9 नवंबर। एडीटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने एक बयान जारी करके त्रिपुरा पुलिस की उस कार्रवाई की निन्दा की है जिसमें 102 लोगों के खिलाफ यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि निवारक कानून) के तहत मामला दर्ज किया गया है। गिल्ड ने कहा है कि वह त्रिपुरा पुलिस की इस कार्रवाई से स्तब्ध है कि राज्य में हुई सांप्रदायिक हिंसा की महज रिपोर्टिंग करने और उसके बारे में लिखने के कारण यूएपीए जैसे बेहद कठोर कानून के तहत मामला दर्ज किया जा रहा है जिसमें जमानत मिलना बहुत मुश्किल है।
गौरतलब है कि त्रिपुरा पुलिस ने कई सोशल मीडिया मंचों को नोटिस भेजा है। पत्रकार श्याम मीरा सिंह ने आरोप लगाया है कि उनके खिलाफ सिर्फ इस ट्वीट – त्रिपुरा इज बर्निंग – के कारण यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है। पत्रकारों पर यूएपीए लगाने से कुछ ही दिन पहले त्रिपुरा पुलिस ने दिल्ली के कुछ वकीलों के खिलाफ भी यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया था जो एक स्वतंत्र तथ्य संकलन तथा जांच समिति के तौर पर त्रिपुरा गये थे।
एडीटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा, महामंत्री संजय कपूर और कोषाध्यक्ष अनंत नाथ की ओर से जारी बयान में गिल्ड ने कहा है कि त्रिपुरा सरकार सांप्रदायिक हिंसा को रोकने और इस हिंसा में शामिल रहे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने में अपनी नाकामी से ध्यान हटाने के लिए इस तरह की बेजा कार्रवाई कर रही है। सरकारें रिपोर्टिंग न होने देने के लिए यूएपीए जैसे बेहद कठोर कानून का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं।
एडीटर्स गिल्ड ने मांग की है कि त्रिपुरा सरकार पत्रकारों और सिविल सोसायटी के कार्यकर्ताओं को परेशान करने के बजाय सांप्रदायिक हिंसा की वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष जांच करे।
एडीटर्स गिल्ड ने अपनी यह मांग एक बार फिर दोहरायी है कि सुप्रीम कोर्ट को इस बात का संज्ञान लेना चाहिए कि किस तरह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ यूएपीए जैसे कानूनों का दुरुपयोग किया जा रहा है, और अदालत को पत्रकारों के खिलाफ ऐसे कानूनों का इस्तेमाल किए जाने के बारे में सख्त दिशा-निर्देश जारी करना चाहिए ताकि ये कानून प्रेस की आजादी को कुचलने का आसान जरिया न बन पाएं।