26 फरवरी। भोजन के बारे में चिंतित हैं या स्वस्थ भोजन नहीं खा पा रहे हैं या सर्वेक्षण से पहले के महीने में जितना खाना खाते थे, उतना नहीं खा पा रहे हैं। 6,697 उत्तरदाताओं में से केवल 34 प्रतिशत ने बताया कि सर्वेक्षण से पहले के महीने में उनके घरों में अनाज की खपत पर्याप्त थी।
कोविड महामारी के दौरान सरकार का दावा रहा कि सरकारी विभाग और एजेंसियां ने सभी को भोजन उपलब्ध कराने के लिए पूरे प्रयास किए और वे इसमें सफल रहे। वहीं हाल ही में बहराईच में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि केंद्र सरकार देश के 80 करोड लोगों को मुफ्त अनाज दे रही है। इसके विपरीत बुधवार को जारी एक सर्वेक्षण-आधारित रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले साल कोरोना की दूसरी लहर के बाद हाशिए के वर्गों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा है।
दिसंबर 2021 और जनवरी 2022 के दौरान खाद्य असुरक्षा की स्थिति का आकलन करने के लिए एनजीओ राइट टू फूड कैंपेन द्वारा आयोजित हंगर वॉच सर्वे में पाया गया कि 41 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने महामारी के दौरान भोजन की पोषण गुणवत्ता में गिरावट देखी थी। वहीं सरकार का दावा था कि वह महामारी के बीच एक मजबूत खाद्य सहायता कार्यक्रम चला रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक 60 फीसदी परिवारों ने बताया कि वे भोजन के बारे में चिंतित हैं या स्वस्थ भोजन नहीं खा पा रहे हैं या सर्वेक्षण से पहले के महीने में जितना खाना खाते थे, उतना नहीं खा पा रहे हैं। 6,697 उत्तरदाताओं में से केवल 34 प्रतिशत ने बताया कि सर्वेक्षण से पहले के महीने में उनके घरों में अनाज की खपत पर्याप्त थी। आधे उत्तरदाताओं ने महीने में दो से तीन बार से कम अंडा, दूध, मांस और फल खाया।
भोजन के अधिकार अभियान की दीपा सिन्हा ने कहा, सर्वेक्षण के पहले दौर के निष्कर्षों की तुलना में, दूसरे दौर में मामूली सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी 2020 के पूर्व-महामारी के स्तर पर लौटने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है।” एनजीओ सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज भी सर्वेक्षण का हिस्सा है।
सर्वेक्षण का पहला चरण, हंगर वॉच प् अक्टूबर-दिसंबर 2020 के दौरान पहली कोविड लहर के बाद आयोजित किया गया था, जिसमें पाया गया था कि 71 प्रतिशत उत्तरदाताओं को अध्ययन से पहले के महीने में एक पौष्टिक भोजन नहीं मिला था। लगभग 66 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बताया कि महामारी के दौरान आय में गिरावट आई है। आय हानि की सूचना देने वालों में, 59 प्रतिशत ने कहा कि उनकी कमाई अब महामारी के पूर्व के स्तर से आधे से भी कम है और 26 प्रतिशत ने कहा कि कमाई आधी से तीन-चौथाई के बीच है।
सर्वेक्षण से पहले के महीने में दो-तिहाई या 67 प्रतिशत उत्तरदाता रसोई गैस का खर्च नहीं उठा सकते थे। सरकार ने नवंबर 2021 तक दूसरी लहर के दौरान राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के लाभार्थियों के लिए प्रति व्यक्ति प्रति माह अतिरिक्त 5 किलो मुफ्त राशन प्रदान किया। यह सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत उन्हें प्रदान किए जाने वाले नियमित सब्सिडी वाले भोजन के अतिरिक्त था।
बताते चले कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने बुधवार को उत्तर प्रदेश के बहराइच में एक जनसभा को संबोधित करते हुए केंद्र और राज्य सरकार की उपलब्धियों का भी बखान किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पूरे देश में 80 करोड़ लोगों को करीब 2 साल से मुफ्त में राशन मिल रहा है और उत्तर प्रदेश में 15 करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन पहुंचा है। उधर सर्वेक्षण में 60 फीसदी परिवारों का कहना है कि वे भोजन के बारे में चिंतित हैं या स्वस्थ भोजन नहीं खा पा रहे हैं या सर्वेक्षण से पहले के महीने में जितना खाना खाते थे, उतना नहीं खा पा रहे हैं। इस रिपोर्ट से सरकार के दावे पर सवाल उठ रहे है।
दूसरी बात यह कि सरकार की ओर से केवल पांच किलो अनाज मुफ्त दिया जा रहा है। अगर एक परिवार में चार लोग है तो यह पांच किलो अनाज उस परिवार का पेट भरने के लिए काफी नहीं है. यही वजह हो सकती है कि कोरोना की दूसरी लहर में आर्थिक गतिविधियां बंद होने से रोजगार गंवाने के बाद आर्थिक तंगी के चलते हाशिए पर रहे लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिला।
(MN News से साभार)
Discover more from समता मार्ग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.
















