22 जुलाई। सेंचुरी के श्रमिकों का सत्याग्रही संघर्ष 1375 दिन पूरा कर चुका है। इस बीच सेंचुरी कंपनी को खरीद कर पूरी संपत्ति 62 करोड़ रुपए में अपने कब्जे में लेने का दावा किया है। श्रमिकों में से 873 श्रमिक और कर्मचारी मिलकर वीआरएस का प्रस्ताव नकार चुके हैं, उन्हें निकालने की साजिश मनजीत ग्लोबल कंपनी करती रही है। जिन श्रमिकों के पास उसी मकान के आधार पर मतदान कार्ड, आधार कार्ड, आदि बने हुए हैं, जिन्हें नोटिस देकर, ‘मकान खाली करने बाद आपकी कानूनन बची हुई राशि दे दी जाएगी’ यह चेतावनी नोटिस चस्पा कर चुके हैं उन्हें भी अपने घर तक पहुंचने से रोका जा रहा है। यह गैरकानूनी है।
श्रमिकों ने अपनी ताकत भी लगायी, प्रशासकों से संवाद भी किया। लेकिन प्रशासकों की बात भी पूरी तरह न माननेवाले मनजीत कंपनी के नुमांइदों ने, बाल-बच्चों तक को, रात 10 बजे तक हैरान-परेशान किया। काफी हील-हुज्जत के बाद आखिरकार कयों को अंदर जाने दिया गया।
दूसरी ओर वीआरएस स्वीकार करनेवाले करीब तीस कर्मचारी आज भी कंपनी के क्वाटर्स में रह रहे हैं।
मनजीत ग्लोबल प्रा.लि. और मनजीत कॉटन प्रा.लि. कंपनियों ने सेंचुरी मैनेजमेन्ट से जो कंपनियां खरीदी हैं, उनकी संपत्ति, उसका मूल्यांकन, शासन को शुल्क का भुगतान आदि का ब्योरा श्रमिकों के समक्ष प्रस्तुत न करते हुए बिक्री की गई।
मिल्स बंद करने के लिए किसी भी कंपनी को औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत जो कानूनी प्रक्रिया चलानी पड़ती है, उसका पालन बिल्कुल नहीं किया गया।
वीआरएस स्वीकार न करनेवाले सेंचुरी के श्रमिकों ने श्रमिक जनता संघ के नेतृत्व में कई सवाल उठाये हैं –
* क्या सेंचुरी ने पूरी जमीन औऱ संपदा, मनजीत ग्लोबल और मनजीत कॉटन को बेची है?
* क्या संपत्ति का मूल्यांकन सही रूप से, सरकारी रेट से किया गया है?
* क्या स्टैम्प ड्यूटी पूर्ण रूप से भुगतान की गयी है?
* क्या इस संपत्ति का कब्जा नयी कंपनी ने पाया है?
हर साल 350 से 700 करोड़ तक नगद मुनाफा कमानेवाली सेंचुरी टेक्सटाइल एंड इंडस्ट्रीज लि. ने वेयरइट ग्लोबल के साथ फर्जी बिक्रीनामा करके फिर से फर्जीवाड़ा किया है?
– राजकुमार दुबे, सत्येन्द्र यादव, संतलाल दिवाकर