15 अगस्त। हाल ही में दक्षिण गुजरात की सहकारी चीनी मिलों ने गन्ना कटाई श्रमिकों के लिए 50 रुपये प्रति टन वेतन वृद्धि की घोषणा की। 18 प्रतिशत वेतन वृद्धि का मतलब है, कि लगभग एक लाख आदिवासी परिवार जो हर साल आसपास के क्षेत्रों से गन्ने की फसल काटने के लिए पलायन करते हैं, उन्हें 9,000 रुपये प्रति परिवार की अतिरिक्त आय होगी। यह 90 करोड़ रुपये की वृद्धिशील मजदूरी के बराबर है। यदि मुकद्दमों (श्रमिकों की भर्ती करने वाले और एक ही समुदाय से आने वाले श्रमिक ठेकेदार) के लिए 20 रुपये प्रति टन का वृद्धिशील कमीशन जोड़ा जाता है, तो वेतन वृद्धि 126 करोड़ रुपये हो जाती है। यह एक दुर्लभ उपलब्धि है क्योंकि भारत में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का विशाल समूह नियोक्ताओं के साथ सामूहिक बातचीत का आयोजन और संचालन करने में शायद ही कभी सक्षम होता है।
यह गुजरात में अनौपचारिक श्रमिक संघ मजदूर अधिकार मंच (एमएएम) द्वारा अपनाई गई रणनीति का परिणाम था, जो 15 से अधिक वर्षों से गुजरात में अनौपचारिक श्रमिकों को संगठित करने में लगा हुआ है। एमएएम पिछले सात वर्षों से दक्षिण गुजरात की चीनी मिलों में गन्ना कटाई करनेवालों के अधिकारों के लिए लड़ रहा है। गुजरात के डांग और तापी जिलों, महाराष्ट्र के नंदुरबार और धुले जिलों से हर साल लगभग दो लाख आदिवासी श्रमिक सूरत, नवसारी, वलसाड और भरुच आदि जिलों में स्थित सहकारी चीनी मिलों में काम करने के लिए पलायन करते हैं। मजदूर साल में छह महीने अपने परिवार के साथ प्रवास करते हैं। वर्षों से अथक प्रयासों, गहन जागरूकता अभियानों और हार्वेस्टर और मुकदमों के बीच लामबंदी प्रयासों के माध्यम से एमएएम 37 रुपये की वृद्धि सुनिश्चित करने में सफल रहा है।
(Counterview.com से साभार)
अनुवाद – अंकित निगम
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