गुजरात में हजारों करोड़ का कोयला घोटाला, खदानों से बाहर आया 60 लाख टन कोयला बीच रास्ते में गायब

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26 फरवरी। गुजरात में एक हजारों करोड़ रुपयों का कोयला घोटाला सामने आया है, जिसके तहत गुजरात के सरकारी अफसरों ने अस्तित्वहीन कंपनियों के साथ मिलकर हजारों करोड़ रुपयों का कोयला राज्य के बाहर बेच दिया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कोल इंडिया की विभिन्न कोयला खदानों से गुजरात के लघु एवं मध्यम स्तर के उद्योगों को कोयला दिया जाना था, लेकिन राज्य सरकार द्वारा इस काम के लिए नामित एजेंसियों ने यह कोयला दूसरे राज्यों को बेचकर तगड़ा मुनाफा कमाया। पड़ताल के मुताबिक, यह घोटाला पांच से छह हजार करोड़ रुपये का है और 14 सालों से चल रहा था।

गौरतलब है कि कोल इंडिया की विभिन्न कोयला खदानों से जिन उद्योगों के लिए कोयला निकाला गया, वो उन तक नहीं पहुंचे। उन्हें रास्ते से में ही गायब कर दिया गया। भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक इस घपलेबाजी को लेकर जब सरकारी विभाग के अधिकारियों, कोयला ट्रांसपोर्ट सिस्टम से जुड़े अधिकारियों से जानकारी मांगी गई तो उन लोगों ने ‘नो कमेंट’ कहकर चुप्पी साध ली।

बता दें कि गुजरात के व्यापारियों, छोटे उद्योगों के नाम पर कोल इंडिया की खदानों से 60 लाख टन कोयला भेजा गया है। जिसकी औसत कीमत 3 हजार रुपए प्रति टन के हिसाब से 1,800 करोड़ रुपए निर्धारित होती है। लेकिन इसे व्यापारियों और उद्योगों तक नहीं पहुंचाया गया। जानकारी के मुताबिक इसे 8 से 10 हजार रुपए प्रति टन की कीमत पर दूसरे राज्यों में बेचकर घोटाला किया गया।

इस कालाबाजारी के खेल को लेकर जब केंद्र सरकार के कोयला मंत्रालय के सचिव अनिल जैन से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि राज्य सरकार जिन एजेंसियों को नियुक्त करती है, उन्हें कोयला दिया जाता है। इसके बाद हमारी उसमें कोई भूमिका नहीं होती। कोल इंडिया के निदेशक सत्येंद्र तिवारी ने बताया कि राज्य सरकार का उद्योग विभाग एजेंसियों की नियुक्ति करता है।

दैनिक भास्कर के अनुसार, जिन उद्योगों को इस नीति का लाभ मिलना था, उनकी सूची कोल इंडिया को गुजरात सरकार भेजती है। उक्त सूची में उद्योग का नाम, आवश्यक कोयले की मात्रा, किस एजेंसी के माध्यम से कोयला लिया जाएगा, इसकी जानकारी होती है। यह सूची सरकार का उद्योग विभाग भेजता है। इसी सूची के साथ राज्य सरकार उन एजेंसी के नाम भी भेजती है जो कोल इंडिया से कोयला लेकर लाभार्थियों तक पहुंचाने के लिए अधिकृत होती है।

अखबार दावा का है कि उसकी जांच में सरकार द्वारा भेजी गई यह सूची झूठी पाई गई गई। दस्तावेजों में जिन उद्योगों के नाम पर कोल इंडिया से कोयला लिया गया वह उन उद्योगों तक पहुंचा ही नहीं। इस संबंध में अखबार ने अपनी रिपोर्ट में कुछ उदाहरण भी दिए हैं। जैसे कि, शिहोर के उद्योग में जय जगदीश एग्रो इंडस्ट्रीज को लाभार्थी दर्शाया गया है लेकिन इंडस्ट्रीज के जगदीश चौहान का कहना है कि उन्हें तो यह पता तक नहीं कि उन्हें सरकार से कोयला मिलता है। उनका कहना है कि वे स्थानीय बाजार से कोयला खरीदते हैं।

कुछ ऐसा ही ए एंड एफ डिहाइड्रेट फूड्स के शानू बादामी ने बताया, कोयले का ऐसा कोई जत्था हमें कभी नहीं मिला। हम अपनी जरूरत का ज्यादातर कोयला जीएमडीसी की खदानों से खरीदते हैं या आयातित कोयला खरीदते हैं, जो हमें महंगा पड़ता है। वहीं, गुजरात सरकार द्वारा नियुक्त की गई एजेंसी ‘गुजरात कोल कोक ट्रेड एसोसिएशन’ के निदेशक अली हसनैन दोसानी ने इस अखबार को बताया कि वह अपने अधिकांश कोयले की आपूर्ति दक्षिण गुजरात के कपड़ा उद्योगों को करते हैं। लेकिन, साउथ गुजरात टेक्सटाइल प्रोसेसर्स एसोसिएशन के जितेंद्र वखारिया ने उनके दावों को खारिज करते हुए कहा, मैं इस धंधे में 45 साल से हूं। ऐसी योजना के तहत कभी किसी भी प्रकार का कोयला नहीं मिला। इतना ही नहीं जो एजेंसियां गुजरात सरकार ने नियुक्त की, वे भी फर्जी पाई गई हैं। एजेंसियों द्वारा दर्ज कराए गए पतों की जांच करने पर सामने आया कि उक्त स्थान पर उस नाम का कोई संगठन ही नहीं है।

(MN News से साभार)

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