त्रिलोचन की कविता

0
पेंटिंग : प्रयाग शुक्ल
त्रिलोचन (20 अगस्त 1917 – 9 दिसंबर 2007)

हँसकर, गाकर और खेलकर

 

हँसकर, गाकर और खेलकर पथ जीवन का

अब तक मैंने पार किया है, लेकिन मेरी

बात और है, ढंग और है मेरे मन का;

उसी ओर चलता है जिधर निगाह न फेरी

दुनिया ने। दुखों ने कितनी आँख तरेरी,

लेकिन मेरा क़दम किसी दिन कहीं न अटका –

घोर घटा हो, वर्षा हो, तूफ़ान, अँधेरी

रात हो। अगर चलते-चलते भूला-भटका

तो इससे मेरे संकल्पों को कुछ झटका?

लगा नहीं। जो गिरता-पड़ता आगे बढ़ता

है, करता कर्तव्य है, उसे किसका खटका;

पग-पग गिनकर पर्वत-श्रृंगों पर हूँ चढ़ता।

 

आभारी हूँ मैं, पथ के सब आघातों का,

मिट्टी जिनसे वज्र हुई उन उत्पातों का।

Leave a Comment