धूमिल की चमक

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— रामप्रकाश कुशवाहा —

राजकमल प्रकाशन से डॉ.रत्नशंकर पाण्डेय के सम्पादन में  तीन खण्डों में प्रकाशित धूमिल समग्र अब तक अप्रकाशित और अजाने धूमिल को भी पहली बार सामने लाता है। धूमिल की औपचारिक प्रसिद्धि का आधार उनकी “संसद से सड़क तक” पुस्तक रही है। मरणोपरांत ही प्रकाशित कल सुनना मुझेऔर सुदामा पाण्डेय का प्रजातंत्र उनके राजनीतिक चेतना वाले कवि होने का ही विस्तार करती हैं यह छवि धूमिल को मुक्तिबोध के बाद भारतीय लोकतंत्र के सबसे निर्मम और निर्णायक समीक्षा करने वाले यशस्वी प्रगतिशील कवि होने की प्रतिष्ठा देती है। अब धूमिल समग्र के प्रकाशित हो जाने के बाद जो धूमिल सामने आते हैं वे अपनी चिंताओं और सरोकारों में पूर्वज्ञात धूमिल से बहुत अधिक विस्तृत,और जिम्मेदार है । इसके प्रकाशन से एक कवि के रूप में  उनकी सामर्थ्य और संवेदना से लम्बे समय तक हिन्दी जगत के अपरिचित रह जाने की बात भी सामने आती है। उनकी कवि की बहुआयामी यात्रा, उनकी बहुवर्णी संवेदनशीलता एवं मौलिक बिम्ब-सर्जना का विपुल संसार जिसे उन्होंने इस दुनिया को जीते , देखते और समझते हुए रचा था।

धूमिल समग्र के पहले खंड में उनके पूर्वप्रकाशित तीनों कविता संग्रह तो हैं ही उनकी अब तक असंग्रहीत 337 कविताएँ भी हैं। धूमिल समग्र की एक अप्रत्याशित उपलब्धि डॉ० रत्नशंकर पाण्डेय का धूमिल पर उनके अध्येताओं का मार्ग निर्देशन करने वाला दस्तावेजी महत्त्व का वह सम्पादकीय भी है जो धूमिल समग्र : कुछ बातें और यह खंड नाम से भूमिका के स्थानापन्न रूप में लिखा गया है। इसे पढ़ने वाला हर कोई इसे अवश्य लक्षित करेगा कि ऐसी भूमिकाएँ कई दशक तक एक कवि को जीने,पढ़ने और सोचते रहने के बाद ही लिखी जा सकती हैं। ऐसा लिख पाना किसी पेशेवर आलोचक के बूते का मुझे तो नहीं लगता।

धूमिल (9 नवंबर 1936 – 10 फरवरी 1975)

इन तीन खंड वाले समग्र में धूमिल का जीना ,सोचना ,रचना और बनना सब कुछ  देखा जा सकता है। धूमिल अपने समय की गंभीर पहचान करने वाले अपने समय की हिंदी कविता और उसकी जरूरतों के अनुरूप मौलिक और संवादी काव्यभाषा के डिजायनर कवि भी हैं। वे कविता के डिक्टेटर नहीं बल्कि इंजीनियर कवि हैं। अपने समय के अनुरूप वे अपनी कविता के कल्पक स्वयं हैं।

धूमिल समग्र के दूसरे खण्ड से धूमिल के कवि का बनना देखा जा सकता है। और यह भी कि  उन्होने कहानियाँ और नाटक भी लिखे थे। उनका आठ दृश्यों वाला नाटक धरती की प्यासऔर मियाँ की जूती मियाँ के सर उनके नाटककार प्रतिभा को प्रमाणित करते हैं। धूमिल समग्र के दूसरे खंड में उनके गीतों का वह मनोरम संसार देखा जा सकता है जो एक बड़े कवि की काव्य-साधना से नयी पीढ़ी को परिचित करने के लिए जरुरी है।

डॉ रत्नशंकर पांडेय

धूमिल समग्र की तीसरे और अंतिम खंड में उनके डायरी उनकी लिखी डायरी और पत्र शामिल हैं। धूमिल की डायरी और पत्र भी उनकी कविताओं से कम रचनात्मक एवं रोचक टिप्पणियों से भरी हुई नहीं है कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां और विचार इनमें मिलते हैं इसके संपादक दर्शन करने ठीक ही लिखा है इस कवि की डायरी मात्र एक साहित्यिक की डायरी नहीं है बल्कि उसमें उसका खेत खलिहान ऊसर बंजर पाली मजदूर बनिहार बुवाई जुताई पंपिंग सेट ट्यूबवेल बैल बछड़ा गाय भैंस ,कुआ तालाब ,कोर्ट कचहरी थाना चौकी न्याय अन्याय वकील की फीस सलाह मशवरा गांव का झगड़ा झंझट के साथ-साथ कार्यालय की दिनचर्या तथा संगी साथियों के साथ बेबाक टिप्पणियां भी है (भूमिका) कवि कर्म के साथ-सथ उनके समकालीन कवियों से संबंधित महत्वपूर्ण टिप्पणियां भी इनमें मिलती हैं। उदाहरण के लिए शलभ श्रीराम सिंह के व्यक्तित्व से वे संतुष्ट नहीं दिखते।

धूमिल अपनी कविताओं की तरह अपने पत्रों एवं डायरियों में भी नए ढंग से सोचते रहते थे। धूमिल की निरीक्षण शक्ति अद्भुत थी वे सामान्य चिंतक थे। धूमिल सिर्फ अभियांत्रिकी के शिक्षक ही नहीं थे बल्कि वे कविता के डिजाइनभी थे। कविता के बारे में वे अपनी अभियांत्रिकी की भाषा में ही एक टिप्पणी उपलब्ध कराते हैं। उनके अनुसार कविता एक दिल के समान है उसमें तारीखों के हिसाब से क्रम की तलाश करना उसकी मशक्कत से मुकरने के समान है। कविता में कहीं से भी दाएं बाएं या एबाउट हुआ जा सकता है यह सारी प्रक्रिया कवि के विकास को समय की माप और उसकी कई के साथ तालमेल बैठाकर नहीं बल्कि अलगाव को सूचित करती है। (पृष्ठ 73 )  

13 सितंबर 1970 की डायरी के पृष्ठ पर उन्होंने अपनी कविताओं की कुछ पंक्तियां दर्ज की हैं, 17 जनवरी 1972 को 17 जनवरी 1969 को वे काशीनाथ सिंह के पहले कहानी संग्रह लोग लोग बिस्तरों पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि किसी लेखक की एक किताब उसके लिए एक ऐसी अंधेरी सुरंग है जिसका एक सिरा रचना की लहराती फूलों भरी घाटी में खुलता है बशर्ते वह लेखक उससे सुरंग के अंधकार से उबर कर बाहर आ सके इसी तरह 18 जनवरी 1969 के लिखे गए डायरी के पृष्ठ पर वे वाराणसी के खोजवा गांव में आग लग जाने की सूचना देते हुए ऐसी बात कहते हैं जोकि कोई और नहीं कसकता कहीं भी आग का लगना बुरा है मगर यह उत्साह पैदा करती है आम आदमी को आवाज देकर सामने कर देती है।  यहां उनका ध्यान आदमी की सक्रियता एवं प्रतिरोध के संगठित प्रयास पर है। समग्र 3 डायरी एक , डायरी दो, पत्र परिशिष्ट तथा भाषा की एक रात में धूमिल की भूमिका शीर्षक पांच खंडों में विभाजित है डायरी के पन्नों पर धूमिल की रचनात्मक समझ के बहुमूल्य सूत्र उपस्थित हैं। वे लिखते हैं कि वह कविता जो किसी कवि की रचनात्मक कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बनती घटिया या गलत कविता होती है धूमिल जिस जद्दोजहद से कविताएं करते थे इनका रचनात्मक आत्म संघर्ष उनकी इन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है मैं जिस कागज पर कविता करता हूं उसे तुम देखो तो मालूम कर सकते हो कि उस पर बूचड़ के पीछे से ज्यादा निशान पड़े हैं’।

स्पष्ट है की धूमिल के लिए कविताएं करना सिर्फ मनोरंजन के लिए कविताएं लिखना नहीं था , विवेक लंबी तैयारी और संघर्ष के बाद अपनी कविताएं लिखते थे. धूमिल समग्र 3 के पृष्ठ 105 पर एक टिप्पणी है हम एक नरभक्षी व्यवस्था में रह रहे हैं अगर हम दूसरों को नहीं खा रहे हैं तो दूसरे हमको खा रहे हैं25 सितंबर 1971 को लिखी डायरी में डॉक्टर बच्चन सिंह से हुई बातचीत अंकित है इसमें धूमिल एक महत्वपूर्ण बात निराला जी की कविता पर करते हैं कि निराला अपनी कविता में लनहीं तोड़ सकते थे उन्होंने लकी नवीनता के आग्रह के साथ कविता की, थी छंद तोड़ने के संकल्प वहां हैं लेकिन लनहीं टूटी बल्कि मैं तो यहां तक कहना चाहूंगा कि निराला में साहित्य को संगीत से जोड़कर रखने की लत थी। 

इसी बातचीत में अंग्रेजी कविता के प्रति धूमिल का दृष्टिकोण भी दर्ज हुआ है अंग्रेजी भाषा की बात नहीं करें तो ठीक अंग्रेजी भाषा में आज जो रचा जा रहा है वह अनुकरणीय नहीं रहा वहां अब न तो कोई उत्तेजक है और न आक्रामक. जाति धर्म के अवसान के साथ सब कुछ घिसा-पिटा और एक लकीर पर चलने वाला मैनरिज्म होकर रह गया है।

किताब : धूमिल समग्र ( तीन खण्डों में )

संकलन-सम्पादन : डॉ .रत्नशंकर पाण्डेय

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रा.लि .,नई दिल्ली -110002

मूल्य : रु.999

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