जब शेरपुर के आठ रणबांकुरे ओढ़ लिये थे शहादत का बाना

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— रमेश यादव —

स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अगस्त क्रांति जहां अहम अध्याय है वहीं उस क्रांति की 18 अगस्त की तारीख गाजीपुर के लोगो को गर्वित करती है।मुहम्मदाबाद तहसील मुख्यालय पर तिरंगा फहराने में क्रांतिकारी गांव शेरपुर के आठ रणबाकुरों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। हर साल लोग उस ऐतिहासिक तिथि पर अपने उन वीर सपूतों को श्रद्धा, सम्मान के साथ याद करते हैं।

उन शहीदों के शौर्य, अदम्य साहस की उस अनुपम गाथा के नायक थे डॉ.शिवपूजन राय। अगस्त क्रांति की चिनगारी गाजीपुर में पहले ही दिन से फूट पड़ी थी जहां नौ अगस्त को गौसपुर हवाई पट्टी तहस-नहस कर दी गयी। मुहम्मदाबाद पोस्ट ऑफिस को फूंक दिया गया था। उसके बाद 17 अगस्त को शेरपुर स्थित जूनियर हाईस्कूल में क्रांतिकारियों की बैठक हुई और तय हुआ कि कम से कम उस इलाके को आजाद करा लेना है। दुर्योग से उस वक्त इलाका गंगा की बाढ़ में डूबा था। बावजूद इसके, शेरपुर से आजादी के दीवानों की टोली मुहम्मदाबाद तहसील मुख्यालय पर तिरंगा फहराने के लिए निहत्थे निकल पड़ी। उसमें दो हजार से भी ज्यादा नौजवान शामिल थे। कुछ नाव से चले तो कुछ तैरते हुए आगे बढ़े।

उधर बर्बरता पर उतारू ब्रितानी हुकूमत के सिपाही मुहम्मदाबाद तहसील मुख्यालय की घेरेबंदी कर चुके थे। खुद कलक्टर मुनरो भी लावलश्कर के साथ मौके पर पहुंच गया था।

जब यह जानकारी उन नौजवानों को मिली तो वे तहसील मुख्यालय से कुछ दूर पहले रुके और ब्रितानी सिपाहियों की बर्बर कार्रवाई का प्रतिकार न करने के संकल्प के साथ रणनीति बनाकर दो टोलियों में बंट गये। रणनीति थी कि तिलेश्वर राय की अगुआई वाली टोली पीछे से जाकर जालिम हुकूमत के सिपाहियों की बंदूकें छीन लेगी जबकि डॉ. शिवपूजन राय की टोली सामने से तहसील भवन में दाखिल होकर भवन पर तिरंगा फहराएगी।

रणनीति के तहत पीछे से आयी टोली ने दो सिपाहियों को काबू में कर लिया। उनकी बंदूकें छीन ली गयीं लेकिन पदलोलुप भारतीय मूल के तहसीलदार ने क्रूरता की सारी सीमाएं लांघकर सामने से तहसील भवन की ओर तिरंगा लेकर आ रही टोली पर गोलियां चलवानी शुरू कर दीं।

टोली में भगदड़ मच गयी लेकिन टोली के अगुआ डॉ.शिवपूजन राय पूरी निडरता से तिरंगा लिये तहसील भवन की ओर बढ़ते रहे। उसी बीच उनके सीने को चीरती हुई गोली पार हो गयी। वह शहीद हो गये।

फिर तो टोली में शामिल वंशनारायण राय, रामबदन उपाध्याय, वशिष्ठ राय, ऋषेश्वर राय, नारायण राय, राजनारायण राय और वंशनारायण राय (द्वितीय) ने भी उसी तरह स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति दे दी। अन्य कई जख्मी हुए।

खास यह कि उन टोलियों के साहसी नौजवानों को अपना वह संकल्प याद था। वरना सिपाहियों की छीनी बंदूकों से वे ब्रितानी हुकूमत के सिपाहियों पर जवाबी कार्रवाई कर सकते थे। उन्हें बंदूक चलाना आता भी था।

आठ क्रांतिकारियों की शहादत के बाद भी जालिम हुकूमत का दिल नहीं भरा। शेरपुर गांव में लगातार सात दिनों तक बेइंतहा जुल्म ढाये गये। यहां तक कि क्रांतिकारियों के गांव शेरपुर को सबक सिखाने पहुंची ब्रितानी फौज ने 29 अगस्त को शेरपुर गांव में जमकर लूटपाट और आगजनी की।

भागते हुए पुरुषों और महिलाओं पर गोलियां बरसाई गयीं। उस दौरान भी गांव के रमाशंकर लाल श्रीवास्तव, खेदन सिंह यादव एवं राधिका पांडेय शहीद हो गये।

पूरे गांव पर सामूहिक जुर्माना लगाकर जबरदस्ती वसूली की गयी।अफसोस यह कि उस क्रांति की याद में मुहम्मदाबाद तहसील मुख्यालय और शेरपुर गांव में बना शहीद पार्क, शहीद स्तंभ एवं शहीद स्मृति भवन की सुध तभी ली जाती है जब 18 अगस्त की तारीख आती है। वरना शेष दिनों में वे छुट्टा पशुओं, अराजक तत्त्वों की शरणस्थली बने रहते हैं।

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