भाईजी का जीवन एक नदी की तरह था

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एस.एन. सुब्बाराव (7 फरवरी 1929 - 27 अक्टूबर 2021)

— रमेश चंद्र शर्मा —

ब्द, बोल, विचार, सर्व धर्म प्रार्थना, गीत, संगीत, अच्छे कर्म, साधना, मौन, श्रम कभी मरते नहीं हैं। कभी विविध कारण से धुंधले या मंद पड़ सकते है मगर जिंदा रहते हैं। समय के साथ वे फलते-फूलते रहते है। लोगों की वाणी में, कंठ में, विचारों में, यादों में, इतिहास में, दिलों में, दिमाग में आते रहते हैं, गूंजते हैं, उभरते हैं, फलते-फूलते, फूटते हैं झरने की तरह।

भाईजी के पास यह सब बहुत सहजता, सरलता, स्पष्टता के साथ उनका अंग बन गया। सोते-जागते, आते-जाते, उठते-बैठते, चलते-फिरते, खाते-पीते, सोचते-विचारते, कथनी-करनी में यह साफ झलकता रहता, स्वच्छ हवा, पानी की तरह सबको सहज उपलब्ध। एक चुंबकीय क्षेत्र बनाता था जिसका आकर्षण अपनी ओर खींचता है। जिन खोजा तिन पाईंया।

उनका जीवन एक नदी की तरह रहा जो सदैव सक्रिय रहती है। चाहे पहाड़ हो या धरातल, ऊंचाई हो या ढलान, गांव हो या शहर, बस्ती हो या जंगल, देश हो या विदेश, बंगलौर, दिल्ली हो या चंबल, सुनसान हो या बीहड़, वही स्वभाव, निडरता, पहनावा, सक्रियता, शांति, सौहार्द, साझापन, सद्भावना, श्रमदान, सर्व धर्म प्रार्थना, गीत, खेल, भारत से लेकर अमेरिका तक।

सबके भाईजी

हर आयु वर्ग, स्थान से भाईजी संपर्क, संवाद साधने की विशेष क्षमता रखते थे, चाहे गांव की सभा हो या संयुक्त राष्ट्र संघ। एक तरफ बच्चों के लिए जेब से गुब्बारा निकलता, किशोर, युवा जवान, अधेड़ आयु के लिए गीत, खेल, श्रम, संदेश। जिसके लिए जो सार्थक और उपयोगी हो, उसकी समझ, उसकी क्षमता के अनुसार उसके सामने रखना।

उनके संवाद और संपर्क में इतनी व्यापकता थी कि आज भी बड़ी संख्या में लोगों के पास भाईजी का निवास, शिविर, सभा, सम्मेलन, प्लेटफार्म, रेल, प्रवास से लिखा हुआ पत्र, अन्तर्देशीय पत्र, पोस्ट कार्ड आसानी से मिल जाएगा। आजकल फोन करके हालचाल पूछते, बात करते।

जवानी में अपना बंगलोर का घर छोड़कर दिल्ली आए मगर देश दुनिया में इतने घर बन गए कि आज सब की गिनती करना कठिन है।

डॉ एसएन सुब्बाराव अपने आप में किसी समूह, संगठन से ज्यादा प्रभावी, व्यापक रहे। उन्होंने राष्ट्रीय युवा योजना नामक संगठन बनाया। भाईजी के स्वभाव के कारण यह संगठन कम परिवार के रूप में ज्यादा विकसित हुआ। इसकी यह बड़ी विशेषता है। ना सदस्यता रजिस्टर, ना सदस्यता शुल्क, ना विशेष बंधन, शर्तें एक व्यापक सोच समझ विचार लिये परिवार की तरह सबके लिए खुले दरवाजे। सबका स्वागत, सब अपने, कोई पराया नहीं।

कारवां बनता गया

छात्र जीवन में कांग्रेस सेवा दल में शामिल हुए (राष्ट्रीय मुख्य संगठक), गांधी शांति प्रतिष्ठान के आजीवन सदस्य रहे, गांधी शताब्दी में बड़ी लाइन, छोटी लाइन में चली गांधी दर्शन रेलगाड़ी में शामिल रहे, महात्मा गांधी सेवा आश्रम की स्थापना की, चंबल शांति मिशन तथा समिति, शिविर तथा चंबल शांति कार्य एवं पुनर्वास में शामिल रहे। आंतर भारती के कार्यक्रम, बाल महोत्सव, बाल मेला, राष्ट्रीय युवा योजना, भारत जोड़ो, सदभावना रेल के सूत्रधार रहे। भाईजी के संपर्क, संवाद, विभिन्न गतिविधियों, सभा-सम्मेलनों, बैठकों, कार्यक्रमों में शामिल साथी जुड़ते गए और कारवां बनता गया।

महात्मा गांधी सेवा आश्रम की जौरा, मध्यप्रदेश में स्थापना अपने गांधी शताब्दी रेल के साथियों से मिलकर की। प्रारम्भिक काल में सबसे ज्यादा समय पी वी राजगोपाल ने आश्रम में बिताया तथा बाद में रणसिंह परमार ने कमान संभाली।

बागी पुनर्वास एक बड़ा महत्वपूर्ण कार्य रहा। बागी परिवारों से संबंध, उनकी देखभाल। खुली जेल में बागियों से मिलना, उनकी समस्याओं का समाधान करना-करवाना विभिन्न विभागों से संबंधित कार्य को अंजाम तक पहुंचाना कोई आसान काम नहीं था।

नौजवान आओ रे

किसी भी समाज, देश में बदलाव की असली ताकत युवा पीढ़ी होती है। भाईजी ने युवाओं को दिशा देने, उनकी दशा सुधारने के लिए सतत प्रयास किए। युवाओं को रचना, निर्माण से जोड़ा।

बाल मेले, बाल महोत्सव के माध्यम से बालपन से ही बच्चों को शांति, एकसाथ रहने, रचना, निर्माण, सद्भावना के लिए संस्कारित करना। कहानी किस्से, गीत, नाटक, भाषण, अंताक्षरी, खेल, चित्रकला, पेपर कार्य, मिट्टी कार्य, भिन्न-भिन्न भाषा सीखना जैसे विभिन्न कलाकारी के अवसर प्रदान करना। अलग-अलग घरों में रहना। विविधता में एकता का संदेश। भाईजी स्वयं अनेक भाषाएं समझते, बोलते, जानते थे।

सद्भावना की धुन

देश में कहीं भी हिंसा, मारपीट, दंगा-फसाद हुआ, भाईजी के आह्वान पर, उनके नेतृत्व में सैकड़ों युवा साथी शांति, सद्भावना के लिए पहुंच जाते। कश्मीर से कन्याकुमारी, अरुणाचल से द्वारका अर्थात पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण। इसमें अण्डमान निकोबार, लक्षद्वीप जैसे स्थान भी शामिल हैं।

ऐसे व्यक्ति का पंचतत्त्व का भौतिक शरीर जाता है। उसका विचार, चिंतन, मनन, संस्कार, काम अनेक लोगों में रच-बस जाता है जो आगे चलता रहता है। अब भी भाईजी ऐसे जिंदा हैं, जिंदा रहेंगे।

त्याग और प्रेम के पथ पर चलकर मूल ना कोई हारा, हिम्मत से पतवार संभालो फिर क्या दूर किनारा।

नौजवान आओ रे, नौजवान गाओ रे,

लो कदम मिलाओ रे, लो कदम बढ़ाओ रे।

जय जगत पुकारे जा, सर अमन पर वारे जा,

सबके हित के वास्ते, अपना सुख बिसारे जा।

भाई जी की स्मृति को हार्दिक सादर जय जगत।

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