अब्दुल हमीद का पराक्रम

0
शहीद पार्क धामूपुर में परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद एवं उनकी पत्नी रसूलन बीबी की प्रतिमा


— रमेश यादव —

पाकिस्तान ने 1947-49 के दौरान हुई कश्मीर जंग के अनुभवों से सबक न लेकर 1965 में एक बार फिर जंग छेड़ दी। उस युद्ध में भारत के एक ‘परमवीर’ की जांबाजी ऐतिहासिक बन गयी। और पाकिस्तान के सपने धूल चाट गए। जी हां, बात आज हम उस रणबांकुरे की कर रहे हैं जिसने जीप पर बैठकर पाकिस्तान के एक-दो नहीं बल्कि आठ-आठ पैटन टैंकों को बर्बाद कर दिया।

अब्दुल हमीद की वीरता की मिसाल का कोई जवाब नहीं। क्योंकि जिस पैटन टैंक पर पाकिस्तान को ज्यादा भरोसा था उसकी हवा निकाल कर एक हिन्दुस्तानी जवान ने पाकिस्तानी हौसले को धूल चटा दी थी। उस पराक्रमी जवान का नाम था अब्दुल हमीद। जो शहादत के बाद वीर अब्दुल हमीद के नाम से मशहूर हुआ और आज भी लोगों के दिलो-दिमाग में उसकी प्रेरक स्मृति कायम है। युद्धक्षेत्र में ही 10 सितंबर, 1965 को अब्दुल हमीद शहीद हुए, लेकिन तब तक वह अप्रतिम शौर्य की अविस्मरणीय दास्तां लिख चुके थे।

इससे पहले कि अब्दुल हमीद की जांबाजी का किस्सा याद करें, आइए उनके जीवन के बारे में कुछ जानते हैं। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव में 1 जुलाई, 1933 को हमीद का जन्म हुआ था। उनके पिता मोहम्मद उस्मान सिलाई का काम करते थे, लेकिन हमीद का मन इस काम में नहीं लगता था। उनकी दिलचस्पी लाठी चलाने, कुश्ती का अभ्यास करने, नदी पार करने, गुलेल से निशाना लगाने जैसी चीजों में थी। इसके साथ ही लोगों की मदद के लिए भी वह बढ़-चढ़कर आगे आते थे।

बीस की उम्र में पहनी वर्दी, छुट्टी से पहले लौटे फर्ज पर

एक किस्सा यह भी पता चलता है कि एक बार बाढ़ के पानी में डूब रही दो लड़कियों की उन्होंने जान बचायी थी। बीस साल की उम्र में अब्दुल हमीद ने वाराणसी में भारतीय सेना की वर्दी पहनी। उन्हें ट्रेनिंग के बाद 1955 में 4 ग्रेनेडियर्स में पोस्टिंग मिली। 1965 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध की घड़ी करीब आ रही थी, उस वक्त वह छुट्टी पर अपने घर धामूपुर आ गये थे। लेकिन पाकिस्तान से तनाव बढ़ने के बीच उन्हें वापस आने का आदेश मिला। ऐसा भी कहा जाता है कि बिस्तर बांधते वक्त उसकी रस्सी टूट गई थी। इस पर उनकी पत्नी रसूलन बीबी ने अपशकुन माना। हमीद को उन्होंने रोकने की कोशिश की, लेकिन हमीद के लिए वतन की सेवा और अपना फर्ज सबसे ऊपर था।

खेमकरण सेक्टर में थी तैनाती

पाकिस्तान ने उस समय के अपराजेय माने जा रहे अमेरिकन पैटन टैंकों से खेमकरण सेक्टर के असल उताड़ गांव पर हमला कर दिया। उस वक्त ये टैंक अपराजेय माने जाते थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अब्दुल हमीद की जीप 8 सितंबर 1965 को सुबह 9 बजे चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों से गुजर रही थी। वह जीप में ड्राइवर के बगलवाली सीट पर बैठे थे। उन्हें दूर से टैंक के आने की आवाज सुनाई दी। कुछ देर बाद उन्हें टैंक दिख भी गये। वह टैंकों के अपनी रिकॉयलेस गन की रेंज में आने का इंतजार करने लगे और गन्नों की आड़ का फायदा उठाते हुए फायर कर दिया।

आठवां टैंक उड़ाते हुए शहीद हो गए

अब्दुल हमीद के साथी बताते हैं कि उन्होंने एक बार में 4 टैंक उड़ा दिये थे। उनके 4 टैंक उड़ाने की खबर 9 सितंबर को आर्मी हेडक्वॉर्टर्स में पहुंच गयी थी। उनको परमवीर चक्र देने की सिफारिश भेज दी गयी थी। इसके बाद कुछ अफसरों ने बताया कि 10 सितंबर को उन्होंने 3 और टैंक नष्ट कर दिए थे। जब उन्होंने एक और टैंक को निशाना बनाया तो एक पाकिस्तानी सैनिक की नजर उन पर पड़ गयी। दोनों तरफ से फायर हुए। पाकिस्तानी टैंक तो नष्ट हो गया, लेकिन अब्दुल हमीद की जीप के भी परखच्चे उड़ गये। वतन की हिफाजत के लिए ‘परमवीर’ हमीद कुर्बान हो गये।

परमवीर चक्र से नवाजा गया

अब्दुल हमीद को उनके अदम्य साहस और वीरता के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। 28 जनवरी, 2000 को भारतीय डाक विभाग ने वीरता पुरस्कार विजेताओं के सम्मान में पांच डाक टिकटों के सेट में 3 रुपये का एक डाक टिकट जारी किया। इस डाक टिकट पर रिकॉयलेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हमीद की तस्वीर बनी हुई है। उनकी बहादुरी को इन अल्फाजों के साथ सलाम- सर झुके बस उस शहादत में, जो शहीद हुए हमारी हिफाजत में।

Leave a Comment