शेतकरी कामगार महापंचायत में उमड़े लोग

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28 नवंबर। मुंबई के आजाद मैदान में रविवार को एक विशाल शेतकरी कामगार महापंचायत हुई, जिसमें 100 से अधिक संगठन एकसाथ आए। इस महापंचायत में पूरे महाराष्ट्र से सभी जातियों और धर्मों के किसान, मजदूर, खेतिहर मजदूर, महिलाएं, युवा और छात्र शामिल हुए। कई एसकेएम नेताओं ने इस कार्यक्रम में भाग लिया।

महापंचायत ने कृषि कानूनों को निरस्त कराने में किसानों के सालभर के संघर्ष की ऐतिहासिक जीत का जश्न मनाया, और शेष मांगों के लिए लड़ने के अपने दृढ़ संकल्प की घोषणा की। इनमें उचित एमएसपी का निर्धारण और एमएसपी पर खरीद की गारंटी देनेवाला केंद्रीय कानून, बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेना, लखीमपुर खीरी हत्याकांड के सूत्रधार अजय मिश्रा टेनी की कैबिनेट से बर्खास्तगी और गिरफ्तारी, चार श्रम संहिताओं को निरस्त कराना, निजीकरण के माध्यम से देश को बेचना बंद कराना, डीजल, पेट्रोल, रसोई गैस और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को आधा करना, मनरेगा के तहत काम के दिनों और मजदूरी को दोगुना कराना और इसे शहरी क्षेत्रों में विस्तारित कराना शामिल है।

शहीद कलश यात्रा

लखीमपुर खीरी के शहीदों की अस्थियां लेकर 27 अक्टूबर को पुणे से शुरू हुई शहीद कलश यात्रा ने पिछले एक महीने में महाराष्ट्र के 30 से अधिक जिलों की यात्रा की। आज सुबह, शहीद कलश यात्रा हुतात्मा चौक पहुँची, जो 1950 के दशक में संयुक्त महाराष्ट्र संघर्ष के 106 शहीदों की याद कराता है। इसके बाद आजाद मैदान में महापंचायत के ठीक बाद शाम करीब 4 बजे एक विशेष कार्यक्रम में लखीमपुर खीरी नरसंहार के शहीदों की अस्थियां गेट-वे ऑफ इंडिया के पास अरब सागर में विसर्जित की गयीं।

रविवार को महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले की पुण्यतिथि भी थी और एसकेएम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

कृषिमंत्री का बेतुका बयान

संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि केंद्रीय कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का यह कहना गलत और अनुचित है कि पीएम द्वारा घोषित समिति के गठन के साथ, “किसानों की एमएसपी पर मांग पूरी हो गई है”। यह दावा करना सर्वथा अनुचित और अतार्किक है कि “फसल विविधीकरण, शून्य-बजट खेती, और एमएसपी प्रणाली को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाने के मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए” एक समिति बनाने से एमएसपी पर किसानों की मांग पूरी हो गयी है। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि तोमर का यह दावा भी गलत है कि “केंद्र ने पराली जलाने को अपराध से मुक्त करने की किसान संगठनों की मांग को भी स्वीकार कर लिया है।” जैसा कि एसकेएम द्वारा बताया गया है, “राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम 2021” में पर्यावरण मुआवजा के नाम से एक नयी धारा 15 जारी है, जिसमें कहा गया है कि “आयोग, पराली जलाने से वायु प्रदूषण करनेवाले किसानों से ऐसी दर से और इस तरह से पर्यावरणीय मुआवजे को वसूल सकता है, जैसा कि निर्धारित किया जा सकता है”, भले ही इसे “दंड” न कहा जाए। (https://egazette.nic.in/WriteReadData/2021/228982.pdf)

कृषिमंत्री बिजली संशोधन विधेयक 2021 पर भी चुप हैं, जो आज से शुरू होनेवाले संसद के शीतकालीन सत्र के लिए सूचीबद्ध है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि तोमर ने कहा कि किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेना और आंदोलन के शहीदों को मुआवजा भी राज्य सरकारों के मामले हैं, और वे इन मामलों पर फैसला करेंगे। इन दोनों मुद्दों पर पंजाब सरकार ने पहले से ही प्रतिबद्धता जाहिर की है। यह देखते हुए कि अन्य सभी राज्य भाजपा शासित राज्य हैं, और यह देखते हुए कि आंदोलन भारत की भाजपा शासित सरकार की किसान विरोधी नीतियों के कारण उत्पन्न हुआ, यह महत्त्वपूर्ण है कि जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होनी चाहिए, यह सुनिश्चित करने के लिए कि भाजपा शासित राज्य इस प्रतिबद्धता का पालन करें। कृषिमंत्री अजय मिश्रा टेनी की गिरफ्तारी और बर्खास्तगी की एसकेएम की मांग पर भी चुप रहे। एसकेएम ने इस चुप्पी को अफसोसनाक बताया है।

पिछले 12 महीनों में अब तक किसान आंदोलन की मांगों को पूरा करने के लिए कम से कम 686 किसानों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। हरियाणा के किसान नेताओं का अनुमान है कि पिछले एक साल में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के लिए लगभग 48000 किसानों को कई पुलिस मामलों में फंसाया गया है। कई पर देशद्रोह और हत्या के प्रयास, दंगा आदि जैसे गंभीर आरोप हैं। उत्तर प्रदेश, चंडीगढ़, उत्तराखंड, दिल्ली और मध्यप्रदेश में भी इस संघर्ष के तहत किसानों के खिलाफ मामले दर्ज किये गये हैं। पंजाब में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने घोषणा की थी कि उनकी सरकार अब तक दर्ज सभी मामलों को वापस लेगी।

इस पृष्ठभूमि में, एसकेएम ने स्पष्ट किया है कि किसानों के साथ बातचीत फिर से शुरू किये बिना, केंद्र सरकार अलोकतांत्रिक, एकतरफा तरीके से किसानों के विरोध को समाप्त करने की उम्मीद नहीं कर सकती है।

आज एक ऐतिहासिक दिन

केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर आज ‘कृषि कानून निरसन विधेयक 2021’ को विचार करने और पारित करने के लिए पेश करेंगे। यह मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश, 2020, किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020, आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन करने के लिए आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 को निरस्त करनेवाला एक विधेयक है। यह गौरतलब है कि 2021 का यह विधेयक संख्या 143, जो 2020 में बनाये गये कानूनों, जिसके कारण भारत के किसानों द्वारा भारी ऐतिहासिक विरोध किया गया, की वापसी के लिए है, अपने उद्देश्यों और कारणों के विवरण में कानूनों का डटकर बचाव करता है और केवल एक समूह के किसानों के विरोध का उल्लेख करता है। यह निरसन को आजादी का अमृत महोत्सव के ‘समावेशी विकास और विकास के पथ पर सभी को एकसाथ ले जाने की समय की आवश्यकता’ के साथ जोड़ता है।

दुनिया भर में प्रदर्शन

भारत के किसान संघर्ष के समर्थन में दुनिया भर में अलग-अलग जगहों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। लंदन में भारतीय उच्चायोग में विरोध के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका में विन्निपेग के मैनिटोबा में विरोध प्रदर्शन हुआ।

जज्बे की कहानियां

किसानों के आंदोलन को आगे बढ़ाने और इसे अपूर्व बनानेवाले असाधारण और दृढ़निश्चयी प्रदर्शनकारियों के बारे में हर दिन नयी कहानियां सामने आ रही हैं। पंजाब के लुधियाना के 25 वर्षीय रतनदीप सिंह 26 नवंबर को पहली वर्षगांठ मनाने के लिए सिंघू बॉर्डर पहुंचे – वे पूरी तरह से व्हीलचेयर पर आश्रित हैं। कई प्रदर्शनकारी ऐसे हैं, जिन्होंने पूरा एक साल मोर्चा में बिताया है। लुधियाना के 86 वर्षीय निश्तार सिंह ग्रेवाल उनमें से एक हैं। 70 साल के गुरदेव सिंह और 63 साल के साधु सिंह कचरवाल भी पिछले 365 दिन सिंघू बॉर्डर पर बिता चुके हैं।

जजपा विधायक के खिलाफ प्रदर्शन

शनिवार को हरियाणा में जजपा विधायक के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया गया। विधायक देवेंद्र बबली ने रतिया में अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया, जब एक स्थानीय कार्यक्रम में उनके शामिल होने की सूचना मिलते ही किसानों का एक बड़ा समूह काले झंडे के साथ विरोध में इकट्ठा हो गया।

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