महामारियों से मुकाबले के लिए चाहिए एकीकृत स्वास्थ्य नीति

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— शोभा शुक्ला और बॉबी रमाकांत —

कोविड महामारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अर्थव्यवस्था और विकास के सभी संकेतकों के लिए सबकी स्वास्थ्य-सुरक्षा कितना जरूरी है। वैज्ञानिक रूप से तो यह पहले से ही ज्ञात था कि एकीकृत स्वास्थ्य (वन हेल्थ) कितना अहम है। मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण में सम्बन्ध भी गहरा रहा है जिसका एक प्रमाण है बढ़ती हुई दवा प्रतिरोधकता। मानव स्वास्थ्य, पशु पालन, कृषि में गैर-जिम्मेदारी और अनुचित ढंग से इस्तेमाल हो रही दवाएँ (खासकर एंटी-बायटिक, एंटी-वाइरल, एंटी-फंगल और एंटी-पैरासिटिक दवाएँ) पर्यावरण में भी जहर घोल रही हैं जिसके कारण रोग उत्पन्न करनेवाले कीटाणु रोग-प्रतिरोधक हो जाते हैं और सामान्य रोग भी लाइलाज हो सकते हैं।

इसीलिए पिछले अनेक सालों से यह समझ विकसित हुई है कि मात्र रोग नियंत्रण से रोग नियंत्रित नहीं होगा। उदाहरण के तौर पर, ट्यूबरक्यूलोसिस या टीबी का खतरा अनेक कारणों से बढ़ता है जैसे कि कुपोषण। जब तक कुपोषण और टीबी का खतरा बढ़ानेवाले सभी कारण नहीं मिटेंगे, और रोग की जाँच, इलाज और देखभाल सब तक नहीं पहुँचेगी तब तक टीबी उन्मूलन कैसे होगा? टीबी नियंत्रण के समक्ष, दवा प्रतिरोधकता भी एक भीषण चुनौती बनी हुई है। अन्य रोग जैसे कि मधुमेह, एचआईवी संक्रमण आदि जो टीबी का खतरा बढ़ाते हैं, उनको टीबी नियंत्रण में नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। टीबी पशुओं को भी हो जाती है। लोग अस्पताल जा सकें, बिना विलम्ब अपना इलाज करवा सकें, आदि के लिए एकीकृत स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा अत्यंत अहम है।

कोरोना वायरस मूल रूप से एक प्रकार के चमगादड़ से आया है पर यह नहीं ज्ञात है कि मनुष्य को संक्रमण कहाँ से आया है। वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ (पशु स्वास्थ्य की वैश्विक संस्था) के डॉ रोनेलो अबिला ने कहा कि मनुष्य में होने वाले 60 फीसद संक्रामक रोग मूल रूप से पशुओं से आए हैं (और इनमें से 72 फीसद जंगली जीव जंतु से आए हैं)। मनुष्य और पशुओं के मध्य सम्पर्क रहा है और अकसर एक दूसरे पर निर्भर हैं, इसीलिए यह जरूरी है कि मानव स्वास्थ्य सुरक्षा में पशु स्वास्थ्य के पहलू पर ध्यान दिया जाए। चूँकि पर्यावरण से पशु और मानव दोनों जुड़े हैं इसलिए इस दृष्टिकोण को भी नजरंदाज न किया जाए।

यदि भविष्य में होनेवाली महामारियों का खतरा कम करना है और ऐसी चुनौती के लिए बेहतर तैयार रहना है तो स्वास्थ्य सुरक्षा को विकास और सामाजिक सुरक्षा तथा पर्यावरण से जोड़कर समझना होगा। सबके लिए एकीकृत स्वास्थ्य और विकास सुरक्षा के सपने को सच करना होगा।

यदि मनुष्य जल-जंगल-जमीन पर विध्वंसकारी गतिविधियाँ जारी रखेगा, जलवायु परिवर्तन को और बढ़ाएगा या दवाओं का लापरवाही से दुरुपयोग करेगा तो मानव स्वास्थ्य सुरक्षा कैसे मिलेगी?

मानव स्वास्थ्य सुरक्षा चाहिए तो प्रदूषण, वनों की कटाई, पशु पालन में अनुचित और गैर-जिम्मेदाराना दवाओं का उपयोग, और हम कैसे भोजन उगाते, बाँटते और ग्रहण करते हैं, इस सब पर भी ध्यान देना होगा क्योंकि हम सबका स्वास्थ्य इन पर भी निर्भर है।

वादे हुए हैं वैश्विक स्तर पर, पूरे होंगे जमीनी स्तर पर

जमीनी या स्थानीय स्तर पर कार्य करने से ही तो सतत विकास के वैश्विक लक्ष्य पूरे होंगे। यदि दुनिया को टीबी मुक्त करना है तो एक-एक इंसान को टीबी मुक्त करना होगा। यदि कोई भी गरीब सेवाओं से वंचित रह गया तो दुनिया असफल हो जाएगी टीबी मुक्त होने से।

इसीलिए यह ज़रूरी है कि सबका एकीकृत स्वास्थ्य और विकास कैसे हो यह स्थानीय स्तर पर हल किया जाए। स्वास्थ्य और सामाजिक विकास सुरक्षा कैसे सब तक पहुँचे, कोई गरीब या ग्रामीण या अन्य दूरदराज क्षेत्र में रहने वाला इंसान छूट न जाए यह सुनिश्चित करना जरूरी है।

इसीलिए एशिया प्रशांत क्षेत्र के 12 देशों के लगभग 80 शहरों के स्थानीय नेतृत्व देनेवाले लोग, जिनमें महापौर और सांसद भी शामिल थे, छठे अधिवेशन में मिले और एकीकृत स्वास्थ्य और विकास सुरक्षा की ओर कदम बढ़ाने का वादा किया। इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट ट्यूबरक्यूलोसिस एंड लंग डिजीस के एशिया पैसिफिक निदेशक डॉ तारा सिंह बाम ने कहा कि छठे एपीकैट समिट के द्वारा पारित घोषणापत्र में भी यह बिंदु शामिल है।

कोरोना वाइरस, मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य

कोविड महामारी ने एक सीख तो पुनः दी है कि पशुओं में होनेवाले रोग भविष्य में भी इंसानों में फैल सकते हैं। कोविड, जीका, ईबोला आदि रोगों के बाद यदि अब भी सरकारों ने एकीकृत स्वास्थ्य पर कार्य नहीं किया तो यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण होगा। मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ पशु स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण के साथ तालमेल में कार्यसाधकता के साथ कार्य करना होगा।

इंडोनेशिया के स्वास्थ्य मंत्रालय के पूर्व निदेशक और विश्व स्वास्थ्य संगठन के पूर्व अधिकारी डॉ तीजाँदरा योगा आदितमा ने कहा कि 29 देशों में 400 से अधिक विभिन्न प्रकार के पशु कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। इनमें बिल्ली, कुत्ते, शेर, बब्बर शेर, गोरिल्ला, हिरन, मिंक, आदि शामिल हैं। संभवतः इन पशुओं को कोरोना संक्रमण, संक्रमित मनुष्य से हुआ होगा जो इनके सम्पर्क में आया हो या इनकी देखरेख में रहा हो, परंतु यह अभी नहीं पता है कि इन कोरोना संक्रमित पशुओं से क्या इंसान संक्रमित हो सकते हैं?

डॉ रोनेलो अबिला ने कहा कि कोरोना वाइरस मूल रूप से तो एक प्रकार के चमगादड़ से आया पर यह वैज्ञानिक रूप से ज्ञात नहीं है कि मनुष्य को कोरोना संक्रमण किस तरह हुआ और किस जीव से आया। 2003 में एक प्रकार का कोरोना वाइरस जिससे ‘सार्स’ महामारी हुई थी, वह संक्रमण, सिवेट चमगादड़ से मनुष्य में आया था।

डॉ रोनेलो अबिला के अनुसार, जब ‘बर्ड फ्लू’ महामारी फैली थी तो दुनिया की सभी सरकारें चेतीं कि मानव स्वास्थ्य सुरक्षा का तालमेल पशु पालन और पशु स्वास्थ्य से भी है। इसीलिए “वन हेल्थ” (एकीकृत स्वास्थ्य) सोच के तहत, सभी सरकारें एकजुट हुईं कि मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों पर कैसे एकीकृत होकर कार्यसाधकता के साथ काम किया जा सकता है। 2008 की उच्च-स्तरीय मंत्रियों की वैश्विक बैठक में “वन हेल्थ” (एकीकृत स्वास्थ्य) को सर्व-सम्मति से पारित किया गया।

यह प्रक्रिया बढ़ती गयी और आखिरकार, मानव स्वास्थ्य पर केंद्रित संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य संस्था – विश्व स्वास्थ्य संगठन, पशु स्वास्थ्य पर केंद्रित वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ, और खाद्य और कृषि पर केंद्रित संयुक्त राष्ट्र की संस्था – फ़ूड एंड ऐग्रिकल्चर ऑर्गनाइजेशन, तीनों ने एकीकृत स्वास्थ्य पर कार्य करने के लिए एक साझा मंच बनाया – जिसकी औपचारिकता मई 2018 में और गहराई। नवम्बर 2020 में इस साझा मंच से संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण संस्था – यूनाइटेड नेशंस इन्वायरॉन्मेंट प्रोग्राम – भी जुड़ गयी।

कोविड महामारी के नौ साल

पहले, नवम्बर 2011 में, मेक्सिको में सम्पन्न हुई एक उच्चस्तरीय बैठक में उपरोक्त संस्थाओं के विशेषज्ञों ने निर्णय लिया था कि एकीकृत स्वास्थ्य की अवधारणा को जमीन पर उतारने के लिए, तीन मुद्दों पर कार्य किया जाए। यह तीन मुद्दे थे : रेबीज, दवा प्रतिरोधकता (एंटी-मायक्रोबीयल रेजिस्टन्स), और बर्ड फ़्लू।

इसके बाद, डॉ रोनेलो और अन्य लोगों ने स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण मंत्रालय के साथ कार्य शुरू किया कि वह एकजुट होकर एकीकृत स्वास्थ्य (मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण) पर विचार करें और साझा काम शुरू करें जिससे कि रेबीज, दवा प्रतिरोधकता और बर्ड फ्लू पर अंकुश लगे।

दवाओं का अनुचित और गैर-जिम्मेदाराना उपयोग सिर्फ मानव स्वास्थ्य तक ही नहीं सीमित है बल्कि पशुपालन और कृषि में भी इसका अत्यधिक दुरुपयोग है जिसके कारण आज बढ़ती हुई दवा प्रतिरोधकता एक भीषण चुनौती प्रस्तुत कर रही है।यदि दवा प्रतिरोधकता पर अंकुश नहीं लगा तो यह खतरा बढ़ता जा रहा है कि हम लोग 1920 के दशक के युग में फिसल जाएँ जब अधिकांश लोग संक्रामक रोगों से मृत होते थे क्योंकि एंटीबाइयोटिक दवाएं थीं ही नहीं। दवा प्रतिरोधकता के कारण, आम संक्रमण जिनका पक्का इलाज सम्भव है, वे लाइलाज हो जाते हैं और मृत्यु तक हो सकती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक दवा प्रतिरोधकता नियंत्रण विभाग के निदेशक डॉ हेलिसस गेटाहुन ने सिटिजन न्यूज सर्विस (सीएनएस) से कहा कि दवा प्रतिरोधकता एक मानवजनित समस्या है क्योंकि दवाओं का अनुचित और गैर-जिम्मेदाराना उपयोग, मानव ने ही, मानव स्वास्थ्य, पशुपालन और कृषि में किया है। यदि हम दवाओं का उचित और जिम्मेदारी से उपयोग करेंगे तो दवा प्रतिरोधकता कम होगी और उससे होनेवाले नुकसान पर भी अंकुश लगेगा।

चीन की एक पुरानी कहावत है कि ‘पेड़ लगाने का सबसे सर्वोत्तम समय बीस साल पहले था। दूसरा मौका आज है।’ सबके एकीकृत स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा को अब नजरअन्दाज करना बहुत महँगा पड़ सकता है और यह सभी सरकारों को सतत विकास लक्ष्य पर भी असफल करेगा।

(सीएनएस)

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