25 सितंबर। स्वराज इंडिया ने जाति जनगणना पर केंद्र सरकार के रवैये, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत उनके हलफनामे से परिलक्षित होता है, की निंदा की है। सरकार ने जाति गणना को लेकर कथित कठिनाइयां बताते हुए और अपनी अक्षमता जाहिर करते हुए यह भी कहा है कि वह भविष्य में भी इस तरह की किसी भी कवायद के खिलाफ है। यह नवीनतम स्थिति हाल के दिनों में सरकार के रुख की पुनःपुष्टि करती है। 20 जून, 2021 को केंद्रीय राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने “जनगणना में एससी और एसटी के अलावा अन्य जाति-वार आबादी की गणना नहीं करने” के सरकार के फैसले की जानकारी संसद में दी थी। पिछले कुछ महीनों में कई भाजपा नेताओं ने जाति जनगणना के खिलाफ बयान दिये हैं।
स्वराज इंडिया ने कहा है कि जाति जनगणना पर भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार की स्थिति अतार्किक होने के साथ-साथ द्वेषपूर्ण भी है। जातियों को पहचानना, वर्गीकृत करना और गिनना जाति व्यवस्था के उन्मूलन की दिशा में पहला कदम है। यह कहना कि इस तरह की कवायद करना ‘कठिन’ है, बहानेबाजी के सिवा कुछ नहीं है, क्योंकि ओबीसी की गणना के लिए जनगणना कार्यक्रम में सिर्फ एक और कॉलम जोड़ने की आवश्यकता है। किसी भी स्थिति में, भारत की जनगणना इससे कहीं अधिक जटिल कार्य करती है, और प्रक्रिया की आसानी या कठिनाई ऐसे महत्त्वपूर्ण नीतिगत निर्णय का आधार नहीं हो सकती है। सरकार की बहानेबाजी उसकी मंशा पर शक पैदा करती है। भारत के लोग सच्चाई जानने के हकदार हैं। स्वराज इंडिया की अध्यक्ष क्रिस्टीना सैमी ने कहा, “भाजपा को इस दोहरेपन को बंद करना चाहिए, और सामाजिक न्याय पर अपनी नीति को साफ करना चाहिए।”
पिछले तीन दशकों में, हर संबंधित संस्थान ने यह जानकारी मांगी है। 2018 में, तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि 2021 की जनगणना में ओबीसी गणना शामिल होगी। इस मांग को एक संसदीय समिति, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग और कई राज्य सरकारों ने समर्थन दिया है। तथ्य यह है कि सरकार एनपीआर पर ₹ 3,768 करोड़ खर्च करने को तैयार है, लेकिन जाति जनगणना से इनकार करती है। यह दर्शाता है कि वह काल्पनिक समस्याओं का पीछा करने के लिए तैयार है, लेकिन नागरिकों के वास्तविक मुद्दों पर ध्यान नहीं देना चाहती है।
स्वराज इंडिया ने केंद्र सरकार से नयी जनगणना के दौरान प्रत्येक व्यक्ति की जाति दर्ज करने और एनपीआर की कवायद नहीं करने का आग्रह किया है। स्वराज इंडिया ने कहा है कि जातिगत जनगणना से इनकार को सामाजिक न्याय की नीतियों को नष्ट करने और जातिगत विशेषाधिकारों को बनाए रखने के प्रयास के रूप में देखा जाएगा।