लोकतंत्र के सलीब पर साइबर जासूसी की कील!

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— श्रवण गर्ग —

टेक्नॉलाजी ने आदमी और प्रजातंत्र दोनों को ही खत्म कर देने की कोशिशों को आसान कर दिया है। दुनिया के कुछ मुल्कों, जिनमें अमरीका आदि के साथ भारत भी शामिल हो रहा है, ने स्थापित कर दिया है कि सत्ता में बने रहने के लिए करोड़ों नागरिकों का विश्वास जीतने में ताकत झोंकने के बजाय कुछ अत्याधुनिक तकनीकी उपकरणों, आईटी सेल्स जैसी व्यवस्थाओं और साइबर विशेषज्ञों में निवेश करना ज्यादा आसान और फायदेमंद रास्ता है। परम्परागत देसी तरीके और अति विश्वसनीय समर्थक भी ऐन मौके पर धोखा दे सकते हैं पर खरीदे हुए विशेषज्ञ और विदेशी तकनीकें नहीं।

सत्ता की राजनीति में आवश्यकता अब नागरिकों का विश्वास जीतने की नहीं बल्कि उन्हें प्रभावित करके उनके विचारों को बदलने तक सीमित कर दी गयी है।

दुनिया भर के मुल्कों में जैसे-जैसे सत्तासीन शासकों के द्वारा प्रजातंत्र की रक्षा के नाम पर अपनाये जा रहे ग़ैर-प्रजातांत्रिक कारनामों का खुलासा हो रहा है, नागरिकों ने उनसे पहले के मुकाबले ज्यादा खौफ खाना शुरू कर दिया है। इजरायल में निर्मित जासूसी करने के उच्च-तकनीकी और महँगी कीमत वाले पेगासस सॉफ्टवेयर या स्पाईवेयर की मदद से आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों पर नियंत्रण के नाम पर नागरिक समाज के कुछ चिह्नित किये गये सदस्यों के खिलाफ इस्तेमाल को भी इसी नजरिये से देखा जा सकता है।

पूर्व सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्री और सात जुलाई को हुए मंत्रिमंडलीय फेरबदल में हटाये जाने के पहले तक देश में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के विकास और उसके इस्तेमाल करने की पताका फहराने वाले रविशंकर प्रसाद ने जो कुछ कहा है उसने चल रहे विवाद की गम्भीरता को और बढ़ा दिया है। रविशंकर प्रसाद ने बजाय इन आरोपों का खंडन करने के, कि सरकार विरोधियों की जासूसी कर रही है, पलटकर यह पूछ लिया कि जब दुनिया के पैंतालीस देश पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो भारत में इस बात पर इतना बवाल क्यों मचा हुआ है?

रविशंकर प्रसाद के कहे के बाद एक नया डर उत्पन्न हो गया है। वह यह कि किसी दिन कोई अन्य महत्त्वपूर्ण व्यक्ति खड़े होकर यह बयान नहीं दे दे कि अगर दुनिया के 167 देशों के बीच ‘पूर्ण’ प्रजातंत्र सिर्फ तेईस देशों में ही है और सत्तावन में अधिनायकवादी व्यवस्थाएँ कायम हैं तो भारत को लेकर इतना बवाल क्यों मचाया जा रहा है?

ब्रिटेन के प्रसिद्ध अंग्रेजी अखबार ‘द गार्डियन’ का कहना है कि जो दस देश कथित तौर पर जासूसी के कृत्य में शामिल हैं वहाँ अधिनायकवादी सत्ताएँ काबिज हैं।

अपने राजनीतिक विरोधियों अथवा अलग विचारधारा रखनेवाले लोगों, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों आदि की जासूसी पूर्व की सरकारों में शरीरधारी मानवों के द्वारा करवायी जाती रही है। आपातकाल में जिन लगभग डेढ़ लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया था उनमें भी सभी वर्गों के नागरिक शामिल थे। तब मोबाइल फोन भी नहीं थे। मार्च 1991 में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार को, कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस लेकर, केवल इस एक कारण से गिरा दिया था कि हरियाणा सीआईडी के दो सादी-वर्दी धारी जवान दस जनपथ के बाहर चाय पीते हुए पकड़ लिये गये थे। कांग्रेस ने तब आरोप लगाया था कि इन लोगों को राजीव गांधी की जासूसी करने के लिए तैनात किया गया था।

ताजा मामले में तो आरोप यह भी है कि जिन लोगों की जासूसी हो रही थी उनमें अन्य लोगों के अलावा सरकार के ही मंत्रीउनके परिवारजनघरेलू कर्मचारी और अफसर, आदि भी शामिल रहे हैं।

चंद्रशेखर के जमाने तक अगर नहीं जाना हो और वर्तमान सरकार के जमाने की ही बात करनी हो तो सिर्फ अक्टूबर 2018 तक ही पीछे लौटना पड़ेगा। तब सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा के सरकारी बँगले के सामने की सड़क पर इधर-उधर ताक-झांक करते देखे गये चार व्यक्तियों को पकड़ लिया गया था। बाद में पता चला था कि चारों इंटेलिजेन्स ब्यूरो (आईबी) के लोग थे।

तब आरोप लगाया गया था कि आलोक वर्मा की जासूसी करवायी जा रही है। गृह मंत्रालय की ओर से उसे रुटीन ड्यूटी बताया गया था। उस घटना के लगभग तीन साल बाद अब आलोक वर्मा का नाम भी कथित तौर पर उन लोगों की सूची में शामिल पाया गया है जिनके फोन की जासूसी पेगासस स्पाईवेयर के जरिये हुई है। चूँकि उस समय चर्चा रही कि सरकार वर्मा से काफी नाराज थी इसलिए आज पूछा जा सकता है कि उनके बँगले के बाहर आईबी के लोग किसने तैनात करवाये थे?

कोई शरीरधारी आदमी जब अपने ही जैसे दूसरे आदमियों की जासूसी करता है तो नागरिकों को ज्यादा डर नहीं लगता। ऐसा इसलिए कि यह आदमी सिर्फ निशाने पर लिये गये शिकार के आवागमन और उसके अन्य लोगों से मिलने-जुलने की ही जानकारी जमा करता है। बातचीत को सुनने के लिए फोन टैपिंग के अलावा घरों में सेंध लगाकर गुप्त उपकरण स्थापित करने पड़ते हैं। हाल ही में जब राजस्थान की कांग्रेस सरकार में विद्रोह जैसी स्थिति बन गयी थी तब जासूसी के परम्परागत तरीके ही विद्रोहियों के खिलाफ आजमाये गये थे। पर कर्नाटक में जनता दल (एस) और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार को गिराने में पेगासस स्पाईवेयर के इस्तेमाल के आरोप अब उजागर हो रहे हैं। अंततः पूरा मामला संसाधनों की उपलब्धता और सत्ताओं की नीयत पर टिक कर रह जाता है।

नागरिक के ज्यादा डरने के कारण तब उत्पन्न हो जाते हैं जब उसे पता चलता है कि कोई हुकूमत या अज्ञात सत्ता चाहे तो अदृश्य तकनीक की मदद से हजारों मील दूर बैठ कर भी उसके शयन कक्ष में पहुँच कर उसके अंतरंग क्षणों को उसी के मोबाइल कैमरों के जरिए प्राप्त कर सकती हैबातें सुन सकती हैउनकी रिकॉर्डिंग कर सकती हैसंदेशों को पढ़ सकती है और अंततः उसकी जिंदगी को कैद कर सकती है।

नागरिक को तब लगने लगता है कि उसे अब अपने बेडरूम में अंदर से कुंडी लगाना भी बंद कर देना चाहिए। पेगासस जासूसी का मामला अभी दुनिया के पचास हजार लोगों तक ही सीमित बताया जा रहा है पर यह संख्या किसी दिन पाँच लाख या पाँच और पचास करोड़ तक भी पहुँच सकती है।

नागरिक जब सरकारों में बैठे हुए व्यक्तियों और उनके चेहरों की बदलती हुई मुद्राओं के बजाय उनके द्वारा इस्तेमाल किये जानेवाले गुप्त और अदृश्य तकनीकी उपकरणों से खौफ खाने लगें तो भय व्यक्त किया जाना चाहिए कि कहीं एक और देश तो उन मुल्कों की जमात में शामिल होने की तैयारी नहीं कर रहा है जहां या तो लोकतंत्र पूरी तरह से समाप्त हो चुका है या फिर आगे-पीछे हो सकता है। ऐसी स्थितियाँ तभी बनती हैं जब शासकों को लगने लगता है कि उनकी लोकप्रियता घट रही है या काफी लोग उनके खिलाफ गुप्त षड्यंत्र कर रहे हैं।

हुकूमतें तकनीकी रूप से चाहे जितनी भी सक्षम क्यों न हो जाएँ, नागरिकों के मन के अंदर क्या चल रहा है उसका तो पता नहीं कर सकतीं। हां, वे इतना जरूर कर सकती हैं कि अगर लोगों ने बोलना पहले से ही कम कर रखा है तो उसे अब पूरा बंद कर दें। इशारों में भी बातें नहीं करें। क्योंकि आधुनिक तकनीक ने इतनी क्षमता प्राप्त कर ली है कि वह इशारों की भाषा को भी डीकोड कर सकती है। नागरिक तब केवल अपने ही मन की बात सुन पाएँगे और लोकतंत्र को बचाने की सारी चिंताओं से भी अपने को आजाद कर लेंगे। पता किया जाना चाहिए कि पेगासस खुलासे के बाद से कितने लोगों ने अपने मोबाइल बंद कर दिये हैं, शयनकक्षों से दूर रख दिये हैं या उनसे पूरी तरह दूरी बनाकर रहने लगे हैं।

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