चुनावी डुबकी बनाम गंगा में प्रदूषण का प्रश्न

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उत्तर प्रदेश की सर्वाधिक चर्चित संसदीय सीट वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 दिसंबर, 2021 को ललिता घाट पर गंगा में डुबकी लगाई। हालांकि, शायद वह इस बात से अनजान रहे होंगे कि जहां वो डुबकी लगा रहे थे वहां से पांच किलोमीटर पहले अपस्ट्रीम पर गंगा की सहायक नदी वरुणा के स्नान घाट में गंगा में प्रदूषण की स्थिति बताने वाला रीयल टाइम स्टेशन करीब दो महीनों से खराब है।

केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के साथ केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस रीयल टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम के जरिए गंगा में प्रदूषण की रीयल टाइम स्थिति की निगरानी रखता है। हालांकि, गंगा में प्रदूषण की निरंतर निगरानी के लिए कुल 113 साइटों को चिह्नित किया गया था, इनमें से अब तक सिर्फ 36 स्टेशनों पर रीयल टाइम मॉनटिरिंग सिस्टम लगाया जा सका है, और इनकी भी हालत ठीक नहीं है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डुबकी लगाने के तीन दिन बाद 16 दिसंबर, 2021 को रीयल टाइम वाटर क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम को खंगालने पर ‘डाउन टू अर्थ’ ने पाया कि वाराणसी के दो स्टेशनों में पहला यूपी 54- स्नान घाट 1, वरुणा नदी के बारे में अपडेट यह मिला कि यह स्टेशन खराब है। अंतिम बार 28 सितंबर, 2021 नौ बजे तक इस स्टेशन से अपडेट मिला, जिसके मुताबिक इसका बॉयोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) सामान्य मानक 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होने के बजाय करीब छह गुना ज्यादा 17.58 मिलीग्राम प्रति लीटर था। इसका मतलब हुआ कि वहां का पानी स्नान करने लायक भी नहीं था।

वहीं, 16 दिसंबर, 2021 को दोपहर 12 बजे तक का अपडेट यह भी बताता है कि ललिता स्नान घाट से डाउनस्ट्रीम रजवाड़ी की तरफ गंगा की सहायक नदी गोमती में भी बीओडी अपने सामान्य मानक (3 एमजी प्रति लीटर से कम) के बजाय 3.11 एमजी प्रति लीटर था।

साइंस डायरेक्ट जर्नल के मुताबिक अधिक बीओडी का आशय हुआ कि पानी में सूक्ष्मजीवों को कार्बनिक पदार्थों को समाप्त करने के लिए अतिरिक्त ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। पानी में मौजूद ऑक्सजीन तत्व में कमी आ रही है। बीओडी यह भी दर्शाता है कि पानी में प्रदूषण मौजूद है। यह बहुत ही बुनियादी जांच है जो पानी की गुणवत्ता को प्रदर्शित करता है। परिणाम के लिए पानी के नमूने को पांच दिन 20 डिग्री सेल्सियस तापमान में अंधेरे में रखा जाता है।

भले ही गंगा में डुबकी लगाकर कोई संदेश देने की कोशिश की गयी है लेकिन हकीकत यह है कि वाराणसी में गंगा में सीवेज का प्रदूषण लगातार बना हुआ है।

12 नवंबर, 2021 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की ओर से चौथी तिमाही प्रगति रिपोर्ट दाखिल की गयी। इस रिपोर्ट में भी वाराणसी में गंगा में सालाना प्रदूषण में कमी का जिक्र है लेकिन वास्तविकता में गंगा में प्रदूषण का स्तर यही बताता है कि वह स्नान करने लायक नहीं हैं।

इस रिपोर्ट में 2014 की तुलना में 2021 (जनवरी से जुलाई माह तक) में फीकल कॉलीफोर्म (मल-मूत्र प्रदूषण) की स्थिति बतायी गयी है। सीपीसीबी के मुताबिक फीकल कॉलिफॉर्म 5000 एमपीएन प्रति 100 मिलीलीटर या उससे कम होना चाहिए, जबकि यदि वाराणसी के मालवीय ब्रिज की बात करें तो यह दोगुना से अधिक 11000 एमपीएन प्रति लीटर पायी गयी।

इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि वाराणसी में सीवेज प्रदूषण रुका नहीं है। गंगा की सफाई संबंधी आदेशों के अनुपालन को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ही सुनवाई कर रहा है। ऐसे में 23 नवंबर, 2021 को जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने एनएमसीजी की चौथी तिमाही प्रगति रिपोर्ट और स्थिति रिपोर्ट के बाद अपने आदेश में कहा कि उत्तर प्रदेश को 8 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम ऐसा है जिन्हें तत्काल पूरा करना चाहिए, इनमें वाराणसी के रमाना में 50 एमएलडी क्षमता वाला भी एसटीपी शामिल है। इसके अलावा एनजीटी ने पाया कि वाराणसी में सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट की क्षमता वाली भगवानपुर में 9.8 एमएलडी और  12 एमएलडी डीएलडब्ल्यू  क्षमता वाली सरंचनाएं सही से काम नहीं कर रही हैं।

असि नदी बीच रास्ते में आबादी के गैरकानूनी निर्माण के कारण बाधित हो जाती हैं और प्रदूषित पानी पीछे की तरफ लौटता है जो कि कुंड को ही प्रदूषित कर रहा है।

उत्तर प्रदेश सरकार के पास अक्तूबर से अपडेट नहीं

उत्तर प्रदेश सरकार भी गंगा के विभिन्न क्षेत्रों पर प्रदूषण की स्थिति का आंकड़ा बटोरती है। हालांकि यह लिखते वक्त तक पाया गया कि अक्तूबर, 2021 के बाद से यह आंकड़े अपडेट नहीं किये गये। अक्तूबर, 2021 की रिपोर्ट बताती है कि वाराणसी के अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम दोनों तरफ जल प्रदूषण मौजूद था।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 27 जुलाई, 2018 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को आदेश दिया था कि वह गंगा के बहाव क्षेत्र का नक्शा तैयार करके उसमें 100 किलोमीटर के निश्चित दायरे पर आम लोगों को यह बताएं कि किस स्थान पर पानी नहाने लायक है और कहां पर पीने लायक है। इस आदेश का पालन करते हुए सीपीसीबी को गंगा में प्रदूषण के विभिन्न मानकों का स्तर 24 घंटे उपलब्ध कराना है। इसके लिए बीते वर्ष सुटेबिलिटी ऑफ रिवर गंगा नाम का एक ऑनलाइन पेज सीपीसीबी के जरिए बनाया गया था, जिसमें एक महीने में लिये जानेवाले नमूनों के जांच आंकड़ों को प्रदर्शित किया जा रहा है। पेज पर स्पष्ट लिखा गया है कि ताजा आंकड़े राज्यों की ओर से अपलोड करने के बाद ही हासिल होंगे।

‘सुटेबिलिटी ऑफ रिवर गंगा’ के मुताबिक गंगा राज्यों – उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल  की तरफ से नदी क्षेत्र के नमूनों की जांच रिपोर्ट लॉकडाउन से करीब दो महीने पहले (अक्तूबर, 2021 में) अपलोड किये गये थे। तब भी वाराणसी की गंगा प्रदूषित थीं।

वाराणसी में ललिता घाट से जल ले जाकर मंदिर में सीधे चढ़ाने के लिए सीढ़ियों की व्यवस्था जोर-शोर से जारी है और दावा है कि जनवरी तक यह काम पूरा कर लिया जाएगा, लेकिन गंगा के प्रदूषण की रोकथाम कब होगी, यह शायद बता पाना मुश्किल है।

23 नवंबर, 2021 को एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि 36 साल गंगा के मामले को कोर्ट में बीत गये लेकिन आंकड़े बताते हैं कि गंगा में प्रदूषण का बोझ कम नहीं हुआ है।

– विवेक मिश्र

(‘डाउन टु अर्थ’ से साभार)

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