— प्रोफ़ेसर राजकुमार जैन —
सोशलिस्ट तहरीक विशेषकर डॉ. राममनोहर लोहिया का विपुल साहित्य अगर आज उपलब्ध है तो इसका श्रेय हैदराबाद के बदरी विशाल पित्ती जी, डॉ. हरिदेव शर्मा, डॉ. मस्तराम कपूर को जाता है।
1955 में बनी ऑल इण्डिया सोशलिस्ट पार्टी का केंद्रीय कार्यालय हैदराबाद में बना था उसकी एक बड़ी वजह यह थी कि बदरी विशाल जी जैसे समर्पित नेता वहाँ थे। पित्ती जी का परिवार हैदराबाद के निजाम प्रशासन का विश्वसनीय साहूकार था। ‘राजा बहादुर’ की पदवी से नवाजे गए, प्रपितामह के दादा “राय बहादुर” ‘सर नाइटहुड’ से अलंकृत किए गए दादा। राजा के खिताब से जाने गए पिता के घर में जन्म लेनेवाले बदरी विशाल पित्ती सोशलिस्ट बनकर गरीबों, किसानों, मजलूमों, मज़दूरों, लोकतंत्र के सवाल पर सत्याग्रह करते हुए जेल गए। यह इसलिए हुआ क्योंकि लड़कपन में ही बदरीविशाल जी लोहिया के लाडले बन गए।
डॉ. लोहिया यायावर थे उनका कोई एक ठिकाना नहीं था। समय-समय पर अनेकों स्थानों पर उनके व्याख्यानों, शिक्षण शिविरों, वक्तव्यों, लेखों का संग्रह करने में बदरी विशाल जी ने अपने आपको पूर्णकालिक खपा दिया था।
डॉ॰ साहब की कोई सभा होती तो बदरी विशाल जी टेपरिकार्डर लेकर वहाँ उपस्थित रहते। उन दिनों अच्छी टेप की मशीनें भारी और बड़े बक्से के आकार की होती थीं। डॉ. साहब का जहाँ भी व्याख्यान होता बदरी विशाल जी स्वयं उपस्थित रहकर रिकार्ड करते।
मुझे याद है कि मई 1967 में दिल्ली पुलिसकर्मियों की हड़ताल हुई। पुलिस यूनियन के नेता ओमप्रकाश आर्य ने जो सोशलिस्ट नेता मनीराम बागड़ी के जानकार थे। दिल्ली के सप्रू हाउस हाल में डॉ. साहब की पुलिसकर्मियों के समर्थन में एक सभा करवायी। मैं भी उस सभा में मौज़ूद था, बदरी विशाल जी वहाँ आए हुए थे, उनके एक सहायक डॉ. साहब का भाषण टेप कर रहे थे। बीच में दो बार उठकर बदरी जी टेपिंग मशीन पर कार्य करनेवाले कार्यकर्ता को समझाने गए।
डॉ. साहब का काफी साहित्य उनके भाषणों से इकट्ठा किया गया। उस समय भाषणों के टेप होने, फिर लिपिबद्ध करने, संपादित करने के इस मुश्किल तथा समय लगाऊ, उसको छपवाने, छोटी-छोटी पुस्तिकाएँ बनवाकर वितरित करने का कार्य कोई मिशनरी ही कर सकता था। उस समय आज की तरह की तकनीकी सुविधा भी उपलब्ध नहीं थी। संग्रह में कोई कमी न रह जाए इसके लिए अतिरिक्त सावधानी, एकाग्रता, एकत्रित की गई सारी सामग्री का विषयवार संयोजन करके इनकी किताबें बनाने और प्राय: इन किताबों का अंतिम प्रूफ भी बदरी जी ने खुद देखा तथा अपने ही पैसे से छपवाया। लोकसभा में लोहिया जी के भाषण को बदरी विशाल जी ने सुसंपादित किया। मुझे याद है कि छात्र जीवन में लोहिया साहित्य नवहिंद प्रकाशन, हैदराबाद से प्रकाशित होकर छोटी-छोटी पुस्तिका में 3-4 रुपये मूल्य में पढ़ने को मिलता था।
हैदराबाद के हमारे पुराने समाजवादी साथी तथा न्यायाधीश के पद पर रह चुके गोपाल सिंह ठाकुर ने हाल ही में खबर दी है कि 55 वर्ष पूर्व बदरी विशाल पित्ती जी ने डॉ. लोहिया के समय-समय पर जो भाषण रिकार्ड किये थे, वे अभी तक ‘लोहिया वाणी’ कैसेट के रूप में उपलब्ध थे, परंतु अब इनको सीडी में परिवर्तित करके वितरित किया जा रहा है। साथी गोपाल सिंह बहुत ही शिद्दत के साथ इस कार्य में लगे रहते हैं। अभी हाल ही में इन्होंने स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी चिंतक मधु लिमये की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण चचित पुस्तक “कम्यूनिस्ट पार्टी : फैक्ट्स एण्ड फिक्शन” जो मेरे अथक प्रयास के बावजूद भी नहीं मिल पा रही थी, उसको ढूंढ़कर मुझको भिजवायी।
आज नौ भागों में हिंदी-अंग्रेज़ी में जो ‘राममनोहर लोहिया रचनावली’ मौज़ूद है, उसका सारा साहित्य जो अलग-अलग पुस्तिकाओं, किताबों, पर्चों, अख़बारों में छपा हुआ था, उसको करीने से परवान चढ़ाने का कार्य डॉ हरिदेव शर्मा जी, (भू.प. उप-डायरेक्टर नेहरू स्मारक संग्रहालय व पुस्तकालय, नयी दिल्ली) ने किया। मैं अक्सर हरिदेव जी से मिलने त्रिमूर्ति जाता था। चाय पिलाने के बाद, हरिदेव जी अपनी बेशकीमती दौलत को जो मोटी सुतली में चार बंडलों में बंधी होती थी उसको बड़े फख्र के साथ दिखलाते थे। वो बतलाते थे कि उन्हें केरल, बंगाल, मणिपुर इत्यादि जाना है। वहाँ पर डॉक्टर साहब ने फलाने सन में जो भाषण दिया था उसकी अमुक सोशलिस्ट के पास कापी है या सोशलिस्ट पार्टी के स्थानीय सम्मेलन में जो रपट छपी है, उसको लाना है। वे बनजारे दीवाने की तरह पूरे मुल्क में जाकर, खतो किताबत करके ढूंढ़कर लाते थे।
नौ भागों में छपा लोहिया रचनावली का पूरा साहित्य, डॉ. हरिदेव शर्मा ने सालों-साल लगाकर इकट्ठा किया था, उनकी तनख्वाह का काफी बड़ा हिस्सा इसमें ख़र्च हो जाता था। उनकी योजना थी कि लायब्रेरी से रिटायर्ड होकर वसंत कुंज के डॉ. राममनोहर लोहिया समता भवन में बैठकर रचनावली बनाने की।
उनके पास लगभग 60 हज़ार निजी किताबों का संग्रह था। मैं जब उनके घर वसंत कुंज में जाता था, तो उनके घर बामुश्किल कोई जगह खाली होती थी, जहाँ किताबें अटी-पटी न हों, डूप्लैक्स के इस फ्लैट में सीढ़ी पर किताबें रखी हुई होती थीं। बालकनी में उनके लोहे के दो बड़े ट्रंक रखे हुए थे, जिसमें उन्होंने सुतली में बंधी इस संपत्ति को बहुत ही हिफाजत से रखा हुआ था।
डॉ. लोहिया के समस्त साहित्य तथा कागज़ पत्रों के संग्रह-संपादन का कार्य भी उन्होंने अपने हाथ में ले रखा था। लगभग तीन हज़ार पृष्ठों का साहित्य उन्होंने इकट्ठा किया था। 1939 तक के लेखन को इकट्ठा कर कम्प्यूटर में रखवा भी दिया था। उसका पहला खंड तैयार कर समता ट्रस्ट हैदराबाद में बदरी विशाल पित्ती जी को प्रकाशनार्थ भेज भी दिया था।
आचार्य नरेन्द्रदेव की जन्मशती पर आचार्य जी पर एक पुस्तक एक अंग्रेज़ी में और एक हिंदी में प्रकाशित करने की योजना बनी। मधु जी के निर्देशन और हरिदेव जी के अथक परिश्रम से दोनों पुस्तकें प्रकाशित हुईं। बाद में आचार्य नरेन्द्रदेव जी के अंग्रेज़ी लेखन को चार खंडों ‘कलेक्टेड वर्क्स ऑफ आचार्य नरेन्द्र देव’ का संपादन हरिदेव जी ने संपन्न किया।
उनकी विद्वत्ता एवं अचूक दृष्टि का उदाहरण है कि वे न केवल शब्दों और नामों की वर्तनी की शुद्धता के प्रति अत्यधिक संवदेनशील थे बल्कि अल्पविराम, पूर्ण विराम, हाइफन आदि विराम चिह्नों के प्रति भी जागरूक थे।
राजमोहन गांधी ने लिखा है कि “मैं उन सैकड़ों शोधार्थियों में हूँ जो उनके सुझावों से लाभान्वित हुए, कभी किसी उपयोगी पुस्तक के संबंध में या किसी समाचार पत्र में छपी सूचना अथवा पुस्तिका के संबंध में। ऐसा लगता है कि बीसवीं सदी की भारतीय राजनीति का कोई ऐसा दस्तावेज़ नहीं है जिसकी उन्हें जानकारी नहीं है। निस्संदेह बहुभाषा ज्ञान ने उनकी इस मामले में मदद की। हिंदी, पंजाबी और अंग्रेज़ी में महारथ के अलावा उन्हें उर्दू, मराठी और बंगाली की भी जानकारी थी …. हरिदेव जी ने मुझे बताया था कि जब वे बालक थे वे 1946-47 में कई बार मंदिर मार्ग स्थित भंगी कॉलोनी (अब वाल्मीकि कॉलोनी) में गांधीजी जी की प्रार्थना सभाओं में गए थे। यह बताते हुए उनकी आँखें भर आयीं कि बापू ने सिर पर हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद दिया था।
मुझे भी एक बार हरिदेव जी अपने पिताजी की दुकान जो कि भंगी कॉलोनी के निकट गोल मार्केट में स्पोर्ट्स के सामान की थी, वहाँ लेकर गए थे।
समाजवादी आंदोलन के दस्तावेज़ों के दो ग्रंथ (संपादक प्रो. विनोद प्रसाद सिंह एवं डॉ. सुनीलम) का कार्य मधु जी तथा हरिदेव जी के कारण संपन्न हो सका।
भारत सरकार ने जयप्रकाश नारायण के समग्र साहित्य के संपादन और प्रकाशन का एक प्रोजेक्ट स्वीकार कर वह कार्य नेहरू मैमोरियल म्यूजियम लायब्रेरी को प्रो. विमला प्रसाद के संपादन में सौंपा। प्रो. विमला प्रसाद ने हरिदेव जी से आग्रह किया कि वे संयुक्त संपादक बनें, उसके लिए प्रो. विमला प्रसाद ने हरिदेव जी को दस हज़ार रुपये हर महीने देने की पेशकश भी की, परंतु हरिदेव जी ने लेने से इनकार कर दिया। हरिदेव जी ने उसमें पूरी सहायता की। उसका एक खंड तैयार हुआ।
नेहरू स्मारक संग्रहालय व पुस्तकालय का मौखिक इतिहास विभाग उन्हीं की देन है जिसमें लगभग 700 व्यक्तियों के दुर्लभ संस्मरण संकलित हैं। उन्होंने सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों, समाजवादियों और अन्य दलों के नेताओं के साक्षात्कार लिये। अनेकों समाजवादी नेताओं के कागज़-पत्रों को इकट्ठा किया तथा माइक्रोफिल्मिंग तथा दीमक आदि से बचाकर रखने की व्यवस्था की।
आज समाजवादी आंदोलन के नेताओं की पुस्तकों, रचनाओं, दस्तावेजों, पाण्डुलिपियां, ऐतिहासिक चित्र जवाहरलाल नेहरू म्यूजियम एण्ड लायब्रेरी में माइक्रो फिल्म इत्यदि के रूप में सुरक्षित हैं, वह सब हरिदेव जी के कारण संभव हुआ है। जीवन के संध्याकाल में हर नेता अपने दस्तावेज हरिदेव जी को सौंप देता था। समाजवादी आंदोलन से संबंधित जितनी पुस्तकें, साहित्य बना है, उसमें हरिदेव जी का धन्यवाद, आभार पढ़ने को मिलेगा।
डॉ. हरिदेव जी तो छात्र जीवन से ही सोशलिस्ट थे। दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में पीएच.डी. की सनद मिलने से पहले ही डॉ. लोहिया द्वारा संपादित पत्रिका ‘जन’, ‘मैनकाइड’ से जुड़ चुके थे तथा डॉ. लोहिया के सचिव भी रह चुके थे। परंतु उनका स्वभाव, रुझान राजनारायण जी की तरफ़ ज्यादा था। अक्खड़ स्वभाव होने के कारण, हरिदेव जी की मधु जी से कोई निकटता नहीं थी। जैसा कि मधुजी की पत्नी चम्पा लिमये ने भी लिखा है कि “हरिदेव जी पहले मधुजी को एक रूखा, कड़वाहट से भरा, अहंकारी इंसान समझते थे।”
राजनारायण जी के 95 साउथ एवेन्यू वाले घर में मेरी हरिदेव जी से पहचान हो गयी थी। मैं और हरिदेव जी दोनों दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के छात्र होने के कारण प्रो. रमा मित्रा के अलग-अलग समय में छात्र भी रह चुके थे। उनसे बातें करने में बड़ा मज़ा आता था।
मधु जी की दिल्ली में पहली पुस्तक ‘पोलिटिक्स ऑफ्टर फ्रीडम’ तैयार हो रही थी, मैं मधु जी को लेकर जवाहरलाल नेहरू म्यूजियम लायब्रेरी गया था। मैंने हरिदेव जी के कमरे में जाकर कहा कि नीचे लायब्रेरी में मधु जी हैं, तो वो तुरंत नीचे लायब्रेरी में आए तथा उनसे इसरार किया कि आप मेरे कमरे में एक कप चाय पी लें तथा जो भी पुस्तक आपको चाहिए मैं आपको लाकर दे दूँगा। मधु जी, हरिदेव जी के कमरे में गये, वहाँ उन्होंने कहा कि मुझे फलां-फलां किताब चाहिए, हरिदेव जी ने कहा कि मैं इंतज़ाम करके अपने नाम ईशू करवाकर आपको भिजवा दूँगा। इसके बाद मधु जी जब भी लायब्रेरी जाते तो हरिदेव जी खुद उनके लिए किताबें अथवा फोटोकापी करवा देते।
किताब तैयार हो गयी। उसका विमोचन, विट्ठल भाई पटेल भवन के हॉल में ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता असमिया लेखक डॉ वीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य के द्वारा तय हुआ। चौधरी चरण सिंह तथा कई अन्य गणमान्य लोगों के साथ-साथ, अनेक बुद्धिजीवी, पत्रकार, लेखक उसमें आए थे, उस भीड़ में हरिदेव जी कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। मधु जी ने मुझसे पूछा कि हरिदेव जी नहीं दिख रहे, क्या बात है? मैंने कहा कि मैं खुद जाकर त्रिमूर्ति में निमंत्रण पत्र देकर आया था। अगले दिन मधु जी ने कहा कि हरिदेव जी से मिलने चलना है। मैं और मधु जी दोनों, हरिदेव जी के कमरे में पहुँचे, मधु जी ने हरिदेव जी से पूछा कि कल आप दिखाई नहीं दिये क्या बात थी, हरिदेव जी ने बड़े रूखेपन से कहा कि जब मुझे निमंत्रण ही नहीं था, तो मैं कैसे आता? मधु जी ने तेज आवाज़ में मुझसे पूछा कि क्या तुमने निमंत्रण नहीं दिया, मैंने कहा मैं निमंत्रण पत्र देने आया था परंतु हरिदेव जी सीट पर नहीं थे, मैंने उसको उनकी निजी सचिव मैडम उषा प्रसाद को देकर कहा था कि आप याद से इसे डॉ. साहब को दे दें। हरिदेव जी ने तुरंत मैडम उषा प्रसाद को बुलवाया, जानकारी लेने पर मैडम उषा प्रसाद ने कहा कि निमंत्रण पत्र तो ये दे गए थे, परंतु वह फाइलों के बीच दबा रह गया, मैं डॉ. साहब को सूचित नहीं कर पायी। हरिदेव जी ने शर्मिन्दगी महसूस की। मुझे अलग से कहा कि कल शाम को तुम मुझे मधु जी के घर लेकर चलना। अगले दिन मैं हरिदेव जी को मधु जी के घर पर लेकर गया। मधु जी की सादगी, प्रेम भरे व्यवहार को देखकर हरिदेव जी सदा के लिए मधुजी के होकर रह गए। मधुजी की अनेकों पुस्तकों, लेखों के संग्रह में डॉ.हरिदेव शर्मा जी तथा डॉ. मस्तराम कपूर ने सहायक के रूप में अपने को लगा दिया।
(जारी)
Sir,
I request you to participate in the 16th Aoril 10AM.programme at India International Center at Delhi.
शानदार.
बहुत बहुत बधाई.