पत्रकारों के लिए सबसे हिंसक देशों में भारत भी शामिल

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1 जनवरी। इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट (आईपीआई) द्वारा 29 दिसंबर को जारी की गयी सूचना के मुताबिक वर्ष 2021 में कुल 45 पत्रकार मारे गये। जिन तीन देशों में पत्रकारों की हत्या की सबसे ज्यादा घटनाएँ हुईं उनमें मैक्सिको पहले स्थान पर है, उसके बाद भारत और अफगानिस्तान। पत्रकारों की हत्या के ये तथ्य बताते हैं कि पत्रकारिता करना कितना जोखिम भरा काम है और पत्रकारों की सुरक्षा एक वैश्विक चुनौती है। आईपीआई ने अधिकारियों का आह्वान किया है कि ऐसे मामलों में अपराधियों के बच निकलने या सजा से बचे रहने की आशंका को निर्मूल करें और पत्रकारों की सुरक्षा हर हाल में सुनिश्चित करें ताकि वे अपना काम स्वतंत्रतापूर्वक और निर्भय होकर कर पाएं।

आईपीआई हर साल के आखीर में डेथ वॉच नाम से अपनी रिपोर्ट जारी करता है। उसकी ताजा रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2021 में 45 पत्रकार अपना काम करने के दौरान या अपने काम के सिलसिले में मारे गये। इन 45 में 40 पुरुष थे और 5 महिलाएँ। इनमें से 28 को उनके काम के कारण निशाना बनाया गया, जबकि 3 उस वक्त मारे गये जब वे किसी सशस्त्र टकराव या फसाद को कवर कर रहे थे। नागरिकों के असंतोष को कवर करने के दौरान 2 पत्रकार मारे गये और 1 पत्रकार की हत्या उस अवधि में हुई जब उस पर किसी खास रिपोर्ट की जिम्मेदारी दी गयी थी।

आईपीआई अपनी रिपोर्ट (डेथ वाच) में संपादकों समेत पत्रकारों, रिपोर्टरों और कैमरामैनों, सभी को शामिल करता है जिनका खबरें जुटाने, उसमें भागीदार होने और प्रकाशित करने से वास्ता है। आईपीआई के आँकड़े पत्रकारों पर होनेवाले हमलों पर निरंतर नजर रखने का नतीजा हैं। खुद नजर रखने के अलावा आईपीआई अपने सदस्यों के नेटवर्क तथा पत्रकारों के स्थानीय संगठनों के जरिए भी सूचनाएँ इकट्ठा करता है और यह देखता है कि अगर किसी पत्रकार की हत्या होती है तो  इसके पीछे कहीं उसका काम ही तो कारण नहीं था।

आईपीआई के मुताबिक 28 पत्रकारों को जान-बूझकर मारा गया, सुनियोजित तरीके से, यानी वे अपने काम की वजह से ही निशाना बनाये गये। इनमें से कुछ को मौत से पहले मार दिये जाने की धमकियाँ भी मिली थीं। इन 28 के अलावा, 11 हत्याओं को आईपीआई ने अभी जाँच के दायरे में रखा है, यानी उनके बारे में यह शक तो है कि वे हत्याएँ पत्रकारीय काम की वजह से की गयीं, पर इसकी पूरी तरह से पुष्टि के लिए अभी और सूचनाएँ जुटाने की दरकार है।

आईपीआई का कहना है कि बहुत सारे मामलों में सरकारों द्वारा जाँच में कोताही किये जाने से यह पता करना कठिन हो जाता है कि मारे गये पत्रकार की हत्या के पीछे उसका काम ही कारण था या कुछ और, लिहाजा छानबीन करनेवालों को परिस्थितिजन्य सबूतों पर ज्यादा भरोसा करना पड़ता है।

आईपीआई की डेथ वाच रिपोर्ट बताती है कि पत्रकारों के मारे जाने की घटनाएँ दुनिया के अनेक हिस्सों में हुई हैं और यह एक वैश्विक समस्या की शक्ल लेती जा रही है। लेकिन एशिया और प्रशांत क्षेत्र वर्ष 2021 में पत्रकारों के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक क्षेत्र साबित हुआ जहाँ 18 पत्रकारों की हत्या हुई और इनमें से 12 हत्याएँ सिर्फ दो देशों में, 6 भारत में और 6 अफगानिस्तान में। मैक्सिको इस कतार में सबसे आगे है जहाँ 7 पत्रकार मार दिये गये, आईपीआई के मुताबिक ये सभी हत्याएँ सुनियोजित थीं और मारे गए पत्रकार वे थे जो वहाँ के राजनीतिकों की कारगुजारियों और मादक पदार्थों के धंधे समेत संगठित अपराधों पर खबरें जुटा रहे थे। मैक्सिको के बाद अफगानिस्तान और भारत पत्रकारों के लिए सबसे खतरे की जगह साबित हुए हैं।

आईपीआई का कहना है कि ऐसी घटनाओं में इजाफे की बड़ी वजह यह है कि कई बार अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने में सरकारें कोताही करती हैं, जो समस्या का और भी खौफनाक पहलू है।

(countrcurrents में प्रकाशित Anne Ter Rele की रिपोर्ट का संक्षिप्त रूप)

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