रीता दास राम की दस कविताएँ

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पेंटिंग- शान्तनु मित्रा


1. पुरानी और नई दुनिया

परेशानियाँ रही अलमस्त
उसे भीतरी नमी के सूखने की कोई परवाह नहीं थी

सरोकार से किनारा कर लेने के बाद कोमल भावनाओं ने
रूखा और कठोर होना स्वीकार लिया

भाषाई राग द्वेष ठंडे पड़ते रिश्ते की
उधेड़-बुन सहेजते रहे थे

रोष और आग के कम होते फर्क़ ने
संसार की रूप रेखा बदल दी थी

व्यवस्थित सुरक्षा और सुकून से तप रही सरहदें
वीरान तमाशा देखती रही हैं सदियों से

लोग संबंधों में अपने आने जाने रहने सहने
का बेहतर संकेत देते जीने लगे हैं

दो जोड़ी कदम, नापते हुए जमीन, खामोश बतियाते
चलते रहे हैं
जिनके शब्दों ने बगावत की थी और अक्षर बेहोश पड़े थे

ये पिछली सदी की बातें थीं जिसे घिसा-पिटा
कहा जा रहा था
नई दुनिया ने डिलीट और फॉरवर्ड के बटन
ईजाद कर दिए हैं।

2. चढ़ना-उतरना

रखते हुए पैर कंधे पर
चढ़ रहे हैं
कंधों का सीढ़ी की तरह
करते हुए इस्तेमाल

ऊपर चढ़ने
और चढ़ाए जाने
का मतलब जाने बिना
सीढियाँ चढ़ाती हैं ऊपर
कभी धोखा नहीं देतीं

चढ़ना उतरना दोनों क्रियाएँ
एक दूसरे को करीब से पहचानते हुए भी एकदम अलग हैं

चढ़ने वालों में चढ़ने की तकलीफ
ऊँचाई से दिखने वाले दृश्य के आनंद को द्विगुणित करती है

और उतार
उतार खामोशी से देखती है रास्ते
हर पल की मशक्कत की याद
गिनते हुए घड़ियाँ

कि
उतरते हुए लोग
चढ़ने की तकलीफ भूलते नहीं
गाँठ में बाँध लेते हैं।

3. अपना आप

बचाना है अपना आप
अपनी निगाहों के साथ
अपनी चुप
और सीलती हुई आवाज
करना है जब्त

जब तक के
स्वर ना कर दें
बगावत

खामोशियाँ न हो जाएं बावली
मन बौखला ना जाय

रहना है चुप
एक मजबूत दिन की तलाश में
जो धूप में भी छांव से भरी होगी
होगी सुकून के पसीने से तर
राहत और तृप्ति के लिए।

4. अलहदा धाराओं के लोग

अलहदा धाराओं के लोग
नहीं मिलते एक साथ
अपनी विचारों की कशमकश
अपने मुद्दों पर डटे
करते हुए टीका-टिप्पणी
रखते हुए अपनी-अपनी मंशाएँ भिन्न

गुपचुप अपनी तैयारी में लिप्त
अपनी अथक ऊर्जाओं के साथ
अपनी सीमितताएँ लिये हुए
जी-जान से बढ़कर कुछ करने बेहतर
अपेक्षित अनपेक्षित के अपने दायरे में कैद
समय और दिशा की रेतघड़ी लिये,

जिनकी अपनी अपनी
भावनाएं
मानसिकताएं
उद्देश्यों का हठ
पृथक संकीर्णताएं
जुदा पैगाम
राह दिखाती चुनौतियाँ हैं
जबकि सभी का एक ही लक्ष्य है देश, समाज और संस्कृति

पहुँचना है सारी जद्दोजहद को झेलते
अपने अपने सच की असंपृक्त जमीं पर लगाकर दौड़

पर अलग अहद।

पेंटिंग- भारती शाह

5. नींद

सिरहाने
जागती नींद
रात
बहती नदी से
बतियाती है

जिसका
पानी काला है
जमीन सफेद है
चाँद में पड़ती है उसकी परछाईं

भोर के सहलाते ही
थक कर सो जाती है,

बची पड़ी उम्मीद
जागती नींद की गवाही देती है।

6. शिक्षित महिलाएँ और समाज

शिक्षित हुईं महिलाएं
महिलाओं के नाम हुए
वे बढ़ती जा रही हैं आगे

उनकी तस्वीरें रोशन हुईं
मूर्तियाँ बनीं
पुरस्कार मिले
आदर, मान, सम्मान सब पाया

फिर भी
स्त्रियाँ स्त्रियाँ हैं

समाज
अपरिवर्तित
व्यवस्थित
तटस्थ

पृथ्वी घूम रही है अपनी चाक पे।

7. कैद

दीवार
दीवार
फिर एक दीवार

रास्ते बंद
पहरे भी हमारे ही बिठाए हुए

हम अपनी ही बनाई हुई
दीवारों में थे क़ैद

क़ैद होकर लड़ते रहे
ना छुट पाने को
मजबूरी मानते रहे

ये हम थे

और जो हम हैं

उसे हम बचा कर रखना चाहते हैं
क्योंकि
वह हमारी व्यवस्था का हिस्सा है
जिसकी हक़ीक़त हम जानते हैं
पर मानते नहीं।

पेंटिंग- कौशलेश पांडेय

8. बेगार

रस्मों की पिघलती पारदर्शिता
पानी पानी हो रही थी

वक्त का इंतजार
आहें भर रहा था

तपती हवा
दिशाओं के मिजाज जानने लगी थी

संतुष्टि का राज
सुना रहा था चंद पुराने किस्से

सभी के पास नए हमलों के हथियार थे
विचारों की खिचड़ी में लोग हो रहे थे तिरस्कृत

लोग कर रहे थे मजदूरी दिन-रात की
मुनाफा कोई और ले जा रहा था।

9. तुम्हारे साथ तुम्हारे बगैर

तस्वीरों का अंत कर दो
जिंदगी की शुरुआत कर दूँगी

हँसो खिलखिलाओ
जीना सीख लूँगी

बढ़ते रहो रखो धीरज
बढ़ जाऊँगी जिंदगी की रेत पर दूर तक

जो कर सको तो करना इंतजार
तसल्ली मिल जाएगी देख कर तुम्हें इस रूप में

आना चाहो तो आना पास बिलकुल पास
जैसे मछली के पास है पानी

तारों का आशियाना जोड़ा है
तुम्हारे साथ तुम्हारे बगैर

कुछ हादसे सिखाते रहेंगे क ख ग
कटाव पर ध्यान रखना धार का पैनापन मत खोना

सवाल पर सवाल उठाती रहेंगी वर्जनाएं
तुम रात और दिन वाले हिसाब की मुट्ठी खोल देना

चुन ली है अपने हिस्से की नीली तरल रोशनी
आलोक में तुम रहो, बंद आँखों में जुगुनू बोना जानती हूँ मैं।

10. जुर्म था

जुर्म था
कि लिख रहे थे

नोट कर रहे थे वो सारी बात
जो लग रही थी बुरी

बदलाव चाहिए
लिखना भी जुर्म था

बुरा लग रहा था
बोला जाना लिखा जाना

विरोध का था विरोध
कि विरोध का अर्थ बचाए रखने की गुंजाइश कम हो

विरोध का तर्क ना बचे
या कि बचे वो चुप्पी जो पसरी रहे चारों ओर

समय की जरूरत पर
पूछे गए प्रश्न रोकते रहेंगे रास्ता

प्रश्न जब भी पूछा जाएगा
ना सुना जाएगा ना समझा जाएगा।

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