— संदीप पाण्डेय —
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बीच चौथे चरण के मतदान से एक दिन पहले व मतदान के दिन भारतीय जनता पार्टी ने कई अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर एक विज्ञापन छपवाया। इस विज्ञापन में चुनावी वायदे हैं। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 126 के तहत मतदान समाप्ति से 48 घंटे पहले किसी भी किस्म का प्रचार बंद हो जाना चाहिए। लेकिन भाजपा, जो वैसे भी नियम, कानून, संविधान से अपने को परे मानती है, खुलेआम लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धज्जियां उड़ा रही है और चुनाव आयोग इसको नजरअंदाज कर रहा है।
यह तो हो गयी तकनीकी बात, लेकिन इस विज्ञापन का एक मजेदार पहलू यह भी है कि विज्ञापन पढ़ने से लगता है कि यह किसी ऐसे दल का है जो सत्ता में आने के लिए प्रयासरत है जबकि इस समय केन्द्र व उत्तर प्रदेश दोनों जगह भाजपा की सरकार है जिसे डबल इंजन की सरकार कहकर खूब प्रचारित किया गया।
इस विज्ञापन में किसानों को मुफ्त बिजली, गन्ना किसानों को 14 दिनों में भुगतान व देरी होने पर ब्याज सहित भुगतान और गेहूं तथा धान की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर और मजबूती से करने का वायदा किया जा रहा है। अभी तक योगी आदित्यनाथ कह रहे थे कि गन्ना किसानों का भुगतान कर दिया गया है जबकि किसान आंदोलन के नेता बार-बार कह रहे थे कि पिछले दो साल का भुगतान बकाया है। यदि भाजपा की नीयत साफ होती तो वह वायदा करने के बजाय ब्याज छोड़िए, बकाया भुगतान ही कर देती। किसान आंदोलन की मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी गारंटी बनाने की है। लेकिन भाजपा यह कहने को तैयार नहीं। यह उसकी किसान विरोधी मानसिकता का परिचायक है।
मेधावी छात्राओं को मुफ्त स्कूटी देने का वायदा है। यह तो कांग्रेस की नकल की जा रही है। लेकिन सामान्य लड़कियों का क्या? हरेक छात्रा तो मेधावी हो नहीं सकती। 60 वर्ष से ऊपर महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा के लाभ का वायदा किया जा रहा है। दिल्ली में तो केजरीवाल ने सभी महिलाओं के लिए यह 2019 में ही कर दिया था। भाजपा को इतनी देर क्यों लगी यह वायदा करने में और वह भी सारी महिलाओं के लिए नहीं है।
2 करोड़ युवाओं को मुफ्त टैबलेट/स्मार्टफोन देने का वायदा किया गया है। चुनाव की घोषणा से तुरंत पहले भाजपा की ही सरकार ने बड़े स्टेडियम में छात्र-छात्राओं को एकत्र कर मुफ्त टैबलेट/स्मार्टफोन दिये। यदि भाजपा की मंशा सभी छात्र-छात्राओं को देने की है तो वह अभी तक क्यों नहीं दे दिये गये? भाजपा सरकार कोई भी चीज देने का खूब बढ़-चढ़ कर प्रचार करती है। यदि प्रचार पर इतना पैसा खर्च न किया गया होता तो अब तक सभी छात्र-छात्राओं को टैबलेट/स्मार्टफोन मिल गए होते।
रिक्त सरकारी पदों पर शीघ्र भर्ती, सरकारी नौकरियों में महिलाओं की संख्या दोगुनी करने व हर परिवार में कम से कम एक व्यक्ति को रोजगार/स्वरोजगार के अवसर का वायदा किया गया है। चुनाव की घोषणा होनेवाले दिन तक शिक्षा निदेशालय, निशातगंज, लखनऊ पर शिक्षक भर्ती अभ्यर्थी छह माह से ज्यादा धरने पर बैठे हुए थे और उनमें से एक महिला शिखा पाल डेढ़ सौ दिनों से ज्यादा वहीं एक पानी की टंकी पर चढ़ी हुई थीं। कोरोना के समय जिन एम्बुलेंस चालकों को देवतुल्य बताकर उनके ऊपर हेलीकाॅप्टर से फूलों की वर्षा की गयी थी उन्हें एक निजी कम्पनी, जिसको एम्बुलेंस संचालन का ठेका दिया गया था, द्वारा नौकरी से निकाल दिया गया और वे धरने पर बैठे थे और भारतीय मजदूर संघ, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा मजदूर संघ है, के माध्यम से सरकार से बात कर रहे थे। लेकिन संवेदनहीन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। क्या वजह है कि अब वही भाजपा नौकरियां देने का वायदा कर रही है? नरेन्द्र मोदी की स्वरोजगार या आत्मनिर्भर भारत की बात से अब लोग थोड़ा सावधान हो गए हैं। लोगों को लगने लगा है कि इन भारी-भरकम शब्दों का मतलब है लोगों को उनके हाल पर छोड़ देना। अब भीख मांगने को ही स्वरोजगार बताना बाकी रह गया है।
हर गरीब बेेघर को पक्का मकान और आवासीय पट्टे, गरीब को अन्नपूर्णा कैंटीन में न्यूनतम दाम पर भोजन व गरीब बेटियों को सामूहिक विवाह में रुपए 1 लाख देने का वायदा है। क्या यह काम पिछले पांच सालों में नहीं हो सकता था? तमिलनाडु में तो तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने रु. 1 में इडली व रु. 5 में चावल-सांभर देना योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से चार साल पहले ही शुरू कर दिया था। गरीबों को आवास देने का भी खूब ढिंढोरा पीटा गया है लेकिन अब सरकार मान रही है कि काफी पात्र परिवार छूट गए हैं। चुनाव के समय सामूहिक विवाह में रु 1 लाख देने का वायदा तो लालच देने जैसा ही है।
श्रमिकों व स्वयं सहायता समूह की 1 करोड़ महिलाओं को न्यूनतम ब्याज दर पर रु. 1 लाख तक का क्रेडिट कार्ड देने का वायदा किया जा रहा है। यह काम भी पहले हो सकता था।
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस विज्ञापन में भाजपा सरकार अपनी उपलब्धियां नहीं गिना रही जिसको लेकर पिछले वर्ष धुआंधार विज्ञापनों पर पैसे खर्च किए गए और न ही कोई धार्मिक मुद्दा, जैसे मंदिर निर्माण, आदि उठाया गया है। न ही सरकार बेहतर कानून व व्यवस्था कायम करने या माफिया, अपराधियों को खत्म करने की बात कर रही है।
नरेन्द्र मोदी को चौथे चरण में उन्नाव में कहना पड़ा कि खुले पशुओं से किसान परेशान हैं और यदि पुनः भाजपा सरकार बनी तो वह गाय का गोबर खरीदेगी ताकि किसान अनुपयोगी पशु को भी बांध ले। यह काम छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार पहले से ही कर रही है। अभी तक गाय को मां बतानेवालों के लिए अब माई से कमाई में ही खुले पशुओं की समस्या का समाधान नजर आ रहा है। योगी आदित्यनाथ ने ठीक चौथे चरण के मतदान के एक दिन पहले कहा है कि प्रति पशु मासिक रु. 900 किसानों को दिए जाएंगे ताकि वे अनुपयोगी पशुओं को पाल सकें। अभी तक उनकी प्राथमिकता गौ रक्षा थी। पहली बार उन्होंने कहा कि किसान का खेत बचाना भी जरूरी है। अब जाकर उन्हें समझ में आया है कि किसान का खेत ही नहीं बचेगा तो वह क्या खाएगा और पशु को क्या खिलाएगा?
इसका मतलब है कि भाजपा को समझ आ गया है कि उसके साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण वाले पारम्परिक मुद्दे इस बार काम नहीं कर रहे और अंततः उसे वही बातें करनी पड़ रही हैं जो पहले से ही अन्य मुख्य विपक्षी दल कर रहे हैं। यह विपक्षी दलों की उपलब्धि है कि अभी तक वे भाजपा की नकल करने की कोशिश कर रहे थे, अब भाजपा उनकी नकल कर रही है। यानी भाजपा का विश्वास डगमगा गया है और उसे दिखाई दे रहा है कि उत्तर प्रदेश कर चुनाव उसके हाथ से निकला जा रहा है।