विमल कुमार की पाँच कविताएँ

1
पेंटिंग : प्रयाग शुक्ल


1.
मेरा चाँद

 

कहाँ  गया मेरा चाँद

लगता है वो कभी था ही नहीं मेरे आसमान पर

अगर वो होता

तो जरूर आता मेरे बाम पर

 

उतरता सीढ़ियों  से नीचे धीरे  धीरे

फिर जाता बैठ मेरी खाट पर

 

आखिर कहाँ गया मेरा चाँद

क्या वो खो गया किसी मेले में

एक बच्चे की तरह

क्या उसे मेरे घर का पता नहीं मालूम

क्या उसे याद नहीं

मेरे टेलीफ़ोन का नंबर

वो अगर खो गया रास्ता

तो एक फ़ोन कर लेता कहीं से

 

लगता है मुझे कि वो था ही नहीं इस क़ायनात  में

अगर होता तो जरूर इस धरती का चक्कर लगता

कभी तो  गिरती चाँदनी पेड़ों पर

बादलों की ओट से कभी तो निकलता

 

आखिर कहाँ चला गया मेरा चाँद

बिना बताये किसी को

रजिस्टर पर उसकी हाजरी  लगी है

कमरे में उसके एक प्याली चाय की पड़ी है

एक अधजली सिगरेट का एक टुकड़ा भी है

इसका  मतलब वो था यहाँ कुछ देर पहले

लेकिन फिर भी मुझे न जाने क्यों लगता है

कि वो कभी था ही नहीं

वो सिर्फ एक ख़्याल  था ख़ूबसूरती का

चाँद बनकर आ जाता था कभी कभी

फिर भी वो कहाँ चला गया समझ में नहीं आता

ठीक एक दिन पहले ईद के

 

आखिर कहाँ चला गया मेरा चाँद

मेरी हथेलियों से फिसलकर

निकलकर उँगलियों की सुराख से बाहर

 

उसे एक ख़त लिखता हूँ अभी

स्पीड पोस्ट से पूछता हूँ

कहीं वो नाराज़ तो नहीं हमसे

आखिर मेरा चाँद कहाँ  चला गया

किस जगह लिखेगी

उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट

 

कई सालों से मैं अपने इस चाँद को खोज रहा हूँ

हाथ में लिये उसकी रिपोर्ट

हर साल ईद के दिन  उसे याद करते हुए

आखिर मेरा चाँद कहाँ चला  गया

मुझे आज भी

वो कर जाता बेचैन रातों में ………….

 

2. नींद है कि आती नहीं

 

यह कैसी रात है

कि नींद तो आती नहीं है

बड़ी मुश्किल से जब आती है

स्वप्न में एक बूढ़ा आदमी कराहता है

एक अस्पताल में लेटे  हुए

 

कभी जेल की दीवारों के उस पार

उसकी आवाज़ आती है

 

यह कैसी रात है

कि नींद  तो आती नहीं है

चाँद भी डूबता नहीं है

तारों से अब डर लगने लगा है

 

यह कैसी सुबह है

जो जल्दी हो नहीं रही है

और उसके इंतज़ार में

रात कट नहीं रही

 

घर का दरवाजा कोई पीट रहा है

लगातार

वह कहा रहा है

बादशाह ने तुमको  भी बुलाया है

 

यह कैसी रात है

कि नींद नहीं आ रही है

आलमारी के भीतर से

कोई बोल रहा है

तुम अपनी कलम की स्याही फेंक दो

झुका दो सर

हाथ नीचे गिरा दो

 

यह कैसी रात है

कि नींद आ नहीं रही

इस रात को क्या कहूँ मैं

इस नींद को क्या बोलूँ मैं

 

बूढ़े आदमी का बुखार तेज हो गया है

खाँसी उसकी बढ़ गयी है

रात से पूछता हूँ

तुम कब जाओगी

नींद से पूछता हूँ

तुम कब आओगी

कोई जवाब नहीं

गहरा सन्नाटा है

 

छायी है चारों तरफ चुप्पी

कभी कभी कोई लिख देता है

बता देता है

उस बूढ़े आदमी के बारे में

बस अब सिर्फ इंतजार है

उसके बारे में एक नयी खबर का

 

रात है कि नींद आती नहीं है

नींद है ऐसी, रात भी जाती  नहीं है

 

अब तो  सिर्फ मंदिर है

चुनाव है

और मृत्यु है

ग्यारह लोग हैं

यह अजीब रात है

नींद है कि आती नहीं है

 

3. दो नावें

 

लकड़ी की नाव पूछती है

कागज की नाव से

तू, इतने कम पानी में कैसे तैर जाती है?

 

कागज की नाव पूछती है पलट कर

लकड़ी की नाव से

तू, इतने पानी में कैसे  डूब जाती है?

 

पानी है तो नावें  हैं

नावें हैं तो मुसाफिर हैं

 

काग़ज़ की नाव

सोचती है

काश! वह लकड़ी की नाव होती!

बारिश में गलती नहीं

 

लकड़ी की नाव

सोचती है

काश!  वह कागज की नाव होती

कम पानी में भी तैर लेती

 

कहने को  दोनों नावें हैं

तैरना ही उनका धर्म है

 

दोनो का जीवन कितना अलग है

दोनों की मृत्यु कितनी अलग है!

ड्राइंग : प्रयाग शुक्ल

4. आधा जीवन

 

आधी रात तुम जागी

आधी रात मैं

आधी रात तुम सोयी

आधी रात मैं

आधे  सपने तुमने देखे

आधे सपने  मैंने

 

आधा चाँद तुमने देखा

आधा मैंने

आधी करवट मैंने ली

आधी तुमने

आधा चुम्बन तुमने लिया था

आधा ही लिया  मैंने

आधी साँस मेरी गर्म रही

आधी तुम्हारी

आधी धड़कनें तुमने सुनीं

आधी मैंने

आधा जिस्म राख हुआ

आधा हुआ पुलकित

 

आधे चाँद को हमने देखा

आधी नदी में हम नहाये

आधे जंगल में हम विचरे

आधा गीत हमने गया

आधा ही सुना हमने

 

आधी दुनिया में तुम जिंदा  रही

आधी दुनिया में मैं

 

आधी जिन्दगी हम जी पाये

आधी मौत ही मिली हमको

फिर भी

जिन्दा हम दोनों

बची हुई  इस पूरी दुनिया में

लेकर अपनी

आधी प्यास

आधी भूख

आधी परछाईं…

 

……आधी आवाज़ लिये

 

5. विष-वमन दिवस

 

फिर पुराने जख्म कुरेदे  जाएंगे आपके

फिर आग  के शोले भड़केंगे आपके सामने

फिर लपटें उठेंगी आसमान  में इसी तरह

फिर रचा जाएगा झूठा इतिहास इसी तरह

फिर सुनाए जाएंगे दंगों के रोज किस्से

फिर खून खौलेगा एक दिन एक बेरोजगार युवक का

फिर हत्या की जाएगी यह बताने के लिए

लाहौर में मस्ज़िद के पास इसी तरह हत्या हुई थी

फिर किया जाएगा बलात्कार एक स्त्री का

यह बताने के लिए

इसी तरह अस्मत लूटी  गयी थी

किसी की  मंदिर के पास

 

फिर कहा जाएगा सारे मुसलमान अभी भी जाना चाहते हैं पाकिस्तान

फिर कहा जाएगा हम बाँट देंगे अब यह आसमान

फिर कहा जाएगा गांधी ही जिम्मेदार थे इस  तकसीम के

फिर तिरंगा यात्रा शहरों में निकाली जाएगी

फिर होगा गलियों में  हर दिन  खून-खराबा

फिर बताया जाएगा पंडितों  पर हुए थे खूब अत्याचार

फिर कहा जाएगा सलीम और कुलसुम को  हम नहीं छोड़ेंगे

लेकर रहेंगे बदला इस विभाजन का हम उनसे

फिर कहा जाएगा जो नहीं गए पाकिस्तान उनका अब तो  घर जला दो

फिर कहा जाएगा दाढ़ी वाले ही इस मुल्क के असली दुश्मन हैं

उन्हें फौरन  मौत के घाट उतार दो

फिर कहा जाएगा इतिहास में सब झूठ भरा है

उसे  अब  नए सिरे से लिखा जाएगा

फिर कहा जाएगा आज़ादी की लड़ाई में और कोई नहीं सिर्फ हम ही  जेल गए थे

फिर लिखा जाएगा किताबों में

दरअसल हमने ही  दिलाई थी आज़ादी इस मुल्क को

फिर पूछा  जाएगा इम्तहान में

ट्वीट पर ट्वीट किये जाएंगे

 

अपने पुराने ज़ख्मों की कहानी

ट्वीट करें आप लोग

और रखें आप लोग मुझ पर भरोसा

अखण्ड भारत बनाने के लिए

एक दिन कश्मीर की तरह

पाकिस्तान को भी  हम मिला देंगे

अपने नक्शे में

घबराएं नहीं अब

एक नयी विभीषका से शुरू होगा

एक नया विभाजन स्मृति  दिवस।

1 COMMENT

  1. बेचैनी बढ़ा देने वाली, ज़रूरी कविताएं।

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