उप्र में गन्ने का बकाया एक बड़ा मुद्दा क्यों है

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उत्तर प्रदेश चुनाव में गन्‍ना किसानों के भुगतान का मुद्दा फिर उठ रहा है। एक ओर मौजूदा सरकार रिकॉर्ड भुगतान के दावे कर रही है। वहीं, व‍िपक्ष के नेता भुगतान में देरी की बात करते हुए सरकार बनने पर 15 द‍िन के अंदर भुगतान की बात कर रहे हैं। इन तमाम दावों और वादों से इतर किसान अपने गन्‍ने के पेमेंट की बाट जोह रहा है।

उत्‍तर प्रदेश के पीलीभीत ज‍िले के किसान मनजीत सिंह (42) कहते हैं, “हमारे ज‍िले में सात चीनी मिल गन्‍ना ले रही हैं। इसमें से तीन चीनी मिल ऐसी हैं जो पिछले साल (2021) का भुगतान अब कर रही हैं। मेरा करीब ढाई लाख रुपए बकाया है। इससे तमाम द‍िक्‍कतें बढ़ गई हैं।” मनजीत बताते हैं कि प‍िछले साल का ज्यादातर बकाया बजाज की चीनी मिल पर है। बाकी की चीनी मिल एक से दो महीने पुराना भुगतान कर रही हैं, लेकिन वो भी गन्‍ना एक्‍ट के अनुसार भुगतान नहीं कर रहीं।

गन्‍ना एक्‍ट के अनुसार, किसानों से गन्ना खरीदे जाने के 14 दिन के भीतर उसका भुगतान हो जाना चाहिए। अगर भुगतान में देरी होती है तो भुगतान राशि पर 15% प्रतिवर्ष की दर से ब्‍याज देना होगा। हालांकि, किसानों का कहना है कि वो अपने भुगतान के लिए ही जूझ रहे हैं, ब्‍याज तो दूर की बात है।

उत्तर प्रदेश क्‍यों है गन्‍ना प्रदेश?

उत्तर प्रदेश के एक बड़े हिस्से में गन्ने की खेती ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार है। यूपी में 75 ज‍िले हैं और इसमें से करीब 45 ज‍िलों में प्रमुख्ता से गन्‍ने की खेती होती है। इसमें तराई क्षेत्र के सहारनपुर, मेरठ, बरेली, लखनऊ, अयोध्या, आजमगढ़, देवीपाटन, बस्‍ती और गोरखपुर मंडल शामिल हैं।

यूपी के चीनी उद्योग एवं गन्‍ना व‍िकास व‍िभाग के मुताब‍िक, साल 2020-21 में 27.4 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में गन्‍ने की खेती हुई, जिसमें करीब 2233 लाख टन गन्‍ने का उत्‍पादन हुआ।

यूपी में कुल 120 चीनी मिलें हैं ज‍िसमें गन्‍ने की पेराई होती है। साल 2020-21 में करीब 1027 लाख टन गन्‍ने की पेराई हुई, ज‍िससे करीब 110 लाख टन चीनी उत्‍पादन हुआ।

भुगतान के दावे और हकीकत

इन आंकडों से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यूपी का बड़ा वर्ग गन्‍ने की खेती से सीधे या परोक्ष रूप से जुड़ा हुआ है और इसका असर चुनाव पर भी पड़ता है। यह बात राजनीतिक दल भी जानते हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी यूपी में रैली करते हुए इस मुद्दे पर प्रमुखता से बात की। पीएम मोदी ने 31 जनवरी को कहा, “पिछले दस साल में जितना गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं हुआ था योगी सरकार में पांच साल के अंदर उससे ज्यादा गन्ना मूल्य का भुगतान किया गया है।”

इस बयान से म‍िलते जुलते दावे यूपी बीजेपी के ट्व‍िटर हैंडल से भी ट्वीट किए गए हैं। इसमें बताया गया कि समाजवादी पार्टी (सपा) की सरकार में गन्‍ना किसानों का ₹95 हजार करोड़ और बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) की सरकार में ₹52 हजार करोड़ का भुगतान हुआ। वहीं, 2017 के बाद 4.5 साल में बीजेपी सरकार ने ₹1.57 लाख करोड़ का ‘रिकॉर्ड भुगतान’ किया है।

यूपी में 2014 से लेकर 18 फरवरी 2022 तक किसानों को हुए गन्‍ना भुगतान के आंकड़े। सोर्स: upcane.gov.in

हालांकि, ‘रिकॉर्ड भुगतान’ के तौर पर ₹1.57 लाख करोड़ का जो आंकड़ा द‍िया गया यह आंकड़ा यूपी के चीनी उद्योग एवं गन्‍ना व‍िकास व‍िभाग के आंकड़े से ज्‍यादा है। गन्‍ना व‍िकास व‍िभाग के आंकड़े के मुताब‍िक, व‍ित्‍त वर्ष 2017-18 से लेकर 18 फरवरी 2022 तक करीब ₹1.49 लाख करोड़ का भुगतान हुआ है।

भुगतान में देरी अहम समस्या

किसान नेता वीएम सिंह कहते हैं, “असल मुद्दा गन्‍ने के भुगतान का वक्‍त से ना मिलना है। किसान जब मिल में गन्‍ना दे उसके 14 द‍िन के अंदर भुगतान हो जाना चाहिए। हमने 2017 से इसी बात की लड़ाई लड़ी, क्‍योंकि भुगतान में साल-डेढ़ साल की देरी होती थी और फिर किसानों को ब्‍याज भी नहीं मिल पाता था। बार-बार कोर्ट में जाने के बाद जब कोर्ट से सख्‍ती हुई तो अब भुगतान की स्‍थ‍िति कुछ सही हुई है। हालांकि अभी भी यह 14 द‍िन के हिसाब से नहीं मिल रहा, लेकिन पहले से स्‍थ‍ित‍ि ठीक हुई है।”

उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान अपनी फसल को अलग-अलग चीनी मिल में देते हैं। इन 120 चीनी मिलों में से कुछ समय पर भुगतान कर रही हैं तो कुछ ऐसी मिलें हैं जो साल भर पुराना भुगतान कर रही हैं। लखीमपुर खीरी ज‍िले के बभनपुर गांव के रहने वाले किसान अरव‍िंद अवस्‍थी (43) कहते हैं, “मैंने पलिया की बजाज चीनी मिल को गन्‍ना द‍िया है। अभी प‍िछले साल का करीब दो लाख रुपए बकाया है। इस साल भी तीन लाख का गन्‍ना दे चुका हूं, लेकिन एक भी पेमेंट नहीं आया है।” अरव‍िंद को अभी मार्च 2021 तक का भुगतान हुआ है। अरव‍िंद बताते हैं कि उनकी ही तरह बहुत से किसान हैं ज‍िनका पैसा बजाज चीनी मिल में फंसा हुआ है।

किसानों के भुगतान को लेकर पलिया के बजाज चीनी मिल के केन मैनेजर चंद्रपाल सिंह कहते हैं, “पलिया चीनी मिल का 4 मार्च 2021 तक का भुगतान किसानों के खाते में जा चुका है। जो बकाया है उसे भी जल्‍द पूरा कर देंगे।”

गन्‍ने के भुगतान के अलावा किसान इस खेती की लागत और गन्‍ने के रेट को लेकर भी परेशान द‍िखते हैं। किसानों के मुताबिक, मौजूदा सरकार ने गन्‍ने के रेट में सिर्फ ₹25 प्रत‍ि क्‍व‍िंटल बढ़ाए हैं, ज‍िसके बाद एक क्विंटल गन्‍ने का दाम ₹350 रुपए हो गया है। किसानों को यह दाम कम मालूम देता है, क्‍योंकि उनके हिसाब से खेती में लागत बढ़ गई है।

लखीमपुर खीरी ज‍िले के बिहारी पुरवां गांव के किसान रामाश्रय मौर्या कहते हैं, “डीजल का दाम बढ़ने की वजह से खेती की लागत भी बढ़ गई है। पहले एक बीघा खेत ₹300 में जोता जाता था, डीजल के दाम बढ़ते गए तो इसे ₹350 कर दिया है। अब यह दाम कम नहीं होंगे। इसके अलावा मैं अगर अपनी दिहाड़ी जोड़ दूं तो खेत से कुछ नहीं मिल रहा। सरकार को गन्‍ने का दाम ₹400 क्विंटल करना चाहिए, तब कुछ बचेगा।”

गन्‍ना व‍िभाग का क्‍या कहना है

यूपी में गन्‍ना किसानों को भुगतान दो तरीके से हो रहा है। पहला चीनी बेचकर और दूसरा एथेनॉल बेचकर। जब से एथेनॉल बनाकर बेचना शुरू किया गया है तब से किसानों के भुगतान में सुधार भी देखने को मिल रहा है।

प्रदेश के अपर मुख्य सचिव (गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग) संजय आर. भूसरेड्डी कहते हैं, “चार साल से 70 से 80% भुगतान पेराई सत्र में ही हो जाता है, जो 20 से 30% बचता है, ये उन चीनी मिलों का बकाया होता है जो घाटे में हैं, उनका भी भुगतान द‍िसंबर तक हो जा रहा है।”

भूसरेड्डी बताते हैं कि जब तक भुगतान के लिए चीनी पर निर्भर थे तो साल भर भुगतान होता था, क्‍योंकि चीनी साल भर बिकती है और जैसे-जैसे पेमेंट आता था वैसे भुगतान होता था। एथेनॉल बनाने से अब भुगतान सही हो रहा है। साल 2016-17 में यूपी की चीनी मिलें 20 करोड़ लीटर एथेनॉल बनाती थीं जो 2020-21 में 160 करोड़ लीटर हो गया है।

वह कहते हैं, “अब सभी चीनी मिलों में एथेनॉल प्‍लांट लगा रहे हैं। अभी 58 चीनी मिलें एथेनॉल बना रही हैं। एथेनॉल तेल कंपनियों को दे दिया जाता है और तेल कंपनियों से 10-15 द‍िन में पेमेंट आ जाता है तो किसान का भुगतान भी समय से हो रहा है।”

– रणविजय सिंह

(इंडिया स्पेंड से साभार)

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