23 अक्टूबर। कर्नाटक के कई जिलों में सांप्रदायिक नफरत फैलाने और अल्पसंख्यकों तथा दलितों पर हो रही हिंसा की घटनाओं के खिलाफ गुरुवार को प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारी मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई के उस बयान पर भी आक्रोशित थे जिसमें उन्हें ‘क्रिया-प्रतिक्रिया’ की बात कहकर सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को प्रकारांतर से जायज ठहराने की कोशिश की है। प्रदरशनकारियों ने मांग की कि मुख्यमंत्री अपना बयान वापस लें। किसी भी सरकार का पहला काम लोगों के जान-माल की रक्षा करना और कानून-व्यवस्था बनाए रखने का होता है। लिहाजा मुख्यमंत्री का बयान न सिर्फ निंदनीय है बल्कि कर्तव्य-द्रोह भी है। उनका बयान लोगों में सुरक्षा का भरोसा पैदा करने के बजाय भय पैदा करता है।
बंगलोर में हुए विरोध प्रदर्शन में सैकड़ों लोग शामिल थे। बंगलोर के अलावा बीजापुर, देवानगिरी, कोप्पल, गंगावती, रायचुर, उडुपी आदि जिला मुख्यालयों पर भी प्रदर्शन हुए। कई जगह विरोध प्रदर्शन तालुका स्तर पर भी हुए। बीदर में एपीसीआर और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने सांप्रदायिक हमलों के खिलाफ जिले के आला अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा। मंगलोर में सिविल सोसायटी के संगठनों ने डीसी से मिलकर ज्ञापन भी सौंपा और बिगड़ते हालात पर लंबी बहस भी की।
बंगलोर में हुई सभा में एआईसीयूएफ, आइसा, केवीएस और एसआईओ जैसे विद्यार्थी संगठनों के प्रतिनिधियों ने सवाल उठाया कि वे जिसे चाहे अपना मित्र या जीवनसाथी चुन सकते हैं, यह अधिकार हमें संविधान ने दे रखा है, इसे कोई कैसे छीन सकता है। कर्नाटक में जो कुछ हो रहा है उससे तो यही कहा जा सकता है कि भाजपा समेत संघ परिवार दलित विरोधी, अल्पसंख्यक विरोधी, महिला विरोधी है। यह सरकार एक तरफ शिक्षा को और महंगी करती जा रही है, रोजगार के नए अवसर पैदा करने के बजाय बने-बनाए रोजगार को भी खत्म कर रही है, और दूसरी तरफ जब छात्र-छात्राओं पर गुंडों के हमले होते हैं तो खामोश बनी रहती है। विद्यार्थी प्रतिनिधियों ने कहा कि वे संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए लड़ते रहेंगे।
बंगलोर में हुई सभा को कर्नाटक स्लम जनांदोलना, जनारा संघटने, दलित समारा सेने और दलित-माइनारिटी सेने के नुमाइंदों ने भी संबोधित किया। जमाते-इस्लामी हिंद और फारवर्ड ट्रस्ट के नेताओं ने कहा कि वे ऐसा भारत चाहते हैं जिसमें सभी समुदायों के लोग सुरक्षा, सम्मान और गरिमा से जी सकें और ऐसा भारत बनाने के संघर्षों में वे हर कदम पर साथ हैं। जेएमएस, ऐपवा और सावित्री बाई फुले महिला संघटने की नेताओं ने कहा कि यह हमारा अधिकार है कि हम अपनी पसंद का खाना खाएं, अपनी पसंद की पोशाक पहनें, अपनी मर्जी से दोस्त और जीवनसाथी चुनें। लेकिन हिंदुत्ववादी संगठन यह जताना चाहते हैं मानो औरतें पुरुषों की या समुदाय की जायदाद हैं। स्त्री प्रतिनिधियों ने कहा कि यह गुंडागर्दी वे सहन नहीं करेंगी और हर हाल में संविधान-प्रदत्त अपने अधिकारों की रक्षा करेंगी।
बंगलोर में विभिन्न जन संगठनों का एक प्रतिनिधिमंडल विरोध-प्रदर्शन स्थल से जाकर गृहमंत्री अरागा ज्ञानेंद्र से मिला और दलितों, अल्पसंख्यकों तथा महिलाओं पर हो रहे हमलों को रोकने और हमलावरों के खिलाफ फौरन कार्रवाई करने की मांग की। गृहमंत्री को जाति और धर्म के नाम पर हो रही हिंसा के खिलाफ लिखित मांगपत्र भी सौंपा गया।