
नहीं जानते कहाँ हैं हम
हम क्यों यहाँ हैं नहीं जानते
जो जानते हैं वह सच नहीं है …।
क्या हम स्थान हैं ?
कुल खानदान हैं ?
भाषा हैं ?
इस पाखण्ड के घमण्ड के बाहर क्यों नहीं जा पाते ?
कबूतर आपस में लड़ रहे हैं
बाज़ रखवाली कर रहे हैं
भेड़ें मिमिया रही हैं
और भेड़िए उनका आल्हा गा रहे हैं …।
कैसा है यह समय
कुर्सियाँ पेड़ों के समूह को जगंल कर रही हैं
उनके लिए आँधियाँ बुला रही हैं !
हम जहाँ हैं वहाँ से उठने के लिए
वहाँ गड्ढे बना रहे हैं …..।
अब तो रोना भी नहीं आता रोने की बात पर
हँसने में दाँत छिपाए रखते हैं
अपने होंठ भींचे चुप हैं हम
और अपना थूक निगल रहे हैं …।
क्या समय है कि
किसी के पास
अपने लिए समय ही नहीं,
दूसरों के लिए इफ़रात में अपना समय
गँवाए जा रहे हैं !
हम घण्टों खड़े रहते हैं
सिर्फ तालियाँ बजाने को।
वे हेलीकाप्टर से आते हैं
भेड़िए की तरह गुर्राते हैं
और बाज की तरह फुर्र से उड़ जाते हैं।
Discover more from समता मार्ग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.