
— मकबूल फिदा हुसेन —
डॉ राममनोहर लोहिया एक असीम ऊर्जा के धनी नायक थे। सन पचास और साठ के दशक में जब वे हैदराबाद में थे, मुझे उनके साथ लंबा वक्त बिताने का अवसर मिला। उनका व्यक्तित्व विशाल था, वे दूरदृष्टि संपन्न राजनेता था। मैं उनके साथ सात वर्ष रहा। एक बार वे मुझसे बोले- “तुम टाटा और बिड़लाओं के लिए चित्र बनाते हो, कभी-कभी इस देश के साधारण लोगों के लिए भी बनाया करो। चित्रकला केवल धनी-मानी लोगों के लिए नहीं है। अगर तुम्हारी कला इस देश के साधारण लोगों के लिए होगी तो वे तुम्हें कहीं ज्यादा आदर व सम्मान देंगे। उन्होंने मुझसे रामायण और महाभारत के चित्र यह कहते हुए बनवाये कि इस देश में अनेक पौराणिक चरित्र हैं, आप उन्हें चित्रित कीजिए, लोग पसंद करेंगे। यहां लोग छोटे से पत्थर में भगवान को ढूंढ़ लेते हैं। चित्र देखकर तो वे और आनंदित होंगे।”

लोहिया जी ने इस बात पर जोर दिया था कि नगरों के बजाय गाँव के लोग तुम्हारी कला को ज्यादा समझेंगे। उनकी बात सही निकली। जब मैं अपनी मोटर-कार पर भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर बनाके घूमने निकल पड़ा तो शहर के लोगों ने उसे तवज्जो नहीं दी, लेकिन गाँव के लोग उसे देखकर बहुत खुश हुए। तब मुझे लगा कि इस देश से अंग्रेज चले जरूर गए हैं पर अपने मानस-पुत्रों को यहां छोड़ गये हैं जिन्हें यहां की संस्कृति से लगाव नहीं है। लोहिया जी की सलाह पर मैंने आठ साल तक रामायण के आधार पर डेढ़ सौ चित्र कैनवास पर बनाये।
यह काम मैंने ऐसे ही नहीं शुरू कर दिया था। मैंने बाकायदा काशी के पंडितों को आमंत्रित कर उनसे विषय पर चर्चा की। वाल्मीकि एवं गोस्वामी तुलसीदास की रामायण को लेकर गहन अध्ययन किया। तब कहीं जाके चित्र बनाये। मुझसे पहले राजा रवि वर्मा ने ही हिंदू पौराणिक चरित्रों पर काम किया था।
भारतीय संस्कृति एवं परंपरा के प्रति डॉ. राममनोहर लोहिया के हृदय में गहरा आदरभाव था। सभी धर्मों का वे सम्मान करते थे। आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं उनसे जुड़ी तमाम समृतियां अनायास चली आती हैं।
लोहिया जी खान-पान के शौकीन थे। वे हमें खाना खिलाने सड़क किनारे ढाबों पर ले जाते और बड़ी आत्मीयता से बातें करते। अँगरेजी का एक शब्द भी उनके मुँह से कभी निकलते नहीं देखा। वे लोगों से अपनी मातृभाषा में बोलने के लिए कहते थे। बाद में उन्होंने भाषा के मुद्दे पर बड़ा आंदोलन भी चलाया।
देश को आज ऐसे नेतृत्वकर्ताओं की जरूरत है। आज के नेता तो जोड़ने के बजाय तोड़ने की बात ज्यादा करते हैं। लोहिया जी महिलाओं को समर्थ व सक्षम होते देखना चाहते थे। एक बार उन्होंने मुझसे रामायण की सीता पर चर्चा करते हुए कहा कि वाल्मीकि ने सीता का जिस दृढ़ रूप में वर्णन किया है, गोस्वामी तुलसीदास ने वैसा नहीं किया। भारतीय नारियों को उनकी सलाह थी कि सीता के बजाय वे द्रौपदी को अपना आदर्श बनाएं।
वे मानते थे कि द्रौपदी बहुत ही सबल नारी थी। डॉ. लोहिया महान राष्ट्रभक्त थे। परंतु वे हमें जल्दी छोड़कर चले गये। अगर वे और लंबे समय तक जीवित रहते तो देश को बड़ा लाभ होता।
आज के हमारे नेताओं को देश से कोई लगाव नहीं है। वे जनता के धन पर डाका डालकर अपनी जेबें भरने में लगे हैं, ऐसे में लोहिया बहुत याद आते हैं।
Discover more from समता मार्ग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.
















