लखीमपुर हत्याकांड पर देशभर के किसानों में रोष, तमाम जिलों में विरोध प्रदर्शन

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संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा रविवार की‌‌ रात किये गये आह्वान पर सोमवार को चार प्रमुख मांगों को लेकर सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक देश भर में अनेक स्थानों पर डीसी/डीएम के कार्यालयों और अन्य स्थानों पर विरोध प्रदर्शन किया गया। इन विरोध प्रदर्शनों के बारे में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, ओड़िशा, बिहार, झारखंड, राजस्थान, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, और अन्य राज्यों से रिपोर्टें आयी हैं। सिंघू मोर्चा पर भी मौन विरोध मार्च निकाला गया।

इन विरोध प्रदर्शनों में भाग लेनेवाले नागरिकों ने भाजपा नेताओं के हिंसा फैलाने और उकसाने  वाले बयानों तथा किसान विरोधी रवैये और व्यवहार पर सवाल उठाया। उन्होंने केंद्रीय गृह राज्यमंत्री को तत्काल बर्खास्त करने, मंत्री के बेटे और उसके साथियों की तत्काल गिरफ्तारी, सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा न्यायाधीश द्वारा जांच, और हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर के इस्तीफे की भी मांग की। रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि आशीष मिश्रा टेनी और 15 अन्य लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली  गयी है। हालांकि, किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। एसकेएम ने सभी नागरिकों से शांति बनाये रखने की अपील की है, जैसा कि किसानों के संघर्ष का इतिहास रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रदर्शनकारियों से कहा कि वे हिंसा और सांप्रदायिक राजनीति द्वारा आंदोलन को पटरी से उतारने के भाजपा द्वारबिछाये जा रहे जाल में न फंसें।

कल रात से ही लखीमपुर खीरी में दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के जवाब में स्वतःस्फूर्त विरोध प्रदर्शन हुए। अंबाला, कुरुक्षेत्र, चंडीगढ़ और कुछ अन्य स्थानों पर कैंडललाइट मार्च और रैलियां निकाली गयीं। पूरनपुर समेत अन्य जगहों पर किसानों द्वारा विरोध में हाईवे जाम कर दिया गया। हजारों किसान आज तिकुनिया में हिंसा स्थल, जहां शहीदों के शव रखे गए थे, पर पहुँचे और प्रशासन से बात की।

मंत्री के बेटे के खिलाफ एफआईआर

आज एसकेएम नेताओं के साथ स्थानीय प्रदर्शनकारी किसानों और मृतकों के परिवारों, और राज्य प्रशासन के बीच एक समझौता हुआ, जिसके चलते पोस्टमॉर्टम के बाद शहीद किसानों के अंतिम संस्कार का मार्ग प्रशस्त हुआ। चार किसानों के शवों को तिकुनिया के कॉलेज मैदान में सैकड़ों किसानों और उनके परिवारों ने रात भर पहरे पर रखा था। कल मारे गये किसानों के परिवारों को सरकार 45-45 लाख रुपये और एक-एक सरकारी नौकरी देगी। घायलों को 10-10 लाख रुपये दिये जाएंगे। आशीष मिश्रा टेनी और 15 अन्य के खिलाफ धारा 302, 120 बी और अन्य आरोपों के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी है, और सरकार ने कहा कि वह एक सप्ताह के भीतर सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लेगी। मंत्री अजय मिश्रा टेनी के खिलाफ भी 120बी जैसी धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। सरकार उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की देखरेख में मामले की जांच के लिए भी सहमत हो गयी है। अजय मिश्रा टेनी को केंद्र सरकार से बर्खास्त करने की मांग अलबत्ता लंबित है।

पूर्व नियोजित हमला!

चश्मदीद गवाह बताते हैं कि कैसे यह जानलेवा हमला पूर्व नियोजित लगता है, जिसे यूपी पुलिस द्वारा सुनियोजित तौर पर क्रियान्वित  किया गया था। यह बताया जा रहा है कि प्रदर्शनकारियों को अंधाधुंध तरीके से कुचलने के लिए पुलिस ने मंत्री के बेटे, जो खुद थार वाहन चला रहे थे, के वाहनों को अनुमति देने के लिए बैरिकेड हटा दिये। पुलिस ने आशीष मिश्रा टेनी को मौके से भगाया और बताया जा रहा है कि उसने भागते हुए गोली चला दी। चश्मदीद गवाह बताते हैं कि एसकेएम नेता तजिंदर सिंह विर्क को विशेष रूप से निशाना बनाया गया।

धारा 144, इंटरनेट बंद, लखीमपुर जाने पर रोक और चढूनी की गिरफ्तारी

सोमवार दिनभर की रिपोर्टों से स्पष्ट होता है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने विभिन्न लोगों को, चाहे वे सामाजिक कार्यकर्ता हों या राजनीतिक नेता, सभी को लखीमपुर खीरी जाने से रोकने के लिए कई अलोकतांत्रिक तरीके अपनाये। धारा 144 लगायी गयी और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गयीं। यूपी सरकार ने कुछ लोगों को विशेष हवाई अड्डों से आने और जाने से रोक दिया, और पंजाब सरकार को भी लिखा कि पंजाब के किसी भी व्यक्ति को लखीमपुर खीरी में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाए।

संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस विज्ञप्ति जारी होने के समय तक प्राप्त  रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि गुरनाम सिंह चढूनी और बूटा सिंह बुर्जगिल जैसे एसकेएम नेताओं को यूपी पुलिस द्वारा लखीमपुर खीरी पहुंचने से रोका गया है । दरअसल, खबर है कि गुरनाम सिंह चढूनी को मेरठ से गिरफ्तार किया गया है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाब और छत्तीसगढ़ के मौजूदा मुख्यमंत्रियों, और एक उपमुख्यमंत्री को रोकने सहित विपक्ष के नेताओं को रोकना स्पष्ट रूप से दिखाता है कि यूपी सरकार कुछ छिपा रही है, और दोषियों को बचाना चाहती है। इस तरह के कठोर उपाय अभूतपूर्व हैं और कई वैध प्रश्न खड़े करते हैं। एसकेएम उत्तर प्रदेश भाजपा सरकार के इन सभी अलोकतांत्रिक उपायों की निंदा करता है।

एसकेएम ने कोर्ट में गुहार नहीं लगायी

संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि उसने किसानों के आंदोलन के मुख्य मुद्दों – 3 किसान विरोधी केंद्रीय कानूनों और एमएसपी की वैधानिक गारंटी – के समाधान के लिए कभी भी सर्वोच्च न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया है। एसकेएम का हमेशा से मानना ​​रहा है कि केंद्र सरकार द्वारा बनाये गये किसान-विरोधी तीन केंद्रीय कानूनों को केंद्र सरकार द्वारा ही निरस्त किया जा सकता है। इस दिशा में संयुक्त किसान मोर्चा ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर बातचीत फिर से शुरू करने की मांग की है।

एसकेएम ने संवैधानिकता के मामले पर भी अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया – जबकि यह महत्त्वपूर्ण है कि कृषि पर राज्य सरकार के संवैधानिक अधिकार को बहाल और मजबूत किया जाए, यह महसूस करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है कि कृषि कानूनों के मुद्दे केवल संवैधानिकता या उसके अभाव के बारे में नहीं हैं, यह किसानों पर कृषि कानूनों के प्रभाव और उनकी आजीविका पर हमले के बारे में भी हैं। हालांकि कानूनों को अभी के लिए स्थगित कर दिया गया है, एसकेएम जानता है कि इस स्थगन को किसी भी दिन हटाया जा सकता है। इसलिए, आंदोलन ने कानूनों के पूर्ण निरसन ( निरस्त किये जाने ) पर जोर दिया है। 

जब जंतर-मंतर पर किसान संसद के आयोजन की बात आयी तब भी एसकेएम ने अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया और इसके आयोजन के लिए दिल्ली पुलिस की अनुमति और सहयोग की शर्तों को पूरी तरह से पूरा किया। इसलिए, किसानों के आंदोलन का न्यायालयों में प्रवेश करने और न्याय की मांग करने और एक ही समय में विरोध करने का कोई सवाल ही नहीं है। इस मामले में याचिकाकर्ता का संयुक्त किसान मोर्चा से कोई लेना-देना नहीं है। 

सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

हाईवे जाम करने के मामले में खबर है कि सुप्रीम कोर्ट ने 43 नेताओं को नोटिस जारी किया है। संयुक्त किसान मोर्चा ने हमेशा कहा है कि किसानों ने सड़कों पर कोई बैरिकेडिंग या नाकेबंदी नहीं की है। हरियाणा, यूपी और दिल्ली पुलिस ने ऐसा किया है। दरअसल, किसानों ने मोर्चा स्थलों पर दोनों तरफ यातायात के लिए सड़कें खाली रखी हैं। राजमार्गों पर बैरिकेडिंग के कारण यदि कोई सार्वजनिक असुविधा हो रही है तो वह पुलिस के कारण है। किसानों ने यह भी कहा है कि यदि केंद्र सरकार अहंकारी, अड़ियल और अनुचित तरीके से व्यवहार नहीं करती है, तो समाधान निकाला जा सकता है। समाधान स्पष्ट रूप से मोदी सरकार के हाथ में है जो इस बात का कोई पुख़्ता सबूत नहीं दे पायी है कि वह किसान विरोधी कानूनों को क्यों नहीं निरस्त करेगी?, या सभी उपजों पर किसानों के लिए लाभकारी एमएसपी की गारंटी के लिए कानून क्यों नहीं बनाएगी?

प्रधानमंत्री का बेतुका बयान

खबर है कि है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साक्षात्कार में विपक्षी राजनीतिक दलों की तीखी आलोचना की, और आरोप लगाया कि विपक्षी दल कृषि कानूनों का विरोध करते हुए राजनीतिक छल और नैतिक बेईमानी कर रहे हैं। उन्होंने कथित तौर पर कहा है कि जिन पार्टियों ने अपने चुनावी वायदों और यहां तक ​​कि अपने घोषणापत्र में कुछ सुधारों का वायदा किया था, उन्होंने बाद में यू-टर्न ले लिया और अपने वायदों को पूरा करने का साहस नहीं किया। संयुक्त किसान मोर्चा प्रधानमंत्री को याद दिलाना चाहता है कि ये तथाकथित “सुधार” किसानों के लिए फायदेमंद नहीं हैं, भले ही कोई भी पार्टी इनका प्रस्ताव दे रही हो। ये “सुधार” देश के करोड़ों किसानों की कीमत पर कृषि-निगमों के व्यवसाय को सुविधाजनक बनाने के लिए हैं। किसानों ने ऐसे सुधारों की मांग नहीं की। इसके अलावा, एसकेएम श्री मोदी और भाजपा को याद दिलाना चाहता है कि आज किसान जो मांग कर रहे हैं, वह भाजपा द्वारा किये गये वायदों और अतीत में श्री मोदी और भाजपा द्वारा समर्थित दृष्टिकोणों के अनुरूप है।

2011 में मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे और एक कार्यकारी समूह के अध्यक्ष थे तब उन्होंने भारत सरकार के “उपभोक्ता मामलों पर कार्य समूह की रिपोर्ट” में सिफारिश की थी कि एमएसपी प्रवर्तन को वैधानिक प्रावधानों के माध्यम से अनिवार्य किया जाना चाहिए। इसके अलावा, इससे पहले, 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में “दीर्घकालिक अनाज नीति पर उच्च स्तरीय समिति” की एक रिपोर्ट में सिफारिश की गयी थी कि सीएसीपी को उत्पादन की सी2 लागत के आधार पर तय किया जाना चाहिए। कमिटी ने यह भी सिफारिश की कि एमएसपी को वैधानिक दर्जा मिलना चाहिए। इस समिति को तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा दीर्घकालिक अनाज नीति के लिए सिद्धांत और दिशानिर्देश निर्धारित करने के लिए कहा गया था। यह भी सर्वविदित है कि श्री नरेंद्र मोदी और भाजपा ने किसानों के लिए सुधार का वायदा करते हुए 2014 में एमएसपी के मुद्दे पर पार्टी के चुनाव अभियान के लिए प्रचार किया था।

2018 में, मोदी सरकार ने संसद के पटल पर एक प्रतिबद्धता घोषित की कि एमएसपी को सभी किसानों के लिए एक वास्तविकता बनाया जाएगा। इसमें से कोई भी आश्वासन अमल में नहीं आया। अब समय आ गया है कि भाजपा किसानों से वायदे करने और फिर उनसे मुकरने की अपनी राजनीतिक बेईमानी पर गौर करे। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वर्तमान आंदोलन में किसानों की मांगों को पूरा करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि ऐसा नहीं करने के निहितार्थ देश के करोड़ों अन्नदाताओं के जीवन और मृत्यु से जुड़ा  है।

लोकनीति सत्याग्रह पदयात्रा का तीसरा दिन

गांधी जयंती पर चंपारण में शुरू हुई चंपारण-वाराणसी लोकनीति सत्याग्रह पदयात्रा यात्रा का सोमवार को तीसरा दिन था। रविवार को कोटवा में रात बिताने के बाद यात्रा बेलवा होते हुए सोमवार की रात रामपुर खजुरिया पहुंचेगी। स्थानीय लोगों के समर्थन और आतिथ्य के साथ यात्रा को अपने पूरे मार्ग में बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है।

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