30 नवंबर। संयुक्त किसान मोर्चा ने स्पष्ट किया है कि पूर्व घोषणा अनुसार, स्थिति का जायजा लेने और किसान आंदोलन के आगे के कदमों के बारे में निर्णय लेने के लिए एसकेएम के सभी घटक संगठनों की बैठक 4 दिसंबर को होगी। एसकेएम की बैठक पूर्ववत सिंघू बॉर्डर पर होगी। इस बैठक में प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में उठाए गए विभिन्न बिन्दुओं और भविष्य में लिए जानेवाले फैसलों पर चर्चा होगी। इस बीच नयी उभर रही स्थिति का जायजा लेने के लिए मंगलवार को हरियाणा के किसान संगठनों की बैठक हुई।
संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि किसानों की लंबित मांगों की प्रतिक्रिया के रूप में भाजपा सरकारों द्वारा यहां-वहां अस्पष्ट बयान स्वीकार्य प्रतिक्रिया या आश्वासन नहीं हैं और एसकेएम लंबित मांगों पर ठोस आश्वासन और समाधान चाहता है। हरियाणा के मुख्यमंत्री पहले ही संकेत दे चुके हैं कि जब हरियाणा राज्य में लगभग 48000 किसानों पर दर्ज मामलों को वापस लेने की बात आएगी, तो वह केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुसार कार्रवाई करेंगे, और मोदी सरकार किसानों की शेष मांगों को पूरा करने की अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है।
एसकेएम ने कहा है कि मोदी सरकार ने कृषि कानून निरसन विधेयक के उद्देश्यों और कारणों पर लीपापोती करके एक बार फिर से देश को गुमराह करने की कोशिश की है। एसकेएम ने इस बात की भी निंदा की है कि सरकार ने निरसन विधेयक को उसी अलोकतांत्रिक और असंसदीय तरीके से अधिनियमित किया जैसा कि 2020 में पारित विधेयकों के मामले में किया गया था। यह गंभीर चिंता का विषय है कि जब बारह सांसदों ने विधेयक और संबंधित एमएसपी कानूनी गारंटी सहित मामलों पर बहस करने की कोशिश की, तो उन्हें संसद के पूरे शीतकालीन सत्र से निलंबित कर दिया गया। संसद में विस्तृत बहसों का दम घोंटना पूरी तरह से गलत और अलोकतांत्रिक है। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि झूठे बयानों और सरकार के अनैतिक व्यवहार के अलावा, संसद के भीतर लोकतांत्रिक कामकाज की निरंतर कमी आपत्तिजनक और अस्वीकार्य है।
आदिवासी किसानों की सुध
संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर में स्थानीय समुदाय अडानी द्वारा अपनी आजीविका और आजीविका संसाधनों जैसे भूमि और जंगल के अवैध अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। सिलगर और बस्तर के अन्य स्थानों में छह महीने से अधिक समय से उनका अनिश्चितकालीन संघर्ष चल रहा है। इस ऐतिहासिक किसान आंदोलन की शुरुआत में, यह समझते हुए कि कृषि कानून कुछ पूँजीपतियों को मदद करने और खुश करने के लिए लाए गए थे, एसकेएम ने अडानी और अंबानी के कॉर्पोरेट घरानों के बहिष्कार और प्रतिरोध का आह्वान किया था। एसकेएम उन आदिवासी किसानों की भावना से खुद को जोड़ता है ,जो समुदायों के बुनियादी संसाधनों और जीवन के स्रोतों और आजीविका के कॉर्पोरेट अधिग्रहण के खिलाफ इस प्रतिरोध को खड़ा कर रहे हैं।
विद्युत संशोधन विधेयक
संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि विद्युत संशोधन विधेयक 2021 को मौजूदा संसद सत्र में कार्य के लिए सूचीबद्ध किया जाना, भारत सरकार द्वारा दिसंबर 2020 में सरकार के साथ औपचारिक बातचीत कर रहे किसान संगठनों के प्रतिनिधिमंडल के प्रति की गयी प्रतिबद्धता का एकमुश्त खंडन है। ऐसा ही मामला दिल्ली के वायु प्रदूषण के संबंध में बायोमास जलाने के लिए किसानों को दंडित करने का है। एसकेएम ने कहा है कि इस तरह के अविश्वसनीय व्यवहार के कारण यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि किसान संगठन किसी भी मौखिक बयान पर भारत सरकार पर भरोसा क्यों नहीं करेंगे।