5 नवंबर। “यह दिल्ली में दीवाली का पहला अनुभव था ऐसा धुंध और प्रदूषण मैंने कभी नहीं देखा। आंखों में पानी आ रहा है सांस नहीं ली जा रही।” दिल्ली के मयूर विहार फेज थ्री में रह रहे अभिषेक कुमार दीवाली से एक दिन बाद यह शिकायत ‘डाउन टु अर्थ’ से करते हैं। ऐसा ही अनुभव दिल्ली-एनसीआर के लगभग हर कोने पर है।
वायु प्रदूषण नियंत्रण करने वाली सरकारी एजेंसियों ने दीवाली से एक दिन पहले यह सोचा भी नहीं था कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण आपात स्तर पर पहुंच जाएगा, हालांकि एक्सपर्ट इस बात पर लगातार जोर दे रहे थे।
सरकारी एजेंसियों का अनुमान यहां तक लगता रहा कि लोगों को जहरीली हवा से बचाने के लिए दिल्ली-एनसीआर में गंभीर या इमरजेंसी श्रेणी वाले ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) को लागू करने के बजाए प्री- दीवाली 3 नवंबर को ग्रेप की पांचवी बैठक में अतिरिक्त कदम न उठाए जाने का निर्णय लिया गया। बैठक में कहा गया कि उच्च उत्सर्जन मॉडल के आधार पर भी कहा जा सकता है कि दीवाली या उसके बाद वायु गुणवत्ता स्तर बहुत खराब श्रेणी से आगे नहीं जाएगा।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के केंद्रीय नियंत्रण कक्ष (सीसीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में पार्टिकुलेट मैटर (पीएण) 2.5 का स्तर 4 नवंबर को रात 11.30 बजे आपात स्तर 309 पर पहुंच गया जबकि पीएम 10 का स्तर मध्य रात्रि के बाद सुबह 3.30 बजे 500 के आपात स्तर को पार कर गया।
5 नवंबर की सुबह 10:30 बजे तक दिल्ली-एनसीआर में पीएम 2.5 को आपात स्तर पर बने हुए 11 घंटे और पीएम 10 को कुल 8 घंटे हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में ग्रेप का गंभीर स्तर का प्लान नहीं लागू किया जा सका है।
दिल्ली-एनसीआर में पार्टिकुलेट मैटर के प्रदूषण की स्थिति सुबह 10 बजकर 34 मिनट पर पीएम 2.5 अपने 24 घंटे के औसत सामान्य मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से 7 गुना ज्यादा 417 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पीएम 10 अपने 24 घंटे के सामान्य औसत स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति घ मीटर से करीब 6 गुना ज्यादा 598 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है।
ग्रेप के गंभीर स्तर के प्लान में हॉट मिक्स प्लांट, स्टोन क्रशर को बंद करने के साथ ही कोयला आधारित बिजली पॉवर प्लांट से बिजली पैदा करने के बजाए नैचुरल गैस आधारित पावर प्लांट से बिजली पैदा करने पर जोर देना है। वहीं, आपात स्तर के प्लान में इंडस्ट्री को बंद करने, निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाने और भारी परिवहन को दिल्ली की सीमाओं से बाहर रोकने जैसे कदम शामिल हैं।
सीपीसीबी के 5 नवंबर को सुबह 10.5 बजे के मुताबिक दिल्ली में वायु गुणवत्ता निगरानी के काम करनेवाले कुल 39 स्टेशनों में 5 स्टेशन काम नहीं कर रहे हैं, वहीं 29 स्टेशनों पर वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) गंभीर श्रेणी (400-500) वाला है। इसके अलावा दिल्ली के आस-पास मौजूद शहर गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुरुग्राम, नोएडा, ग्रेटर नोएडा (418), बागपत (427), बल्लभगढ़ (427) बुलंदशहर (408) भी गंभीर श्रेणी वाले एक्यूआई में बने हुए हैं।
शहरएक्यूआई, 4 नवंबर, रात आठ बजेएक्यूआई, 5 नवंबर, सुबह 10.5 बजे दिल्ली 404 460 गाजियाबाद 440 446 नोएडा 422 463 रोहतक 412 449 गुरुग्राम 416 477 फरीदाबाद 420 458 पानीपत 401 449
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के वायु गुणवत्ता सूचकांक की चार अहम श्रेणियां हैं। इसके मुताबिक 1-50 का एक्यूआई अच्छा, 51 से 100 का एक्यूआई संतोषजनक, 101 से 200 का एक्यूआई मध्यम (मॉडरेट), 201-300 का एक्यूआई खराब, 301 से 400 का एक्यूआई बहुत खराब और 401-500 का एक्यूआई गंभीर श्रेणी की वायु गुणवत्ता को दर्शाता है। जबकि 501 से अधिक इमरजेंसी वायु गुणवत्ता को दर्शाता है।
पहले ही लागू करना चाहिए था गंभीर श्रेणी वाला ग्रेप प्लान
वायु गुणवत्ता पर निगरानी रख रहे दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट (सीएसई) के सस्टेनबल सिटीज प्रोग्राम के प्रोग्राम मैनेजर व एक्सपर्ट अविकल सोमवंशी ने बताया कि एजेंसियों को पहले से ही पता था कि दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता गंभीर स्थिति में दाखिल हो सकती है इसके बावजूद कदम न उठाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस बार फोरकास्टिंग सिस्टम विकसित कर लिया गया था ऐसे में पहले से ही खराब स्थितियों के अनुमान लग रहे थे। कोविड संक्रमण ने लोगों को पहले से ही बीमार औऱ कमजोर बना रखा है ऐसे में इस बार इमरजेन्सी स्तर के ग्रेप प्लान को पहले ही लागू किए जाने की जरुरत थी।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी के मुताबिक 5 और 6 नवंबर को पराली जलाने का प्रतिशत बढ़ने और तापमान के कम होने से स्थितियां खराब हो सकती हैं।
(डाउन टु अर्थ हिंदी से साभार)