1 फरवरी। किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष पूर्व विधायक डॉ सुनीलम ने बजट पर टिप्पणी करते हुए कहा कि बजट को देखते हुए ऐसा लगता है कि मोदी सरकार ने आंदोलन करनेवाले किसानों को सबक सिखाने के लिए बजट तैयार कराया है। उन्होंने कहा कि यह बजट कॉरपोरेट को छूट और किसानों की लूट करनेवाला बजट है।
मोदी जी ने 6 वर्ष में किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा सैकड़ों बार दोहराया है लेकिन इस बार वित्तमंत्री ने आय दुगुनी करने को लेकर एक शब्द भी नहीं बोला।
2015-16 में यह 8059 रुपये प्रतिमाह थी जो 6 साल के बाद महंगाई को जोड़कर 21,146 होनी थी लेकिन वह 2018-19 में केवल 10, 218 रुपये तक पहुंची है। 2022 में यह 12,955 रुपये होगी।
5 लोगों के परिवार में यह प्रतिव्यक्ति 27 रुपये होती है।
कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों का कुल बजट पिछले साल के 4.26 फीसद से घटाकर इस वर्ष 3.84 फीसद कर दिया गया है। जबकि किसान संघर्ष समिति किसानों की आबादी के अनुपात में बजट आवंटन की मांग करती रही है।
बजट में ग्रामीण विकास का बजट पिछले साल 5.59 फीसद से घटाकर इस वर्ष 5.23 फीसद कर दिया गया है।
2014 के बाद से ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर सरकार द्वारा ढिंढोरा पीटा जाता रहा है। परंतु बजट पिछले साल के 16,000 करोड़ रुपए से घटाकर इस साल 15,500 करोड़ रुपए कर दिया गया है। इसी तरह किसानों को फसल का दाम मिल सके उसके लिए सरकार की पीएसएस और एमआईएस स्कीम में पिछले साल खर्च किये गये 3595 करोड़ रुपये को घटाकर 1500 करोड़ कर दिया गया है।
आशा योजना का आवंटन पिछले साल 400 करोड़ रुपए किया गया था लेकिन इस बार उसे घटाकर नाममात्र को सिर्फ 1 करोड़ रुपया कर दिया गया है।
बजट में गेहूं और चावल की खरीद के लिए 2.37 लाख करोड़ का आवंटन किया है जो कि पिछले वर्ष 2. 48 लाख करोड़ था। एमएसपी के संबंध में भी गलत जानकारी दी गयी है। इस साल 2.37 लाख करोड़ रुपए की एमएसपी पर खरीद पिछले साल 2.84 लाख करोड़ की खरीद से भी कम है। पिछले साल 1286 लाख टन खरीद हुई थी जबकि इस साल 1208 लाख टन। पिछले साल 1.97 करोड़ किसानों को फायदा हुआ था इस साल सिर्फ 1.63 करोड़ किसानों को फायदा होगा।जबकि महंगाई 40 फीसद बढ़ी है। इसके अनुपात में आवंटन बढ़ाया जाना चाहिए था। सरकार ने केवल 4 प्रतिशत वृद्धि की थी। सरकार ने पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष गेहूं और चावल की 7 फीसद कम खरीद की है तथा 17 फीसद कम किसानों से खरीद की गयी है।
एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड में सरकार का योगदान पिछले साल 900 करोड़ से घटाकर इस साल 500 करोड़ कर दिया गया है। फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन के लिए बजट पिछले साल 700 करोड़ से घटाकर इस साल 500 करोड़ कर दिया गया है। पराली जलाने से रोकने के लिए किसान को सहायता देने के लिए पिछले साल 700 करोड़ का बजट था जो इस साल घटाकर शून्य कर दिया गया है।
नेचुरल फार्मिंग के बारे में सरकार ने बोला ज्यादा है उसमें खर्चा ना के बराबर किया है। पिछले 2 साल से एग्रीकल्चर इन्वेस्टमेंट फंड की धूमधाम से घोषणा हुई थी। उसके 1,00,000 करोड़ रुपए में से अब तक सिर्फ 2,400 करोड़ खर्च हुए हैं उसके बारे में भी कुछ नहीं बोला गया।
सरकार द्वारा खाद्य सबसिडी 25 फीसद कम कर दी गयी है। प्रधानमंत्री किसान योजना के आवंटन में 9 फीसद की कमी की गयी है। प्रधानमंत्री किसान योजना जब शुरू की गयी थी तब कहा गया था कि उसे 12 करोड़ परिवारों से 15 करोड़ परिवारों तक बढ़ाया जाएगा लेकिन इस दावे के अनुपात में आवंटन नहीं किया गया है। महंगाई बढ़ने के कारण किसान सम्मान निधि का पैसा 15 फीसद घट गया है उसे बढ़ाने के बारे में बजट कुछ नहीं कहा गया है।
मनरेगा में पिछले साल 97,034 करोड़ रुपए खर्च हुआ था लेकिन इस साल मात्र 72,034 करोड़ रुपए का बजट है। मनरेगा में राज्यों के पास फंड खत्म हो गया है उसे पूरा करने के बारे में सरकार ने कुछ नहीं कहा।
किसान संघर्ष समिति मानती है कि किसान ड्रोन योजना का वही हाल होगा जो कि किसान रेलवे और फसल बीमा का हुआ है। किसान संघर्ष समिति ने कहा कि देश के किसानों के लिए सम्पूर्ण कर्जा मुक्ति सबसे बड़ा सवाल है परंतु सरकार किसानों को अधिक कर्जदार बनाने की नीति पर काम कर रही है।
डॉ सुनीलम ने कहा कि आगामी विधानसभा चुनावों में उत्तरप्रदेश और अन्य चार राज्यों के किसान बजट के माध्यम से किये गए अपमान का भारतीय जनता पार्टी से बदला लेंगे तथा इस वर्ष फिर से एक राष्ट्रव्यापी किसान आंदोलन की शुरुआत करेंगे।
– भागवत परिहार