— राजेश प्रसाद —
– गुरुदेव, अयोध्या में चल रही भूमि-लीला समझ में नहीं आ रही है! अत्यंत चिंतित हूं।
– हे वत्स, जिसका चित्त प्रभु के चरणों में लगा रहता है, केवल वही प्रभु की लीलाओं को, कर्मफल को और पुनर्जन्म के रहस्य को जान सकता है।
– सो कैसे, गुरुदेव?
– त्रेता युग में विभीषण और उसकी पत्नी सरमा को प्रभु की कृपा से स्वर्णमयी लंका का राज्य मिला था। इन दोनों के हृदय में प्रभु के श्रीचरण बसे थे। प्रभु की सेना में अनेक वानर-भालू ऐसे थे, जिनका रोम-रोम प्रभु-प्रेम से आप्लावित था। प्रभु जन्म-जन्मांतर तक भक्तों की चिंता करते हैं।
– अद्भुत! प्रभु की अनुकम्पा अपरंपार है!
– वत्स, कलियुग में प्रभु के अवतार के प्रभाव से विभीषण और सरमा ने हरीश और कुसुम के रूप में जन्म लिया है।
– अत्यंत विस्मयकारी बात है, गुरुदेव! बड़े भाग्यशाली हैं, दोनों!
– वे वानर, जिनका ध्यान युद्ध में कम लगता था, प्रभु ने उन्हें चंपत, अनिल और ऋषिकेश के रूप में धरती पर भेजा है।
– अवश्य ही युद्ध के समय फल-फूल खाने में ज्यादा समय लगाते रहे होंगे!
– तुमने सही पकड़ा है, वत्स! मार्गदर्शक मंत्री अति बूढ़े जामवंत के अतिरिक्त एक और भालू उस सेना में था, जो युद्ध के प्रथम दिन ही वीरगति को प्राप्त हुआ था, इसलिए उसका न वाल्मीकि को पता चला, न तुलसी को। उस भालू ने सुल्तान अंसारी के रूप में जन्म लिया है।
– अहा! प्रभु समदर्शी हैं!
– एक वानर उस भालू का मित्र था। उस वानर ने रविमोहन के रूप में जन्म लेकर प्रभु की अनुकम्पा प्राप्त की है। दोनों इस जन्म में भी मित्र हैं।
– आपने तो कर्म-रहस्य खोल कर रख दिया गुरुदेव! एक जिज्ञासा मेरे मन में है। आपने कहा कि कलियुग में प्रभु के अवतार के प्रभाव से…इसका क्या अर्थ है? क्या प्रभु अवतार लेनेवाले हैं?
– वत्स, अवतार हो चुका है।
– अवतार हो चुका है! कब? कहां? मेरे हृदय में अनुभूति क्यों नहीं हो रही है?
– शौक-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा करो, वत्स! ‘भक्त’ की दृष्टि से देखोगे तो प्रभु दिख जाएंगे। त्रितापों से मुक्त ‘अच्छे दिनों’ से युक्त प्रभु का राज्य भी दिख जाएगा!
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