मैथिलीशरण गुप्त की कविता

0
पेंटिंग : प्रयाग शुक्ल
Maithilisharan Gupta
मैथिलीशरण गुप्त (3 अगस्त 1886 – 12 दिसंबर 1964)

जीवन की ही जय हो

मृषा मृत्यु का भय है
जीवन की ही जय है ।

जीव की जड़ जमा रहा है
नित नव वैभव कमा रहा है
यह आत्मा अक्षय है
जीवन की ही जय है।

नया जन्म ही जग पाता है
मरण मूढ़-सा रह जाता है
एक बीज सौ उपजाता है
स्रष्टा बड़ा सदय है
जीवन की ही जय है।

जीवन पर सौ बार मरूँ मैं
क्या इस धन को गाड़ धरूँ मैं
यदि न उचित उपयोग करूँ मैं
तो फिर महाप्रलय है
जीवन की ही जय है।

Leave a Comment