सौ से अधिक लेखकों ने विनोद कुमार शुक्ल के समर्थन में आवाज उठायी

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13 मार्च। हिंदी के वयोवृद्ध कवि मलय, प्रख्यात संस्कृतिकर्मी एवं साहित्यकार अशोक वाजपेयी, प्रगतिशील लेखक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष विभूति नारायण राय, वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया, प्रसिद्ध लेखक व कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल समेत सौ से अधिक लेखक साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त लेखक विनोद कुमार शुक्ल के समर्थन में खुलकर सामने आए हैं।

इन लेखकों ने श्री शुक्ल के दो प्रकाशकों के साथ हुए विवाद में दो टूक शब्दों में कहा है कि रॉयल्टी आदि के मामले में विनोद जी के साथ किसी तरह का अन्याय नहीं होना चाहिए और उनका शोषण बन्द होना चाहिए।

इन लेखकों ने एक साझा वक्तव्य में कहा है कि हम हिंदी के लेखक यशस्वी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल के साथ हिंदी के दो प्रकाशकों द्वारा किए गए शोषण और दुर्व्यवहार से बेहद चिंतित हैं और उन प्रकाशकों के इस रवैये की कड़ी भर्त्सना करते हैं।

बयान में कहा गया है कि श्री शुक्ल ने अपने ऑडियो और वीडियो में राजकमल प्रकाशन और वाणी प्रकाशन के बुरे बर्ताव के बारे में जो बातें कहीं हैं, वह हतप्रभ करनेवाली हैं। श्री शुक्ल 86 वर्ष की अवस्था में कई तरह की शारीरिक व्याधि से ग्रस्त हैं और गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। ऐसे में उनके बहुचर्चित एवं अनूठे उपन्यास “नौकर की कमीज” और “दीवार में एक खिड़की रहती थी” की पूरी रॉयल्टी न मिलना और प्रकाशकों द्वारा उसका हिसाब-किताब न देना अत्यंत क्षोभ की बात है। हम हिंदी के लेखक उपरोक्त प्रकाशकों द्वारा विनोद जी के संदर्भ में दिये गए स्पष्टीकरण से सहमत नहीं उ और इसे प्रकाशकों द्वारा इस मामले में लीपापोती करने का प्रयास मानते हैं।

साझा बयान में यह आरोप लगाया गया है कि हिंदी में प्रकाशन जगत लेखकों के निरंतर शोषण पर आधारित है। अक्सर प्रकाशक बिना अनुबंध के पुस्तकें छापते हैं और छपी हुई किताबों की रायल्टी देना तो दूर, उसका हिसाब-किताब भी नहीं देते। अनुबंध-पत्र भी प्रकाशकों के हित में बने होते हैं जिसमें लेखकों के अधिकार सुरक्षित नहीं। प्रकाशकों की मनमानी से हिंदी के लेखक त्रस्त हैं और विनोद जी के शब्दों में किताबें बंधक बना ली गयीं हैं। ये प्रकाशक एक तरफ तो किताबों के न बिकने का रोना रोते हैं पर दूसरी तरफ वे मालामाल भी हो रहे हैं। उनका नित्य विस्तार हो रहा है और उनके कारोबार में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

बयान में यह भी कहा गया है कि हम हिंदी के लेखक प्रकाशकों की इस मोनोपोली के भी खिलाफ हैं और लेखकों के साथ उनसे सम्मानपूर्वक व्यवहार की उम्मीद करते हैं। हमारा मानना है कि विनोद कुमार शुक्ल की व्यथा को प्रकाशकों द्वारा तत्काल सुना जाना चाहिए और बिना उनकी अनुमति के उनकी किताबों का प्रकाशन और बिक्री नहीं होनी चाहिए या ऑडियो बुक नहीं निकलनी चाहिए।

लेखकों ने हिंदी के प्रकाशकों से किताबों के प्रकाशन के बारे में एक उचित नीति बनाए बनाये जाने और पुस्तकों को गुणवत्ता के आधार पर प्रकाशित करने की अपील की है और कहा है कि किताबों को साहित्येतर कारणों से न छापा जाए। उन्होंने प्रकाशकों से कहा है कि वे लेखकों के आत्मसम्मान की भी रक्षा करें और यह न भूलें कि लेखकों की कृतियों के कारण ही उनका कारोबार जीवित है।

बयान में हिंदी के सभी लेखकों से अपील की गयी है कि वे विनोद जी के समर्थन में खुलकर आएं और उनका समर्थन करें तथा प्रकाशकों के सामने समर्पण न करें। हम हिंदी के लेखक प्रकाशकों की चिरौरी की संस्कृति के भी विरुद्ध हैं। लेखकों के अधिकारों पर किसी तरह का कुठाराघात हमें स्वीकार्य नहीं है।

बयान जारी करनेवाले लेखकगण-

मलय ममता कालिया अशोक वाजपेयी प्रयाग शुक्ल देवेंद्र मोहन विभूति नारायण राय गिरधर राठी
सुरेश सलिल हरीश करमचंदानी स्वप्निल श्रीवास्तव कौशल किशोर राकेश वेदा विजय शर्मा मीता दास अवधेश श्रीवास्तव उर्मिला शुक्ल रजनी गुप्त
विभा रानी निर्मला भुराड़िया आशुतोष भारद्वाज
मानव कौल लीना मल्होत्रा प्रज्ञा रावत चंदन पांडेय
भरत तिवारी अनिल करमेले पल्लवी प्रकाश
अन्य लेखक।

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