किशन पटनायक की कविता

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पेंटिंग : प्रयाग शुक्ल
किशन पटनायक (30 जून 1930 – 27 सितंबर 2004)

मृत्यु वंदना

 

हे मृत्यु! मेरे परम देव
जीवन के चरम साथी
तुम्हारे इशारे, पथ पर या विपथ पर
चलता हूं दिन रात

पहचाना है इस भंगुर जीवन में
प्रियों में तुम ही प्रियतम
तुम हो उस अंतिम मिलन के क्षण
जीवन के श्रेयतम

तुम्हारी गोद में करने को
आत्मा को निमग्न
जीवन में जगी है अनंत प्रेरणा
देख लो वह आयोजन

तुम्हारी गोद में होने को योग्य
जागृत हुई अनंत तृषा
पल पल मेरे प्राण की लालसा
धारने मोहिनी-वेश

डरा नहीं अतल सागर में डूब
लाने को मुक्ताओं का ढेर
आकाश में पहुंचा हूं बनाने अपना घर
तारों को वेश-भूषा

मेरे जीवन का एक ही अभिप्राय
तुम हो मेरे प्रियतम
मेरी समस्त साधना रुचिर वेश में
ले तुम्हारा चुंबन।

(ओड़िया से अनुवाद : प्रीतीश आचार्य )

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