शहीद अमर होते हैं और अनेक पीढ़ियों को प्रेरणा देते हैं। यह बात आपने कई बार सुनी होगी लेकिन शायद आपको यह बात न मालूम हो कि पिछले छह माह से अधिक समय से दिल्ली के बॉर्डरों पर तीन किसान विरोधी कानूनों को रद्द कराने, सभी कृषि उत्पादों की लागत से डेढ़ गुना दाम पर खरीद की कानूनी गारंटी पाने और बिजली संशोधन बिल 2020 को रद्द कराने के लिए चल रहे किसान आंदोलन के पीछे मंदसौर के शहीद किसानों की प्रेरणा काम कर रही है।
मध्यप्रदेश के मालवा के इलाके में स्वतःस्फूर्त किसान आंदोलन होते रहे हैं। इतने जोरदार आंदोलन भी चले हैं कि नीमच के शहीदों (किसानों) ने अफीम के पट्टे तक जला दिए तथा अफीम की खेती करना बंद कर दिया था। शहर को दूध व सब्जी की सप्लाई सात दिन बंद रखी थी।
6 जून 2017 को मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में चला किसान आंदोलन किसी किसान संगठन या नेता के नेतृत्व में चलाया गया आंदोलन नहीं था। महाराष्ट्र के किसानों ने शहरों को दूध और सब्जी भेजना बंद कर समर्थन मूल्य पाने के लिए आंदोलन चलाया हुआ था। सोशल मीडिया और वाट्सऐप के माध्यम से सूचना मंदसौर के युवा किसानों तक भी पहुंची। उन्होंने भी आंदोलन में शामिल होने का निर्णय लिया। किसानों ने जब रैली निकाली तब उसमें तीन-चार हजार युवा किसान शामिल हुए। सब ने सोचा कि जिलाधीश को ज्ञापन दे दिया जाए लेकिन जिलाधीश ने ज्ञापन लेने से इनकार कर दिया।
तब किसानों ने बाजार बंद कराने का एलान किया। बाजार बंद भी हो गया लेकिन भाजपा के समर्थक एक दुकानदार ने स्थानीय थाना प्रभारी की शह पर दुकान खोली। सामने से निकल रही किसानों की रैली में से कुछ किसान पीछे रह गए थे। उनको पकड़कर टीआई ने व्यापारियों से पिटवा दिया। जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। किसानों ने वाय चौपाटी पर जाम लगा दिया। वहां पुलिस ने आकर आनन-फानन में गोली चलाई जिसमें पांच किसान शहीद हुए। इससे किसान भड़क गए, उन्होंने थाने का घेराव किया। उनमें से एक किसान को पुलिस ने इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई।
आगे की ज्यादातर बातें सभी जानते हैं कि प्रशासन ने कर्फ्यू लगा दिया। मुख्यमंत्री ने एक करोड़ रुपए पीड़ित परिवारों को देने की घोषणा की। वर्तमान भाजपा नेता तथा तब के कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और मुख्यमंत्री ने एक दिन का उपवास किया। देशभर की तमाम पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं ने शहीदों के परिवारों से मिलने मंदसौर जाने की कोशिश की लेकिन सभी को रोक दिया गया। मैं स्वयं जब पहली बार गया तब मुझे रोका गया, दूसरी बार मेधा पाटकर, योगेंद्र यादव, कल्पना पारुलकर, पारस सखलेचा जी के साथ फिर हम गए तब भी पीड़ित परिवारों से मिलने से रोक दिया गया। हमने नीमच की तरफ से जाने की कोशिश की, तब भी हमें पुलिस ने रोक दिया और राजस्थान ले जाकर छोड़ दिया।
इसके बाद दिल्ली में किसान संगठनों की गांधी शांति प्रतिष्ठान में सरदार वीएम सिंह, राजू शेट्टी, अय्या कन्नू की पहल पर बैठक हुई, जिसमें हन्नान मोला सहित वामपंथी किसान संगठनों के अनेक वरिष्ठ नेता शामिल हुए।
मेरे प्रस्ताव पर 6 जुलाई का मंदसौर का कार्यक्रम तय हुआ। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का गठन किया गया।
मध्यप्रदेश का होने के नाते मुझ पर आयोजन की जिम्मेदारी सौंपी गई। मैंने नीमच के किसान नेता एवं किसान संघर्ष समिति के महामंत्री राजेंद्र पुरोहित जी से बातचीत की, उन्होंने शहीद परिवारों से मिलने का कार्यक्रम तैयार किया। सभी ने कहा कि हम चाहते हैं किसान नेता आकर पीड़ित परिवारों से मिलें। कार्यक्रम की तैयारी के लिए मैं बूढ़ा गांव पहुंचा।
ग्रामवासियों से बातचीत की और स्पष्ट पूछा कि क्या वे कार्यक्रम करेंगे? ग्रामवासियों ने कार्यक्रम करने की सहमति दी। तत्काल उत्साही युवाओं ने ट्रैक्टर ट्राली निकालकर आनेवाले अतिथियों के लिए भोजन की व्यवस्था की खातिर गेहूं इकट्ठा किया। जब देखते-देखते दो ट्रॉली गेहूं इकट्ठा हो गया तब मुझे विश्वास हो गया कि गांव एकजुट होकर पूरी ताकत से कार्यक्रम करेगा। इस बीच एसपी मनोज सिंह का फोन आया। उन्होंने कहा कि वह मिलना चाहते हैं। मैं समझ गया कि मुझे सरकार गिरफ्तार करना चाहती है।
मिलने पर एसपी ने मुझसे बार-बार एक ही बात कही थी कि आप अफीम की खेती बंद करवा दीजिए। मैंने उन्हें बार-बार कहा कि अफीम की खेती सरकार कराती है, सरकार पट्टे बांटती है, सब कुछ सरकार खुद ही तय करती है, लेकिन आप चाहते हैं कि मैं अफीम की खेती बंद करवाऊं।
वह मुझे समझाते रहे कि यह आंदोलन अफीम की खेती में दो नंबर का काम कर रहे कुछ लोगों के साथ जुड़ा है। बाद में उन्होंने मेरी आईजी से मुलाकात कराई। आईजी ने स्पष्ट कह दिया कि 6 जुलाई का कार्यक्रम नहीं होने दिया जाएगा। वह मुझसे बार-बार आनेवाले लोगों की संख्या पूछते रहे। मैं यही कहता रहा कि किसान संगठन की ओर से मैं अकेला आया हूं बाकी नेता 6 जून को आएंगे।
हमने ट्रैक्टर या बस भेजकर किसानों को इकट्ठा करने की कोई योजना नहीं बनाई है। इसलिए संख्या के बारे में बताना कुछ संभव नहीं है। एसपी ने कहा कि आपने पूरे इलाके में लाखों रुपए इकट्ठा किए हैं। मैंने उन्हें साबित करने की चुनौती दी। बातचीत खत्म होने के बाद जब मैं शहीद कन्हैयालाल पाटीदार के भाई साथी कारू पाटीदार के साथ गाड़ी से लौट रहा था, तब 10 से अधिक पुलिस की गाड़ियों ने मुझे चारों ओर से घेर लिया। बंदूक ताने सिपाही मेरी तरफ बढ़ रहे थे तब मुझे लगा कि शायद प्रशासन मेरा एनकाउंटर करना चाहता है, मुझे बिहार और मुलतापी का अनुभव था।
मैंने तत्काल एक चैनल को फोन करके सारी बात बता दी। पुलिस अधिकारी मेरे पास आए, उन्होंने मुझसे फोन छीनने की कोशिश की। मैंने दोनों हाथों से फोन पकड़ लिया और कहा कि दोनों बांहें शरीर से अलग होने के बाद ही फोन छूटेगा। उन्होंने गाड़ी की चाबी निकाल ली और मेरे साथी को पुलिस वाहन में बिठाया। तब मैंने कहा कि पुलिस वाहन में मुझे ले जाना चाहिए, उन्हें छोड़ देना चाहिए। पुलिस ने ऐसा ही किया। पुलिस ने गाड़ी के अंदर फोन की छीनाझपटी की कोशिश की लेकिन संभव नहीं हुआ। मुझे सीधे मंदसौर जेल ले जाया गया। जेल तो मैं डेढ़ सौ से अधिक बार गया हूं लेकिन पहली बार जेल का बड़ा फाटक खोलकर गाड़ी अंदर ले जाई गई।
मुझसे कोरे कागज पर दस्तखत करने के लिए अधिकारियों ने कहा लेकिन मैंने साफ इनकार कर दिया। मैंने कहा कि लिखित में लेकर आइए कि मेरा क्या अपराध है। वे लिखकर लाए कि मैं ग्रामवासियों को भड़का रहा था तथा शांति भंग करने के कारण मुझे गिरफ्तार किया गया है। मैंने अधिकारियों से कहा कि आपको अच्छे से मालूम है कि यह झूठ है। मैं गाड़ी से गुजर रहा था और मुझे गांव के सामने रोक कर गिरफ्तार किया गया। उन्होंने कहा कि आप लिखित मांग रहे थे इसलिए यह कागज बना दिया। आपको मालूम है कि आपसे हमारी कोई दुश्मनी नहीं है। मुख्यमंत्री कार्यालय से आदेश हुआ था इसलिए आदेश का पालन कर रहे हैं।
मैंने वह कागज फाड़ दिया और अधिकारियों से कहा कि यदि ज्यादा परेशान करेंगे तो स्थिति बिगड़ेगी। अधिकारी चाहते थे कि मैं जेल सुपरिटेंडेंट के कमरे में ही रहूं लेकिन मैंने इनकार कर दिया तथा बैरक में भेजने को कहा।
इस बीच तय कार्यक्रम के अनुसार देशभर के किसान नेता 5 जुलाई की रात को बूढ़ा गांव पहुंच गए। पुलिस प्रशासन के अधिकारियों ने किसान नेताओं से मिलकर बता दिया कि कार्यक्रम नहीं होने दिया जाएगा तथा आप करेंगे तो गिरफ्तारी की जाएगी। किसान नेताओं ने कहा कि कार्यक्रम होने से कोई रोक नहीं सकता, हम सब गिरफ्तारी के लिए तैयार हैं। बूढ़ा पंचायत के मैदान में सभा आयोजित करने की कोशिश की गई लेकिन पुलिस प्रशासन द्वारा सभा करने से रोक दिया गया। तब किसानों ने सड़क पर ट्राली लगाकर सभा की। सभा में हजारों की संख्या में किसान शामिल हुए।
अगले दिन जब सभी किसान मुक्ति मार्च में आगे बढ़े तब सब को गिरफ्तार करके बूढ़ा गांव से 35 किलोमीटर दूर दलोदा मंडी ले जाया गया। जैसा आमतौर पर होता है कुछ घंटे बाद किसान नेताओं को रिहा करने की घोषणा होने लगी तब किसान नेताओं ने कहा कि जब तक डॉ सुनीलम को रिहा नहीं किया जाएगा तब तक किसान मुक्ति यात्रा शुरू नहीं की जाएगी। सरकार को झुकना पड़ा, मुझे बिना शर्त छोड़ा गया। पुलिस अधिकारियों ने जेल से मुझे दलौदा मंडी में छोड़ा।
हमने सैकड़ों वाहनों के साथ पूरे देश की किसान मुक्ति यात्रा की। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने किसान की कर्जा मुक्ति और फसल का पूरा दाम के प्रावधान किस तरह किए जाएं यह बताने के लिए दो बिल के मसविदे तैयार किए। हमारे सुझाए इन बिलों का समर्थन 22 पार्टियों ने किया। देशभर में पांच सौ किसान मुक्ति सम्मेलन हुए। दो बार लाखों किसानों ने जंतर मंतर पर 26-27 नवंबर को प्रदर्शन किये।
पिछले वर्ष तीन किसान विरोधी अध्यादेशों का विरोध करने के उद्देश्य से ढाई सौ किसान संगठनों की समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप ने गुरद्वारा बंगला साहिब में अन्य किसान संगठनों के साथ हुई संयुक्त बैठक में संयुक्त किसान मोर्चा के गठन का निर्णय किया। संचालन के लिए सात सदस्यीय कमेटी बनी, जिसमें समन्वय समिति के तीन प्रतिनिधि और अन्य समन्वयों के चार प्रतिनिधि लिये गए। इसमें भारतीय किसान यूनियन (राकेश टिकैत) और भारतीय किसान यूनियन (जोगेंदर सिंह उग्राहां) के संगठनों के प्रतिनिधियों को जोड़कर अब 9 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है।
उक्त तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि मंदसौर के शहीद किसानों की प्रेरणा से अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति बनी जिसने संयुक्त किसान मोर्चे का गठन किया। जिसका 191 दिनों से आंदोलन चल रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा ने 6 महीने पूरे होने पर 26 मई को अपनी ताकत देश के गांव-गांव में दिखा दी है। देश संयुक्त किसान मोर्चा की ताकत दिल्ली के बॉर्डरों पर देख चुका है, बंगाल के चुनाव से लेकर उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय के चुनाव में देख चुका है। संयुक्त किसान मोर्चा की महापंचायतों ने साबित कर दिया है कि वर्तमान किसान आंदोलन कुछ गिने-चुने किसान नेताओं या केवल 550 किसान संगठनों का आंदोलन नहीं है,बल्कि जन आंदोलन है जिसमें देशभर के किसानों की भावनाएं और भागीदारी समाहित है। संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन को भारतीय मजदूर संघ को छोड़कर सभी केंद्रीय श्रमिक संगठनों सहित अधिकतर श्रमिक संगठनों का समर्थन प्राप्त है।
5 जून को संपूर्ण क्रांति दिवस संयुक्त किसान मोर्चे से जुड़े संगठनों द्वारा देशभर में मनाया गया। इससे स्पष्ट होता है कि किसान आंदोलन केवल किसानों के मुद्दों को हल करने का नहीं बल्कि पूरे समाज और देश में बदलाव लाने की दिशा में सुनियोजित तौर पर आगे बढ़ रहा है। आंदोलन ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड चुनाव के लिए बंगाल की तरह भाजपा हराओ मिशन की घोषणा कर यह साफ कर दिया है कि वह भाजपा को पहले उत्तर प्रदेश में फिर देश में हराने के लिए संकल्पित है ताकि मोदी-अमित शाह की किसानों की जमीन अडानी-अंबानी को सौंपने की साजिश को नाकाम किया जा सके तथा देश को बचाया जा सके।
यह सब कुछ मंदसौर के छह किसानों और दिल्ली के बॉर्डरों पर शहीद हुए पांच सौ से अधिक किसानों की प्रेरणा से आगे बढ़ रहा है जिसका स्मृति दिवस 6 जून को पूरे देश में मजबूती से संघर्ष जारी रखने की शपथ के साथ मनाया जाएगा। पुलिस फायरिंग में शहीद किसानों की मूर्तियों पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।