किसानों के आक्रोश के डर से वह कार्यक्रम में नहीं आए)। किसानों ने भाजपा और जजपा के निर्वाचित नेताओं के खिलाफ अपना विरोध जारी रखा है।

बीकेयू डकौंडा से जुड़े किसानों के कुछ और जत्थे मंगलवार को सिंघू और टिकरी धरनास्थलों पर पहुंचे| विरोध प्रदर्शन में शामिल होनेवाली महिला किसानों की संख्या गौरतलब है। उन्होंने कृषि पर कॉरपोरेट-समर्थक कानूनों के प्रभावों को समझकर और पुरुषों के साथ समान स्तर पर विरोध प्रदर्शनों में शामिल होकर जारी संघर्ष को और अधिक शक्तिशाली बना दिया है।

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