सोशलिस्ट घोषणापत्र : बारहवीं किस्त

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(दिल्ली में हर साल 1 जनवरी को कुछ समाजवादी बुद्धिजीवी और ऐक्टिविस्ट मिलन कार्यक्रम आयोजित करते हैं जिसमें देश के मौजूदा हालात पर चर्चा होती है और समाजवादी हस्तक्षेप की संभावनाओं पर भी। एक सोशलिस्ट मेनिफेस्टो तैयार करने और जारी करने का खयाल 2018 में ऐसे ही मिलन कार्यक्रम में उभरा था और इसपर सहमति बनते ही सोशलिस्ट मेनिफेस्टो ग्रुप का गठन किया गया और फिर मसौदा समिति का। विचार-विमर्श तथा सलाह-मशिवरे में अनेक समाजवादी बौद्धिकों और कार्यकर्ताओं की हिस्सेदारी रही। मसौदा तैयार हुआ और 17 मई 2018 को, कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के 84वें स्थापना दिवस के अवसर पर, नयी दिल्ली में मावलंकर हॉल में हुए एक सम्मेलन में ‘सोशलिस्ट मेनिफेस्टो ग्रुप’ और ‘वी द सोशलिस्ट इंस्टीट्यूशंस’की ओर से, ‘1934 में घोषित सीएसपी कार्यक्रम के मौलिक सिद्धांतों के प्रति अपनी वचनबद्धता को दोहराते हुए’ जारी किया गया। मौजूदा हालातऔर चुनौतियों के मद्देनजर इस घोषणापत्र को हम किस्तवार प्रकाशित कर रहे हैं।)

वैकल्पिक समाजवादी विकास का मॉडल

जकल राजनीति और चुनाव में विकास मुख्य नारा हो गया है। लोगों को विकास का पिटारा दिखाकर उनकी उम्मीद बढ़ाई जा रही है
, और वोट प्राप्त किये जा रहे हैं। पर इसके साथ कोई संवैधानिक मूल्य और कोई आदर्शवादी भरोसा नहीं है, मूल्य और अधिकारों की बात नहीं है।

जातिवाद और संप्रदायवाद से बड़ा इन दिनों यह नारा है जिसे सत्ताधारी भाजपा चुनावों के दौरान दुहरा रही है। यह दूसरी बार है जब सबका साथ सबका विकास का नारा लगाया जा रहा है, इस सरकार की नीतियां देश के चंद बड़े कॉरपोरेट घरानों को अधिकतम फायदा पहुंचानेवाली हैं।

दूसरी तरफ, बड़ी आबादी के लिए, इस विकास’ का मतलब पश्चिम की  विशाल बहुराष्ट्रीय निगमों के लिए स्वतंत्रता है, जो हमारी अर्थव्यवस्था को लूटनेहमारे पर्यावरण को प्रदूषित करनेहमारे प्राकृतिक संसाधनों को लूटने और हमारी संस्कृति में हिंसा के बीज बोने और अमरीका के अदृश्य  आतंकवाद का सामना करने के लिए मजबूर हैं।

हमारे किसानों और कृषि मजदूरों, मजदूर वर्गों, छोटे खुदरा विक्रेताओं और छात्रों और युवाओं के लिए इस विकास का मतलब है कि उनकी भूमि और जंगलों से विस्थापन, उनकी आजीविका का विनाश, उनकी कृषि का विनाश, बेरोजगारी और समाज के सबसे हाशिये वाले वर्गों दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और महिलाओं पर अत्याचार बढ़ गया है।

प्राकृतिक संसाधनों का अधिक शोषण भयावह परिस्थितियों का निर्माण कर रहा है। अधिकतम प्रदूषण, संगठित और खतरनाक विकास हमारी नदियों और अन्य जल संसाधनों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है।

तटीय क्षेत्रों सहित पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों पर वनक्षेत्र की कमी न केवल पर्यावरण, वनस्पतियों और जीवों के लिए खतरा बन रही है, बल्कि अस्तित्व पर भी खतरा है। इस क्षेत्र में अनियमित विकास-गतिविधियों की वजह से हिमालयी पारिस्थितिकीय आज बहुत खतरे में है।

सभी नदियों में न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह बनाये रखा जाना चाहिए। बड़े बांध न केवल क्षेत्र की पारिस्थितिकी बल्कि घातक विस्थापन का सामना करनेवाले लोगों के लिए भी घातक हैं। आर्थिक विकास को पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों को प्राथमिकता और सम्मान देने की जरूरत है।

इस नवउदारवादी विकास मॉडल के विपरीत, हम एक समाजवादी विकास मॉडल के कार्यान्वयन की मांग करते हैं जिसमें विकास का उद्देश्य निगमों के मुनाफे का अधिकतम लाभ नहीं होगा बल्कि समाज का निर्माण होगा, जिसका मूल तर्क और प्राथमिकता कल्याण  और खुशी होनी चाहिए। आम उत्पादक, जिनके प्रत्येक सदस्य के पास नौकरी के लिए जन्मजात अधिकार, एक स्थिर आय, घर, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, वृद्धावस्था में सुरक्षा और प्रदूषण मुक्त वातावरण होगा।

विकास इस तरीके का होना चाहिए जो टिकाऊ हो और संसाधनों को कम करने के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी की साझेदारी को सुनिश्चित करता हो। प्राकृतिक संसाधन लोगों से जुड़े हुए हों और राज्य के साथ भरोसा वाले हों। राज्य की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि इन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग इस तरह के तरीके से सार्वजनिक भरोसे के सिद्धांत के तहत एक दायित्व के तहत हो। इसका परिणाम लोगों का कल्याण हो, कुछ लोगों के हाथों में धन का ठहराव न हो और न्याय और समता सुनिश्चित करने का भाव हो। संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों को राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत दी गयी नीतियों और कानूनों को लाकर प्रभावी बनाना होगा।

कल्याणकारी राज्य के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हमारा ध्यान 73वें और 74वें संविधान संशोधन के आगे स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने के माध्यम से होना चाहिए।

संविधान के अनुच्छेद 243G और 243W के साथ अनुच्छेद 40 की मान्यता है कि राज्य को ग्रामसभा, पंचायत/नगरपालिका की शक्तियों को सरकार की प्रभावी इकाइयों में परिवर्तित करना होगा जो उन्हें आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करे, उन्हें शक्ति देकर और विशेष रूप से संविधान की अनुसूची XI और XII के तहत प्रदान किये गये क्षेत्रों में ऐसी जिम्मेदारियों को पूरा करने का अधिकार प्रदान करे।

राज्य के हर मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र में अनुच्छेद 243ZE के अनुसार मेट्रोपॉलिटन योजना और जिला स्तर पर अनुच्छेद 243ZD के अनुसार जिला योजना के लिए समितियां गठित की जानी चाहिए। साथ ही प्रत्येक राज्य की विधायिका को कानूनी प्रावधान करना चाहिए। यदि यह किया जाता है, तो यह लोगों के लिए और लोगों को संवैधानिक तरीके से विकास का लाभ मिल सकेगा और इसकी प्रक्रिया में, पारदर्शिता और उत्तरदायित्व भी लाया जा सकेगा।  

इस वैचारिक परिप्रेक्ष्य में, यह समाजवादी सम्मेलन निम्नांकित मांगें रखता है-

– विकास योजना के लिए सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए।

– ऊपर उल्लिखित दीर्घकालिक दृष्टि के आधार पर हम मांग करते हैं कि देश का विकास मॉडल निम्न सिद्धांतों पर आधारित होगा :

  • विकास की अवधारणा और उद्देश्यों को भारतीय संविधान के मूल्यों और निर्देशक सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए।
  • विकास मॉडल आयात और निर्यात को अधिकतम करने पर आधारित नहीं होना चाहिए, लेकिन सामान्य लोगों की घरेलू क्रयशक्ति के विकास को अधिकतम करने पर आधारित होना चाहिए।
  • हर नीति निर्णय इस मानदंड पर आधारित होना चाहिए कि इससे विषमता को कम करना है।
  • विकास का उन्मुखीकरण अधिकतम संभव मशीनीकरण को लागू करना नहीं है, बल्कि मशीनीकरण और रोजगार निर्माण के बीच संतुलन होना चाहिए; दृढ़ता से श्रम विस्थापन स्वचालन का विरोध किया जाना चाहिए।
  • पहले श्रम गहन उद्योगों और गांव आधारित उद्योगों और फिर सूक्ष्म और लघु उद्योगों को समर्थन और सबसिडी प्रदान करने के लिए सरकार के संसाधन और वित्त प्रदान करनेवाला होना चाहिए; दूसरी तरफ, बड़े पूंजीगत उद्योगों के अत्यधिक लाभ कमाने पर प्रतिबंध लगाये जाने चाहिए।
  • प्रत्येक क्षेत्र के विकास के लिए योजना तैयार करने के दौरान ध्यान केंद्रीकरण पर नहीं होना चाहिए बल्कि विकेंद्रीकरण, स्थानीय रूप से उपलब्ध प्रौद्योगिकियों और संसाधनों का उपयोग, ऊर्जा खपत को कम करने और वैकल्पिक पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा स्रोतों का उपयोग, पर्यावरणीय हानिकारक प्रौद्योगिकियों का न्यूनतम उपयोग, और स्थानीय योजना में लोगों की अधिकतम भागीदारी होनी चाहिए।
  • विकास के लिए योजना तैयार करते समय समाज के हाशिये वाले वर्गों, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं की आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • विकास के लिए योजना तैयार करते समय सभी महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों समझौतों के मामले में- लोकसभा और राज्यसभा में बहस के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए और केवल दोनों ओर से सहमति प्राप्त होने के बाद ही योजना पर काम हो।

भूमि अधिग्रहण परियोजनाओं पर मांगें

– किसी भी विकास परियोजना के कार्यान्वयन में सभी आवश्यक जानकारी प्रभावित ग्रामसभा, साथ ही साथ तहसील और जिला पंचायतों को उपलब्ध करायी जानी चाहिए और परियोजना को अनुमति देने से पहले उनकी सहमति अनिवार्य कर दी जानी चाहिए।

– सभी विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 में उल्लिखित सहमति और सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। साथ ही पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, वन अधिकार से संबंधित प्रावधान अधिनियम 2006, और पेसा अधिनियम 1996 में से जो भी लागू होता हो, उसका पालन हो।

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