— रामबाबू अग्रवाल —
समाजवादी नेताओं में राममनोहर लोहिया के बाद जनेश्वर मिश्र को सबसे ज्यादा इज्जत दी जाती है। जनेश्वर मिश्र बेहद लोकप्रिय और सादगीपसंद नेताओं में गिने जाते थे। उन्होंने जिस व्यक्ति को विधानसभा चुनाव में हराया वह बाद में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना और फिर देश का प्रधानमंत्री भी बना।
जनेश्वर मिश्र (5 अगस्त 1933 – 22 जनवरी 2010) समाजवादी पार्टी के एक राजनेता थे। समाजवादी विचारधारा के प्रति उनकी दृढ़ निष्ठा के कारण वे ‘छोटे लोहिया’ के नाम से प्रसिद्ध थे। वे कई बार लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रहे। उन्होंने मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, एचडी देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल के मंत्रिमंडलों में काम किया। सात बार केंद्रीय मंत्री रहने के बाद भी उनके पास न अपनी गाड़ी थी और न बंगला।
जवेश्वर मिश्र का जन्म 5 अगस्त 1933 को बलिया के शुभनतहीं गांव में हुआ था। उनके पिता रंजीत मिश्र किसान थे। बलिया में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद 1953 में इलाहाबाद पहुंचे जो उनका कार्यक्षेत्र रहा।
जनेश्वर मिश्र ने अपना राजनीतिक करियर दाओबा इंटर कॉलेज से शुरू किया। उन्होंने तमाम युवाओं को समाजवादी संघर्ष और विचार से जोड़कर राजनीतिक सक्रियता प्रदान की। वहीं, डॉ लोहिया के विचारों के लिए संघर्ष करनेवाले लोकबंधु राजनारायण का भी जनेश्वर मिश्र पर काफी प्रभाव पड़ा। इसके बाद वह समाजवादी युवजन सभा में सम्मिलित हो गये और फिर वे राममनोहर लोहिया के संपर्क में आए।
जनेश्वर मिश्र, राममनोहर लोहिया के निजी सचिव थे। ऐसे में उन पर समाजवाद के प्रणेता कहे जानेवाले लोहिया के विचारों का खासा प्रभाव पड़ा। जनेश्वर मिश्र ने लोहिया के साथ बहुत दिनों तक काम किया। इस दौरान उन्होंने लोहिया के विचारों और कार्यशैली को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया था। जब लोहिया का देहांत हुआ तो इलाहाबाद में एक बड़ी सभा हुई। इसमें समाजवादी नेता छुन्नन गुरु ने कहा कि जनेश्वर मिश्र के अंदर राममनोहर लोहिया के सारे गुण हैं और वह एक तरह से ‘छोटे लोहिया’ हैं। इसके बाद उनका नाम ‘छोटे लोहिया’ पड़ गया और लोग उन्हें इसी नाम से पुकारने लगे।
1967 में उनका राजनैतिक सफर शुरू हुआ। वह जेल में थे तभी लोकसभा का चुनाव आ गया। छुन्नन गुरु व सालिगराम जायसवाल ने उन्हें फूलपुर से विजयलक्ष्मी पंडित के खिलाफ चुनाव लड़ाया। चुनाव सात दिन बाकी था तब उन्हें जेल से रिहा किया गया। चुनाव में जनेश्वर को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद विजयलक्ष्मी पंडित राजदूत बनीं। 1967 के लोकसभा चुनाव के दौरान वह आंदोलनों के जरिये इतना लोकप्रिय हो गये कि पुलिस ने उन्हें जेल में बंद कर दिया।
फूलपुर सीट पर 1969 में उपचुनाव हुआ तो जनेश्वर मिश्र सोशलिस्ट पार्टी से मैदान में उतरे और जीते। लोकसभा में पहुंचे तो राजनारायण ने ‘छोटे लोहिया’ का नाम लिया। वैसे इलाहाबाद में उनको लोग पहले ही छोटे लोहिया के नाम से पुकारने लगे थे।
उन्होंने 1972 के चुनाव में यहीं से कमला बहुगुणा को और 1974 में इंदिरा गांधी के अधिवक्ता रहे सतीश चंद्र खरे को हराया। इसके बाद 1978 में जनता पार्टी के टिकट से इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे और विश्वनाथ प्रताप सिंह को पराजित किया। उसी समय वह पहली बार केंद्रीय पेट्रोलियम, रसायन एवं उर्वरक मंत्री बने। इसके कुछ दिन बाद ही वह अस्वस्थ हो गये। स्वस्थ होने के बाद उन्हें विद्युत, परंपरागत ऊर्जा और खनन मंत्रालय दिया गया। चरण सिंह की सरकार में जहाजरानी व परिवहन मंत्री बने। 1984 में देवरिया के सलेमपुर संसदीय क्षेत्र से चंद्रशेखर से चुनाव हार गये। 1989 में जनता दल के टिकट पर इलाहाबाद से लड़े और कमला बहुगुणा को हराया। इस बार संचार मंत्री बने। फिर चंद्रशेखर की सरकार में 1991 में रेलमंत्री और एचडी देवगौड़ा की सरकार में जलसंसाधन तथा इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में पेट्रोलियम मंत्री बनाये गये। 1992 से 2010 तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे।
जनेश्वर जी छोटे-बड़े सभी कार्यकर्ताओं से मिलते थे। लड्डू खिलाते थे और बोलते थे, रामबाबू इंदौर से नमकीन लाया होगा, उसका झोला उठा लो और सबको खिलाकर रहते थे। उनके दिल्ली स्थित बंगले पर लिखा था- ‘लोहिया के भूले-बिसरे लोग’। इंदौर आते तो सिर्फ साथियों से मिलना एवं समाजवादी आंदोलन को गति प्रदान करना ही उनका लक्ष्य रहता था। प्रथम बार अगस्त 1967 से समाजवादी युवजन सभा के इंदौर सम्मेलन में ही नौजवानों के हीरो बन गये और मुझे सौ नौजवानों को दिल्ली आंदोलन में लाने की जवाबदारी भी दी थी। उस समय संविद की सरकार म.प्र. में थी। उन्होंने कहा कि डॉ. लोहिया की औलादो, अगर अपनी सरकार भी अन्याय करे, जुल्म करे और निर्दोषों पर गोली चलाए तो भी चुप नहीं रहना है, अन्याय के खिलाफ लड़ना है।
जीवन के आखिरी समय तक वह सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे। केंद्र सरकार में महत्त्वपूर्ण मंत्रालय सँभालने के बाद भी वह देश के उन गिने-चुने नेताओं में से थे, जिनके पास न तो निजी वाहन रहा और न कोई पास, न तो कोई बंगला ही रहा। वह इलाहाबाद के कीडगंज मुहल्ले में एक किराये के मकान में रहते थे। यह उनके जमीन से जुड़े नेता होने की ही पहचान थी। 22 जनवरी 2010 को हार्ट अटैक से उनका इलाहाबाद में निधन हो गया।
संघर्षों से कभी पीछे नहीं हटे
‘छोटे लोहिया’ ने कभी संघर्षों से मुंह नहीं मोड़ा। चाहे कितनी भी कठिनाई आयी हो, उन्होंने उसका हमेशा डटकर सामना किया। मोरारजी देसाई और चरणसिंह से मतभेद होने पर जनेश्वर मिश्र जी ने सपा नेता मुलायम सिंह यादव के आग्रह पर चौधरी साहब का साथ दिया। मिश्र जी ने कभी मुलायम सिंह की बातों को नहीं टाला।
1992 में पत्नी की तबीयत बहुत खराब थी। इसके बावजूद सूचना मिलने पर कि मुलायम सिंह यादव जेल चले गये, आंदोलन की कमान सँभाल ली। उन्हें पत्नी की मृत्यु की सूचना जेल में ही मिली, किंतु उन्होंने पेरोल पर छूटने से मना कर दिया। ‘छोटे लोहिया’, डॉ राममनोहर लोहिया के अत्यंत प्रिय थे। वे आंदोलनों की जिम्मेदारी छोटे लोहिया को ही सौंपते थे। उनका भाषणा इतना जोरदार होता था कि सुनने के लिए भारी भीड़ जमा हो जाती थी।
गैरबराबरी के खिलाफ
डॉ. लोहिया और राजनारायण जी के बताये आदर्शों को जनेश्वर जी आगे बढ़ाने में लगे हुए थे। लोहिया और राजनारायण के विचार, उनकी सादगी, उनका संघर्ष और उनके बताये हुए रास्ते पर जनेश्वर जी चल रहे थे। गरीब, पिछड़े, मजदूर और किसान वर्ग के प्रति जो नाइंसाफी हो रही है और गरीबी-अमीरी की खाई बढ़ रही है उसे पाटने का संकल्प जनेश्वर जी ने लिया था।
आजादी के नेताओं ने भी यही संकल्प लिये थे लेकिन अमीरी-गरीबी की खाई और बढ़ रही है। कई बार जनेश्वर मिश्र ने आंकड़े दिये थे कि आजादी के समय कितनी गैरबराबरी थी और अब कितनी है।
जनेश्वर मिश्र जी के नाम पर लखनऊ में एशिया के सबसे बड़े पार्क का निर्माण कराया गया। उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (सत्र 2012-2017) ने छह अगस्त 2012 को जनेश्वर मिश्र पार्क की आधारशिला रखी। पार्क सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव व उनके सुपुत्र अखिलेश का एक ड्रीम प्रोजेक्ट था। मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे और यूपी के सीएम अखिलेश यादव को जनेश्वर मिश्र के नाम पर एक पार्क निर्माण कराकर उन्हें समर्पित करने के लिए कहा था। इसे 168 करोड़ रु. की लागत के साथ विकसित किया गया था। पार्क को लंदन के हाइड पार्क की तर्ज पर विकसित किया गया है। पार्क तकरीबन 376 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला हुआ है।