— हिमांशु जोशी —
पलाश विश्वास के लिखे प्राक्कथन को पढ़ने से पता चलता है कि किताब में मास्साब की रचनाधर्मिता को समग्रता से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। यहाँ पाठकों को यह भी मालूम पड़ेगा कि मास्साब यह किताब कैंसर होने के बावजूद लिख रहे थे और किताब का उद्देश्य उनके कृषि विमर्श को समग्रता में राष्ट्रव्यापी संवाद के लिए प्रस्तुत करना था।
भूमिका एक वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी ने लिखी है जो यह जानकारी देती है कि मास्साब की यह किताब गाँव बचाने के उद्देश्य पर केंद्रित है। भूमिका दो में पुरुषोत्तम शर्मा ने मास्टर प्रताप सिंह के निजी जीवन पर प्रकाश डाला है, साथ ही किताब के तैयार होने की कहानी भी इस भूमिका में दी गयी है।
‘यह किताब क्यों’ मास्टर प्रताप सिंह द्वारा ही लिखी गयी है और जिज्ञासा जगाती है कि किताब में कुछ महत्त्वपूर्ण मिलेगा जो राष्ट्र के विकास में सहायक होगा। छह खण्डों में बँटी इस किताब को मास्साब के आलेखों,कविताओं, डायरी के हिस्से और पत्रों को मिलाकर पूर्ण रूप दिया गया है। किताब में आपको गद्य और पद्य दोनों पढ़ने के लिए मिल जाएँगे।
खण्ड एक ‘गाँव और किसान भारत की मौलिक पहचान’ 2011 की जनगणना के आँकड़ों से शुरू होता है। विकास की परिभाषा के बारे में लिखा गया है कि इसकी वास्तविक परिभाषा से हम अनजान हैं। लेखक द्वारा यजुर्वेद, अथर्ववेद, विष्णुपुराण के शब्दों को आज के परिवेश से जोड़ देना और ‘माटी हिंदुस्तान की’ पाठ में विज्ञान की चर्चा करना, उनके लेखन की विविधता को दर्शाता है। हर पाठ के बाद ‘मास्साब ने कहा’ बॉक्स गाँव और कृषि के बारे में नये विचार रखता है।
भारत की जल सम्पदा और वन सम्पदा पर हो रहे अतिक्रमण के बारे में पाठकों को उद्बुद्ध करती किताब आगे बढ़ती है। जल सम्पदा पर विचार करती जनकवि ‘गिर्दा’ की कविता भी पढ़नी आवश्यक है।
खण्ड का अगला विषय ग्रामीण भारत, शहरी औद्योगिक विकास, बजट उपयोग और स्वास्थ्य पर केंद्रित है। खण्ड दो ‘दूर तलक फैली हरियाली मास्साब के नोट्स’ से पहले आप देश के खोखलेपन से वाकिफ हो चुके होंगे।
किसान कर्ज का इस्तेमाल बीज, खाद, सिंचाई आदि में करे तो तरक्की करेगा, अन्य कामों में करे तो तबाह हो जाएगा। पंक्ति नोट्स का महत्त्व समझाती है। ‘विकास की अवधारणा’ जैसे महत्त्वपूर्ण शीर्षक सामने आते हैं, जिसकी पंक्ति ‘तकनीक अब उपाय नहीं रह गयी, हमारी स्वामी बन गयी’ किताब पढ़ते आपको गांधी-विचारों की याद भी दिलाएगी। खण्ड तीन ‘आंदोलनों की ज़मीन से’ पढ़ने के लिए आपका कलेजा मजबूत होना चाहिए। संपादक ने मास्साब के लिखे को सही क्रमानुसार समेटने के लिए अपने पूरे लेखकीय अनुभव का सही इस्तेमाल किया है।
लेखक चाहते थे कि पुस्तक प्रसारित हो तो देश में रोजगारविहीन जनविरोधी विकास नीति पर देशव्यापी बहस छिड़ सकती है और हमारे द्वारा प्रस्तुत वैकल्पिक विकास नीति के पक्ष में जनमत बन सकता है।किताब पढ़ते और आज के युवाओं के हाल देख यह लगता है कि किताब को चर्चित करना आवश्यक है।
खण्ड में आगे मास्टर को गिरफ्तार करने की साजिश के साथ उनके परिवार को परेशान करने की कहानी है, यह वाकया जनता के लिए लड़नेवालों के साथ होनेवाली मुश्किलों से आपको परिचित करवाता है। SRWC का परिचय मास्साब का दूसरा पक्ष दिखाता है, किताब पढ़ते कभी-कभी लगता है कि इसे स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया जाए तो छात्रों को भूगोल, विज्ञान आसानी से समझ आ जाए। ‘नैनीसार’ का डीएनए जिस तरह से किया गया है उससे पूरा तंत्र कटघरे में खड़ा दिखता है।
खण्ड चार की शुरुआत में ‘दिहाड़ी मजदूर को भी बिना दलाली के काम नहीं मिल रहा’ पंक्ति सत्यता के करीब ही है। यह खण्ड पूँजीवाद की कलई खोलता ‘वाम लफ्फाज़ों का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन’ पाठ पर आता है, जो समाजवाद और विकास की वास्तविक परिभाषा हमारे सामने रखता है।अब आपको यह मालूम भी पड़ जाएगा कि कृषि कानून और श्रम कानूनों में बदलाव की आवश्यकता क्यों पड़ी थी।
उत्तराखंड के विकास के साथ ही देशभर के कृषकों की हालत में कैसे सुधार लाया जाए, इसके लिए विशेष सुझाव किताब में आपका इंतजार कर रहे हैं। खण्ड पाँच के परिचय पृष्ठ में पाँच की जगह छह का पृष्ठ लग गया है, जो प्रकाशक की गलती जान पड़ता है। खण्ड पाँच में आपको गद्य के साथ पद्य भी मिलेंगे।
प्रकृति, राष्ट्र के वर्तमान हालात जैसे विषयों पर लिखी कविताएँ प्रभावित करती हैं।
खण्ड छह ‘मास्साब की डायरी’ में राजनीति, पर्यावरण, आर्थिकी जैसे मुद्दे शामिल हैं। सम्पादक ने खण्ड छह का परिचय भी लिखा है, जो प्रभावित करता है। डायरी राष्ट्रीय पटल में घटित हो रही घटनाओं के साथ उत्तराखंड के घटनाक्रम पर भी केंद्रित है।
बरेली का इतिहास रोचक है तो ‘विद्यालय की नयी शाखा’ में मास्साब का अपने परिवार के प्रति प्रेम झलकता है। खण्ड सात मास्साब के करीबियों ने लिखा है और यह मास्साब पर बात करते उनको श्रद्धांजलि देने का सबसे बेहतर तरीका भी है। मास्साब की अंतिम यात्रा पढ़ते लेखक सुनील कैंथोला द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक ‘मुखजात्रा’ आपको खुद ही याद आने लगेगी।
अंत में पुस्तक के आवरण पर भी बात कर ली जाए जो के.रविन्द्र, भोपाल द्वारा तैयार किया गया है। आवरण चित्र पर किसानों की जो तस्वीर दिखाई गयी है वह उनकी वर्तमान दशा को हूबहू हमारे सामने रख देती है, पिछले आवरण पर वरिष्ठ पत्रकारों पलाश विश्वास, चारु तिवारी और पुरुषोत्तम शर्मा ने प्रताप सिंह ‘मास्साब’ पर अपनी-अपनी टिप्पणी दी है। कुल मिलाकर पुस्तक का आवरण और नाम उसके भीतर की सामग्री से न्याय करता जान पड़ता है।
किताब – गाँव और किसान
प्रताप सिंह ‘मास्साब’
सम्पादक – पलाश विश्वास
प्रकाशक – संभव प्रकाशक
सम्पर्क- (ईमेल) [email protected]
(मोबाइल) 9412946162
मूल्य- ₹120