हम सब पित्ती जी के ऋणी हैं : राजकुमार जैन

0
बदरी विशाल पित्ती
बदरी विशाल पित्ती

डॉ राममनोहर लोहियासोशलिस्‍ट पार्टी व बदरीविशाल पित्‍ती ये तीन नाम आपस में ऐसे गुँथे हैं कि चाहकर भी इनको अलग नहीं किया जा सकता।

पित्ती परिवार हैदराबाद के निज़ाम प्रशासन का विश्‍वसनीय साहूकार था। ‘राजा बहादुर की पदवी से नवाजे गए प्रपितामह के दादा रायबहादुर, ‘सर नाइटहुड से अलंकृत किए गए दादा। ‘राजा’ के खिताब से जाने गए पिता के घर में जन्‍म लेनेवाले बदरीविशाल पित्ती सोशलिस्‍ट बनकर अनेक बार गरीबोंकिसानोंमजलूमोंमजदूरों की खातिर और लोकतंत्र के सवाल पर सत्‍याग्रह करते हुए जेल गए।

1955 में बनी अखिल भारतीय सोशलिस्‍ट पार्टी का केंद्रीय कार्यालय सुदूर दक्षिण में हैदराबाद में ही लोहिया ने क्‍यों बनायाक्‍योंकि वहाँ पर इस बड़ी जि़म्‍मेदारी को संभालने वाले रावेल सौमेयाबदरीविशाल जी जैसे नेता या कार्यकर्ता मौजूद थे। समाजवादी आंदोलन का विशेषकर डॉ लोहिया का विपुल साहित्‍य अगर आज उपलब्‍ध है तो इसका श्रेय बदरीविशाल जी को जाता है।

डॉ. लोहिया यायावर थेउनका कोई एक ठिकाना नहीं था। उनके व्‍याख्‍यानोंवक्‍तव्‍योंलेखों का संग्रह करने में बदरीविशाल जी ने अपने आपको पूर्णकालिक रूप से खपा दिया था। डॉ. साहब का ज्‍यादातर साहित्‍य उनके भाषणों से संग्रहित किया गया है। उस समय भाषणों के टेप होनेफिर लिपिबद्ध करने तथा उसको संपादित करने के श्रमसाध्‍य कार्य के बादउसको छपवाने, छोटी-छोटी पुस्तिकाएं बनवाकर वितरित करने का कार्य कोई मिशनरी ही कर सकता था। उस समय आज जैसी तकनीकी सुविधा भी नहीं थी।

डॉ. लोहिया के निजी सचिव रह चुके प्रसिद्ध कवि कमलेश जी उस समय हैदराबाद से निकलने वाली पत्रिका ‘कल्‍पना’ के संपादक मंडल में काम करते थे। उन्‍होंने लिखा है कि-

डॉ॰ साहब की कोई सभा होती हैदराबाद में तो अवश्‍य हीप्राय: अन्‍य शहरों में भी बदरीविशाल जी टेपरिकॉर्डर लेकर वहाँ उपस्थित रहते। उन दिनों अच्‍छी टेप की मशीनें भारी और बड़े बक्‍से के आकार की होती थीं। डॉ. साहब का बोला हुआ एक-एक शब्‍द रिकार्ड होता था। जब डॉ. साहब हैदराबाद से बाहर दौरे पर जातेतब भी बदरीविशाल जी की कोशिश रहती कि वहाँ भी उनके  भाषण रिकार्ड करने की व्‍यवस्‍था हो जाए। सोशलिस्‍ट पार्टी की बैठक हैदराबाद में होती या हैदराबाद के बाहर, पार्टी सम्‍मेलन होते और उनमें डॉ. साहब का व्‍याख्‍यान होता तो उसे भी बदरीविशाल जी स्‍वयं उपस्थित रहकर रिकार्ड करते।”

मई 1967 में दिल्‍ली पुलिसकर्मियों की हड़ताल हुई। पुलिस यूनियन के नेता तथा ओमप्रकाश आर्य ने दिल्‍ली के सप्रू हाउस हाल में डॉ. साहब की पुलिसकर्मियों के समर्थन में एक सभा करवाई। मैं भी उस सभा में मौज़ूद था। बदरीविशाल जी भी वहाँ आए हुए थेउनके एक सहायक डॉ. साहब का भाषण टेप कर रहे थे। बीच में दो बार बदरी जी उठकर टेपिंग मशीन पर कार्य करने वाले कार्यकर्ता को समझाने गए।

कमलेश जी ने बदरीविशाल जी के बारे में लिखा है कि “बदरीविशाल जी अपनी देखरेख में इन टेपों को कागज पर उतरवाते। मैंने तो अनेक बार उन्‍हें स्‍वयं ही यह कार्य करते देखा है। व्‍याख्‍यान के टाइप हो जाने के बाद बदरीविशाल जी स्‍वयं उसका संपादन करते। यह सब करते उनमें अद्भुत सावधानीएकाग्रतादत्तचित्ततामनोयोग और कार्य के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव दिख पड़ता था। लोकसभा में लोहिया जी के भाषणों को बदरीविशाल जी ने सुसंपादित किया। उन्‍होंने लोहिया जी के वक्‍तव्‍योंलेखोंपत्रों और अन्‍य सामग्री का विषयवार संयोजन करके इनकी किताबें बनाईं और प्राय: इन किताबों का अंतिम प्रूफ भी स्‍वयं देखा। यह सब सामग्री बदरीविशाल जी ने अपने प्रेस से ही छपवाई। मुझे याद है कि हमारे छात्र जीवन में लोहिया साहित्‍य नवहिंद प्रकाशनहैदराबाद से प्रकाशित होकर छोटी-छोटी पुस्तिकाओं में चार-पांच  रुपये कीमत में मिलता था।

बदरीविशाल जी मात्र एक राजनैतिक कार्यकर्ता नहीं थे। संस्‍कृतिसाहित्‍यकलासंगीत में भी उनकी गहरी रुचि थी। उन्होंने ‘कल्‍पना’ पत्रिका संचालित की। यह अपने समय की सर्वश्रेष्‍ठ साहित्यिक पत्रिका थी। जिस किसी साहित्‍यकारकवि लेखक की रचना उसमें छप जाती थीसाहित्यिक जगत में उसका डंका बज जाता था। डॉ. लोहिया ऐसे राजनेता थे जिनके इर्दगिर्द उस समय के श्रेष्ठ, नामी- गिरामी साहित्‍यकारकविलेखकसंगीतकाररंगकर्मी जुटे रहते थे। हिंदुस्‍तान की  राजनीति में ऐसा दूसरा उदाहरण मुश्किल से देखने को मिलेगा। विश्‍वप्रसिद्ध पेन्‍टर मकबूल फिदा हुसेनडॉ. लोहिया पर इतने फिदा थे कि उन्‍होंने लोहिया साहित्‍य की हर पुस्‍तकपुस्तिका का आवरण चित्र निशुल्‍क बनाया था। हुसेन ने रामायण पर अपनी प्रसिद्ध चित्र-श्रृंखला ‘रामायण’ लोहिया के सुझाव पर ही बनाई थी।

बदरीविशाल जी दिल्‍ली आए हुए थे। मधुजी (मधु लिमये) के घर पर उनसे बातचीत के दौरान डॉ. राममनोहर लोहिया समता न्‍यास को दिल्‍ली में संस्‍थागत इलाके में प्‍लाट आंबटन कराने की बात चली। बदरीविशाल जी ने कहा कि  वी.पी. सिंह (विश्‍वनाथ प्रसाद सिंह) की सरकार तथा चंद्रशेखर जी की सरकार के समय भरसक प्रयत्‍न करने के बावजूद समता न्‍यास को जमीन नहीं मिल पाई है।

दिल्‍ली में राजनीतिक पार्टियोंव्‍यक्तिगत  ट्रस्‍टों तथा अन्‍य संस्‍थाओं को सरकार की ओर से जो भूमि आबंटित हुई थीउससे मैं भलीभाँति परिचित था। मुझे बेहद गुस्‍सा आया। राजनारायणजी और चंद्रशेखरजी ऐसे राजनेता थे कि उनका कार्यकर्ता कितनी भी आवेशपूर्ण बात उनके सामने कर देवे बुरा नहीं मानते थे।  मैं चंद्रशेखरजी से बहुत सी बातों में छूट ले लिया करता था और जो मन में होता थाउनसे कह दिया करता था। चंद्रशेखरजी प्रधानमंत्री थेमैं उनकी पार्टी समाजवादी जनता पार्टी का दिल्‍ली प्रदेश अध्‍यक्ष था। मैं चंद्रशेखर जी के तीनमूर्ति निवास स्‍थान पर  पहुँच गया। रोष में मैंने चंद्रशेखरजी को यहाँ तक कह दिया कि लोहिया के नाम पर आज भी अलगाव चल रहा हैकई लोगों को आपने जमीन अलाट की हैपर समता न्‍यास को नहीं। चंद्रशेखरजीझल्ला गए और बोले राजकुमार, तुम क्‍या बक बक कर रहे होमेरे सामने कभी यह बात नहीं आई। उसी क्षणउन्‍होंने दिल्‍ली के उपराज्‍यपाल श्री मारकण्‍डे  सिंह को, जो उनके मित्र भी थेफोन करवाया तथा भोजपुरी में कहा कि तुम्‍हारे पास बदरीविशाल पित्ती की अर्जी आई होगीफौरन उनको जमीन अलाट करो। अगर तुम्‍हें कोई दिक्‍कत हो तो फाइल लेकर मेरे पास आओमैं उस पर आदेश दूँगा।

चंद्रशेखरजी ने 800 वर्ग गज का एक प्‍लाट वसंत कुंज में समता न्‍यास को आबंटित कर दिया। मधु जी के कहने पर कमल मोरारका ने अपने धन से एक भव्‍य भवन  का निर्माण करवा दिया जिसका उद्घाटन मधु लिमयेरवि रायचंद्रशेखरजी तथा डॉ हरिदेव शर्मा की मौजूदगी में हुआ। उस दिन के कार्यक्रम के संचालन की जिम्‍मेदारी मुझे दी गई थी। बाद में किन्‍हीं कारणवशउस भवन को गिराकर मुलायम सिंह जी के सहयोग से भवन पुन: निर्मित करवाया गया। डॉ हरिदेव शर्मा की असमय मृत्‍यु हो गई। सोचा यह गया था कि वे  जवाहरलाल नेहरू म्‍यूजियम लायब्रेरी के डिप्‍टी डायरेक्‍टर के पद से सेवानिवृत्त हो रहे हैं, सो उनके नेतृत्‍व में वहाँ समाजवादी साहित्‍य की लायब्रेरीउसके प्रकाशन, बिक्री तथा अन्‍य समाजवादी गतिविधियों का संचालन होगा। बदरीविशाल जी और हरिदेव जी की योजना को उनके जीवनकाल में अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। हरिदेवजी की बड़ी इच्‍छा थी कि उनके पास 55-60 हजार अति महत्त्वपूर्ण किताबों का जो ज़खीरा था, उसे वह समता न्‍यास में दे देंगे। इसी तरह अन्‍य समाजवादियों के पास जो महत्त्वपूर्ण पुस्‍तकें,  साहित्‍य तथा दस्‍तावेज़ हैं वे भी वहाँ पहुँच जाएंगे। एक सोशलिस्‍ट पत्रिका का नियमित प्रकाशन भी वहाँ से होता रहेगा।

लोहिया से निकटता के कारण बदरीविशाल जी ने अपने कई संस्‍मरणों में समाजवादी आंदोलन के अति महत्त्वपूर्ण प्रसंगों पर प्रकाश डाला है। डॉ. लोहिया पर उनके विरोधी अक्‍सर यह आरोप लगाते रहे हैं कि वह पार्टी-तोड़क हैउन्‍होंने सोशलिस्‍ट पार्टी को तोड़ा है। बदरीविशाल जी ने एक महत्त्वपूर्ण घटना का उल्‍लेख करते हुए इसके संबंध में लिखा है कि ‘नागपुर में प्रजा समाजवादी पार्टी का सम्‍मेलन थाआचार्य कृपलानी अधिवेशन की अध्‍यक्षता कर रहे थेक्‍योंकि वो पार्टी के अध्‍यक्ष भी थे। उनका एक वाक्‍य मेरे कानों में गूंजता हैजिसका तात्‍पर्य  यह है कि लोहिया इस पार्टी को मत तोड़ोगोली चलाने का (केरल सरकार) जो तुमने यहाँ पर सवाल उठाया हैजिसको मुद्दा बनाया है वह सही है पर पार्टी को मत तोड़ो (अँग्रेजी में उन्‍होंने कहा था कि “यू हैव गॉन वन स्‍टेप अहेड ऑफ महात्‍मा गांधीयू आर ए लीनियर वन इन द हिस्‍ट्रीलोहिया डोन्‍ट  ब्रेक दिस पार्टी’)। गोली चलानेवाली सरकार रहे या इस्‍तीफा देइस सवाल पर जब वोटिंग हुई तो पक्ष में 303 वोट पड़े और विरोध में 297। डॉ. साहबआर.के. मिश्रा के घर पर ठहरे हुए थे। मैं पहला आदमी था जो डॉ. साहब से मिला। वोटिंग के बाद मैंने उनसे कहा कि साहब 297 वोट या जितने भी मिले हैंतीन सौ तीन वोट उनको मिले हैंअब आप इसमें समय नष्‍ट मत कीजिए और जिस ढंग से आप सोचते हैं उस ढंग से पार्टी कोनयी पार्टी को बनाने की बात सोचिए। डॉ. साहब लेटे हुए थे और उठकर एकदम खड़े हो गए और उन्‍होंने कहा कि क्‍या मजाक करते होयह कोई पार्टी बनानाचलानातोड़ना कोई आसान चीज़ हैऔर जैसी कि उनकी आदत थीउन्‍होंने एक घूंसा मारा (प्‍यार से) और कहा कि इस तरह की लड़कपन की बात मत किया करोपार्टी तोड़ने का सवाल ही नहीं उठता। मधु लिमये को निकाल दिया गयाउत्तर प्रदेश की इकाई (पार्टी) को भंग कर दिया गया,  तो भी डॉ. साहब नई पार्टी बनाने के पक्ष में नहीं थे। लेकिन जब उनको पार्टी से निकाला गया तब मजबूरी हो गई थी कि वह एक नई पार्टी बनाएं।

बदरीविशाल जी लोहिया के प्रति बेहद भावुक थे। उन्‍होंने एक जगह लिखा है कि  “जब डॉ. लोहिया की बात की जाए या उनके बारे में कुछ कहा जाए तो दिल में एक आंधी-सी आ जाती हैजो मन को बड़ा अस्‍त-व्‍यस्‍त कर देती हैकभी-कभी तो इतना अभिभूत हो जाता है आदमी कि क्‍या कहे और क्‍या न कहे?”

राजसी ठाठ-बाट में पले-बढ़े बदरीविशाल जी की गुरुभक्ति की अद्भुत कहानी उन्‍हीं के शब्‍दों में- “एक बार दिल्‍ली में गुरुद्वारा रकाबगंज वाले घर में डॉ. साहब की मालिश कर रहा था। मैं मानता हूँ कि मैं बहुत अच्‍छी मालिश कर लेता हूँ और इतनी अच्‍छी कि आदमी को नींद आ जाए। मैं लुंगी बाँधे था और घर के पीछे एक चारपाई पर लेटे हुए डॉ. साहब की मालिश कर रहा था। डॉ. साहब कलकत्ता से आए हुए घनश्‍याम दास बिड़ला के सबसे विश्‍वस्‍त कर्मचारी दुर्गाप्रसाद मंडेलिया  से बात करते करते सो गए मैंने मालिश बंद कर दी और हाथ धोने चला गया। वह सज्‍जन भी उठकर आ गए। उन्‍होंने मुझसे कहा, भैया तुम मालिश बहुत बढ़िया करते हो। दिल्‍ली में कहाँ रहते होमालिश का क्‍या लेते हो। मैंने कहा, जी हाँ, मालिश अच्‍छी तरह करता हूँदिल्‍ली में रहता हूँमालिश का कुछ नहीं लेता। उन्होंने मेरा नाम पूछा। मैंने अपना नाम बतलायातो वह हक्‍के-बक्‍के होकर लगे माफी माँगने।

प्रसंगवश मुझे भी स्‍मरण हुआ कि नवंबर 1966 में मैं दिल्‍ली की तिहाड़ जेल में डॉ. लोहिया के साथ बंद  था। मैंने देखा था कि डॉ. साहब कुर्सी पर बैठे हुए थे। जनेश्‍वर मिश्र उनके सिर की मालिश कर रहे थे। हम पचासों कार्यकर्ता पास में ही बैठे हुए थे। लोहिया के प्रति उपजे इस भक्तिभाव को देखकर मेरे मन में भी यह भावना उत्‍पन्‍न हुई।

संयुक्‍त सोशलिस्‍ट पार्टी के अधिवेशनों मेंशिविरों में बदरीविशाल जी के भव्‍य व्‍यक्तित्‍व की झलक देखने को मिलती थी। बदरीजी सम्‍मेलन स्‍थल पर सफेद कुर्ताआंध्र की जरी किनारी वाली हरी-लाल पट्टी की धोती तथा जैकेटआँखों पर सुंदर फ्रेम का चश्‍मा लगाए हुए होते थे। हैदराबाद के तीन-चार साथी परछाईं की तरह उनके साथ लगे होते थे। विशेषकर लंबेबलिष्‍ठ शरीरऐठी हुई मूछें रखनेवाले नरसिम्‍हा रेड्डी (पूर्व गृहमंत्री तेलंगाना) जिनका हाल ही में निधन हुआ। समाजवादी आंदोलन सदैव बदरीविशाल जी का ऋणी रहेगा।

एक बार हैदराबाद में एक प्रेस कॉनफरेंस में किसी पत्रकार ने डॉ. लोहिया से सवाल किया कि आप तो समाजवादी हैंपर हैदराबाद में आपके सबसे बड़े समर्थक बदरीविशाल पित्ती एक बड़े पूँजीपति हैं, क्‍या यह आपके समाजवाद का विरोधाभास नहीं हैइसके उत्तर में  डॉ. लोहिया ने कहा कि मेरे पूँजीपति बदरीविशाल में तथा नेहरू के पूंजीपतियों में एक बड़ा अंतर हैबदरी मेरे साथ रहकर निरंतर धन गँवा रहा हैनेहरू के साथी निरंतर पहले से और अधिक धनी होते जा रहे हैं। यह फर्क हैमेरे और नेहरू के समर्थकों में।

समाजवादी आंदोलन सदैव बदरीविशाल पित्तीजी का ऋणी रहेगा।

Leave a Comment