बड़वानी में जागृत आदिवासी दलित संगठन का प्रदर्शन

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28 फरवरी। मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले में जागृत आदिवासी दलित संगठन ने आदिवासियों से बेगारी करवाने एवं मजदूरों के साथ हो रहे हिंसा एवं यौन शोषण के विरोध में रैली निकाल कर जनपद कार्यालय का घेराव किया। हाल ही में 250 से अधिक आदिवासी, जो कि महाराष्ट्र और कर्नाटक में बंधुआ मजदूर बनाए गए थे, जागृत आदिवासी दलित संगठन के प्रयासों से वापस बड़वानी लौट आए हैं। तीन से चार महीने दिन-रात लगातार काम करने के बावजूद मजदूरी न मिलने और काम के दौरान महिलाओं के साथ यौनहिंसा के मामलों को लेकर मजदूरों द्वारा प्रशासन से कार्यवाही की मांग की जा चुकी है, मगर अभी तक प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंगी है। मध्यप्रदेश शासन-प्रशासन की निष्क्रियता देखते हुए, आदिवासियों ने रैली निकाल कर जनपद कार्यालय का घेराव किया। एकत्रित आदिवासियों ने ज्ञापन के माध्यम से मध्यप्रदेश सरकार और बड़वानी प्रशासन से कार्रवाई करने की मांग उठाई, और कोई कार्रवाई न होने पर तीव्र आंदोलन करने की चेतावनी भी दी।

आदिवासियों के अनुसार, फसलों का सही भाव न मिलने के कारण, आदिवासी किसान मजदूर कर्ज में डूबते जा रहे हैं। पलायन रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले रोजगार गारंटी के पेमेंट महीनों तक नहीं दिए जा रहे हैं। निजीकरण के चलते, शिक्षा और रोजगार के अवसर खत्म किए जा रहे हैं, जिससे युवा पीढ़ी के पास पलायन करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बच रहा। इसी मजबूरी का फायदा उठाते हुए, ठेकेदारों और फैक्टरी मालिकों द्वारा आदिवासियों को बंधुआ मजदूरी में फंसाया जा रहा है। संगठन के कार्यकर्ताओं ने मध्यप्रदेश सरकार से तीखे सवाल किए– आज जब आदिवासी शिक्षा और रोजगार की मांग कर रहे हैं, उन्हें मिल रही है ठेकेदारों और सेठों की गुलामी और बेगारी– क्या मध्यप्रदेश के आदिवासियों के लिए यही विकास है?

बिना लाइसेन्स के ठेकेदार, गाँव में आकार, 30 से 40 हजार कर्ज देकर, काम के बारे में झूठे आश्वासन देते हुए आदिवासियों की तस्करी कर, गुजरात, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक में उनसे बेगारी करवाते हैं। काम के दौरान न मजदूरों को कोई मजदूरी दी जाती है, न उनके द्वारा किए गए काम का कोई हिसाब उन्हें मिलता है।

आक्रोशित आदिवासियों ने बताया गया कि किस प्रकार, कर्नाटक के बेलगावी जिले में काम का हिसाब मांगने पर, ठेकेदारों और फैक्टरी वालों द्वारा तीन मजदूरों को 6 दिन तक निरानी फैक्टरी में बंधक बना लिया गया था। वहीं, सतारा में गए बड़वानी के शिवनी गाँव के आदिवासियों को काम न करने पर जान से मारने की धमकी दी जाती– 6 दिन पहले बच्चे को जन्म दी महिलाओं से भी काम करवाया जाता रहा। पुणे, कोल्हापुर और बागलकोट में फंसे मजदूरों से उनके मोबाइल फोन छीन लिए गए, उनके हाथ में से पैसे छीन लिए गए। जो महिलाएं दिन-रात काम कर परिवार को भी संभालती है, उनके साथ ठेकदारों और सेठों द्वारा यौन शोषण और बलात्कार के रोंगटे खड़े कर देनेवाले मामले सामने आए– सतारा से लौटी 16 वर्षीय नाबालिग लड़की का ठेकेदारों ने कई बार सामूहिक बलात्कार किया, जिसके बारे में बड़वानी पहुँचकर ही पूरी सच्चाई मालूम हो पायी थी।

जागृत आदिवासी दलित संगठन ने शोषण, छल और अत्याचार के इस सिलसिले को रोकने के लिए मजदूरों को ले जानेवाले ठेकेदारों के पास लाइसेन्स होना, मजदूरों का विधिवत पंजीयन किया जाना, तथा अंतरराजीय प्रवासी कामगार अधिनियम के अनुसार, मजदूरों को पासबुक दिए जाने की भी मांग उठाई है। संगठन ने कहा है कि ये मांगें पूरी न होने पर बड़वानी में आदिवासी समाज और तीव्र आंदोलन करने को मजबूर हो जाएगा।

(संघर्ष संवाद से साभार)

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