खेती बचाओ लोकतंत्र बचाओ आह्वान का श्रमिक संगठनों ने किया समर्थन

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16 जून। भारत के लाखों श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करनेवाले केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के साथ-साथ अन्य ट्रेड यूनियन निरंतर सक्रिय रूप से संयुक्त किसान मोर्चा की तीन कृषि कानूनों और बिजली विधेयक को निरस्त करने तथा एमएसपी को कानूनी गारंटी देने की मांगों का समर्थन करते आ रहे हैं है। 26 मई को संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर पूरे देश में लाखों श्रमिकों ने विरोध प्रदर्शनों में सशरीर भाग लिया था। एकजुटता और समर्थन के इस क्रम को जारी रखते हुए दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने एक बार फिर 26 जून 2021 को पूरे देश में ‘कृषि बचाओ, लोकतंत्र बचाओ’ दिवस मनाने के आह्वान को समर्थन दिया है।

इसपर संयुक्त किसान मोर्चा ने आभार व्यक्त करते हुए इस समर्थन को किसान-मजदूर एकता की अभिव्यक्ति कहा है। दूसरी ओर संयुक्त किसान मोर्चा ने भी ट्रेड यूनियनों की तरफ समर्थन का हाथ बढ़ाते हुए चार श्रम संहिताओं को निरस्त करने और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के अलावा सार्वजनिक सेवाओं के निजीकरण के खिलाफ जारी श्रमिकों के संघर्ष में साथ देने की घोषणा की है। संघर्ष में बेहतर समन्वय सुनिश्चित करने के लिए जल्द ही एसकेएम और ट्रेड यूनियनों की बैठक होने की उम्मीद है।

इस बीच, किसान अपनी कृषि उपज का उचित और लाभकारी मूल्य पाने के लिए स्थानीय विरोध और संघर्ष को जारी रखे हुए हैं। हाल ही में तेलंगाना में ज्वार किसान अपने लगातार विरोध के लिए चर्चा में थे, वहीं महाराष्ट्र में दूध उत्पादकों ने भी अपने आंदोलन की घोषणा की है।

दिल्ली बॉर्डर के विभिन्न मोर्चों पर और अधिक आन्दोलनकारी पहुंच रहे हैं। बीकेयू टिकैत के नेतृत्व में किसानों का एक बड़ा दल बुलंदशहर से दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर के लिए रवाना हुआ। प्रदर्शनकारी यहां 90 किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा कर आ रहे हैं।

डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ऑफ पंजाब के नेतृत्व में हजारों शिक्षक आज टिकरी बॉर्डर पहुंचे। इसके अलावा कई जगहों पर कॉरपोरेट हाउस आउटलेट्स, टोल प्लाजा और अन्य जगहों पर स्थानीय स्तर पर विरोध प्रदर्शन जारी है। पंजाब में 100 से ज्यादा जगहों पर ऐसे पक्के मोर्चे जारी हैं, कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन के ढाई सौ दिनों से भी ज्यादा हो रहे हैं।

हरियाणा के जींद जिले के खटकर टोल प्लाजा पर बीती रात एक प्रदर्शनकारी किसान ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। बताया जा रहा है कि चल रहे संघर्ष पर सरकार की ओर से प्रतिक्रिया न मिलने से वह व्यथित थे।

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